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    April 23, 2025

    कैसे मापा जाता है धरती का तापमान.. कौन सी तकनीक का होता है इस्तेमाल? पूरा प्रॉसेस जान घूम जाएगा माथा।

    1 min read
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    धरती का तापमान हर साल नया रिकॉर्ड बना रहा है. वैज्ञानिकों ने पाया है कि 2024 अब तक का सबसे गर्म साल था और पिछले 10 साल रिकॉर्ड स्तर पर गर्म रहे हैं. लेकिन सवाल यह है कि वैज्ञानिक यह सब कैसे जानते हैं?

    धरती का तापमान हर साल नया रिकॉर्ड बना रहा है. वैज्ञानिकों ने पाया है कि 2024 अब तक का सबसे गर्म साल था और पिछले 10 साल रिकॉर्ड स्तर पर गर्म रहे हैं. लेकिन सवाल यह है कि वैज्ञानिक यह सब कैसे जानते हैं? क्या आपने कभी सोचा है कि वैज्ञानिक धरती का वैश्विक तापमान कैसे मापते हैं? यह प्रक्रिया जितनी रोचक है.. उतनी ही जटिल भी. आइए आपको सरल भाषा में इसका पूरा प्रॉसेस समझाते हैं.

    तापमान मापने का काम कैसे होता है?
    पृथ्वी के अलग-अलग हिस्सों से तापमान का डेटा इकट्ठा करना पहला कदम है. धरती पर मौजूद हजारों मौसम केंद्रों में लगे थर्मामीटर वायुमंडल का तापमान मापते हैं. वहीं, महासागरों में तैरते जहाज और बुआ (buoys) समुद्र की सतह का तापमान रिकॉर्ड करते हैं. इन सभी डेटा को इकट्ठा कर एक औसत वैश्विक तापमान निकाला जाता है.

    यह इतना आसान नहीं..
    लेकिन यह इतना आसान नहीं है. वैज्ञानिक सीधे औसत नहीं निकालते बल्कि तापमान विसंगतियों (temperature anomalies) पर ध्यान देते हैं. इसका मतलब है कि किसी जगह का तापमान उसकी सामान्य स्थिति से कितना अलग है. NASA के वैज्ञानिक 1951-1980 के औसत तापमान को सामान्य मानते हैं और उसके मुकाबले डेटा का विश्लेषण करते हैं.

    विसंगतियां क्यों हैं महत्वपूर्ण?
    कल्पना कीजिए कि किसी पहाड़ी क्षेत्र का तापमान हमेशा एक मैदानी इलाके से कम रहेगा. लेकिन अगर दोनों जगह सामान्य से 2°C ज्यादा गर्म हैं.. तो वैज्ञानिक इसे एक समान बदलाव मानते हैं. यह तरीका यह सुनिश्चित करता है कि भौगोलिक अंतर का असर न पड़े.

    डेटा गैप्स को कैसे भरा जाता है?
    दुनिया के हर कोने में मौसम केंद्र नहीं हैं. जैसे सहारा रेगिस्तान या अंटार्कटिका में बहुत कम स्टेशन हैं. यहां वैज्ञानिक पास के केंद्रों के डेटा के आधार पर अनुमान लगाते हैं. इन अनुमानों को वजन दिया जाता है. यानी जो जगह स्टेशन के करीब होती है उसे ज्यादा महत्व मिलता है.

    शहरी गर्मी का प्रभाव कैसे हटाते हैं?
    शहरों में कंक्रीट और एस्फाल्ट जैसी सतहें ज्यादा गर्मी सोखती हैं, जिससे वहां का तापमान ऊंचा हो सकता है. NASA के वैज्ञानिक इस शहरी गर्म द्वीप प्रभाव (Urban Heat Island Effect) को हटाने के लिए शहरी क्षेत्रों के डेटा को औसत से अलग कर देते हैं.

    अन्य संगठन और प्रमाण
    NASA के अलावा यूरोप के Copernicus Climate Change Center, अमेरिका का NOAA, और यूके का Met Office भी तापमान रिकॉर्ड करते हैं. इन सभी की गणना अलग-अलग तरीकों से होती है. लेकिन उनके नतीजे लगभग एक जैसे होते हैं. इसके अलावा पेड़ों के छल्ले, बर्फ के कोर और मूंगे की चट्टानों जैसे प्राकृतिक प्रमाण भी तापमान में बदलाव की पुष्टि करते हैं.

    चिंताजनक स्थिति
    NASA के डेटा से पता चलता है कि 1970 के बाद से तापमान में सबसे तेज वृद्धि हुई है. यह वृद्धि 2000 सालों में सबसे ज्यादा है. इसका कारण मुख्य रूप से ग्रीनहाउस गैसों का उत्सर्जन है. इसके प्रभाव हर जगह दिख रहे हैं.. अधिक गर्मी की लहरें, जंगली आग और बाढ़.

    1.5 डिग्री का लक्ष्य और भविष्य की चिंता
    वैज्ञानिकों का कहना है कि औसत तापमान में 1.5°C की वृद्धि होने से पहले हमें कार्बन उत्सर्जन कम करना होगा. इस स्तर को पार करना जलवायु परिवर्तन के प्रभावों को और भी गंभीर बना देगा.

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