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    April 20, 2025

    आंबेडकर पर घिरे शाह को NDA के सहयोगी दलों से कितना मिल रहा सपोर्ट? क्या BJP अकेले मोर्चा लेने को है मजबूर!

    1 min read
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    एक तरफ लालू यादव की आरजेडी ने प्रधानमंत्री मोदी से अमित शाह को बर्खास्त करने की मांग की है तो वहीं मायावती ने कहा कि अमित शाह की टिप्पणी से बीआर आंबेडकर की गरिमा को ठेस पहुंची है, उनके अनुयायी आहत हैं; उन्हें टिप्पणी वापस लेनी चाहिए.

    बीआर आंबेडकर पर दिए गृह मंत्री अमित शाह के एक बयान पर देश की सियासत में खलबली मची हुई है. एक तरफ कांग्रेस, आरजेडी, तृणमूल कांग्रेस और अन्य विपक्षी पार्टियां अमित शाह से माफी की मांग कर रही हैं तो दूसरी तरफ बीजेपी भी जमकर पलटवार कर रही है. खुद गृहमंत्री अमित शाह फ्रंटफुट पर उतरकर बैटिंग कर रहे हैं. लेकिन सवाल उठ रहा है कि क्या आंबेडकर को लेकर चल रही इस जंग में एनडीए की सहयोगी पार्टियों का क्या रुख है. ये आपको बताएंगे लेकिन पहले जानिए अमित शाह का वो बयान, जिसे लेकर घमासान मचा हुआ है.

    क्या था अमित शाह का बयान
    कांग्रेस का आरोप है कि शाह ने राज्यसभा में ‘भारत के संविधान की 75 वर्षों की गौरवशाली यात्रा’ विषय पर दो दिन तक चली चर्चा का जवाब देते हुए मंगलवार को अपने संबोधन के दौरान बाबासाहेब का अपमान किया. कांग्रेस ने अमित शाह के संबोधन का एक वीडियो क्लिप भी जारी किया जिसमें गृह मंत्री विपक्ष पर कटाक्ष करते हुए यह कहते सुने जा सकते हैं कि ‘अभी एक फैशन हो गया है- आंबेडकर, आंबेडकर…. इतना नाम अगर भगवान का लेते तो सात जन्मों तक स्वर्ग मिल जाता.’

    विपक्ष ने जमकर बोला हमला
    तो पढ़ा आपने. ये था अमित शाह का वो बयान, जिसे लेकर भारत की सियासत का पारा ठंड में भी हॉट हो गया है. एक तरफ लालू यादव की आरजेडी ने प्रधानमंत्री मोदी से अमित शाह को बर्खास्त करने की मांग की है तो वहीं मायावती ने कहा कि अमित शाह की टिप्पणी से बीआर आंबेडकर की गरिमा को ठेस पहुंची है, उनके अनुयायी आहत हैं; उन्हें टिप्पणी वापस लेनी चाहिए.

    आंबेडकर को लेकर मचे इस संग्राम में अब तक एनडीए की तमाम सहयोगी पार्टियों ने एकजुटता ही दिखाई है. एलजेपी नेता और केंद्रीय मंत्री चिराग पासवान ने कांग्रेस पर जमकर हमला बोला और कहा कि कांग्रेस बाबा साहेब की इज्जत करने का दिखावा कर रही है. उन्होंने कहा कि जब कांग्रेस सत्ता में थी तो बाबासाहेब का नाम तक भूल गई थी.

    बचाव में दिखे चिराग और अठावले
    चिराग ने एक बयान में कहा था, ‘आज कांग्रेस बाबासाहेब के सम्मान को लेकर चिंता जता रही है. ये वही कांग्रेस है, जिसने बाबासाहेब के जीवित रहते उनका सम्मान नहीं किया. दशकों से कांग्रेस ने उनकी तस्वीर तक संसद में लगाने की जहमत नहीं उठाई. बाबा साहेब की पहली तस्वीर संसद में तब लगी, तब गैर-कांग्रेसी सरकार सत्ता में आई. उसने बाबा साहेब को भारत रत्न तक देना जरूरी नहीं समझा.’

    वहीं केंद्रीय मंत्री रामदास अठावले भी अमित शाह के बचाव में नजर आए. उन्होंने कांग्रेस पर हमला बोलते हुए कहा कि उनको इस मामले में टिप्पणी करने का कोई अधिकार नहीं है. अठावले ने कहा कि अमित शाह यह बताना चाह रहे थे कि किस तरह कांग्रेस ने आंबेडकर का अपमान किया. उन्होंने खुद उनका कोई अपमान नहीं किया.

    नीतीश-नायडू ने नहीं खोले पत्ते
    हालांकि आंबेडकर पर मचे घमासान को लेकर अब तक जदयू चीफ नीतीश कुमार, एकनाथ शिंदे की शिवसेना और अजित पवार की एनसीपी और आंध्र प्रदेश के सीएम चंद्रबाबू नायडू की पार्टी TDP की ओर से कोई बयान नहीं आया है. दिल्ली के पूर्व मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल ने नीतीश और नायडू दोनों ही नेताओं को पत्र लिखकर बीजेपी को समर्थन देने पर विचार करने को कहा है.

    केजरीवाल ने अपने खत में लिखा कि अमित शाह का बयान बीजेपी के संविधान और बाबा साहेब के प्रति रवैया को दिखाता है. ऐसे महान शख्स का अपमान अस्वीकार्य है. बाबा साहेब के समर्थक बीजेपी का समर्थन नहीं कर सकते. आप इस बारे में सोचें.

    उद्धव ने भी बोला हमला
    वहीं उद्धव ठाकरे ने आंबेडकर पर शाह के बयान को लेकर एकनाथ शिंदे और अजित पवार पर हमला बोला है. उन्होंने कहा, ‘जिस तरह से बीजेपी हमें संविधान देने वाले का अपमान कर रही है, वह हमें स्वीकार्य नहीं है. क्या बीजेपी और आरएसएस अमित शाह के खिलाफ कार्रवाई करेंगे? या उन्होंने अमित को ऐसा कहने के लिए कहा?…क्या यह उन अन्य पार्टियों को स्वीकार्य है जिन्होंने अमित शाह को समर्थन दिया है, चाहे वह चंद्रबाबू नायडू हों या नीतीश कुमार या अजीत पवार? क्या इसके बाद भी रामदास अठावले उनके मंत्रिमंडल में बने रहेंगे?”

    यानी लड़ाई एनडीए में शामिल कुछ पार्टियां बीजेपी के साथ खड़ी हैं जबकि बाकी ने अभी तक अपने पत्ते नहीं खोले हैं. लेकिन अगर पिछले रिकॉर्ड की बात करें तो अब तक तमाम मुद्दों पर बीजेपी की सहयोगी पार्टियां उसके साथ ही खड़ी नजर आई हैं. यानी इस मुद्दे पर बीजेपी अकेली तो नहीं है. लेकिन देखना होगा कि इस मुद्दे पर नीतीश, नायडू, एकनाथ शिंदे और अजित पवार का क्या रुख रहेगा.

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