पैसे देने के बाद भी नहीं मिला आशियाना, अब हाईकोर्ट ने NBCC से कहा- ब्याज के साथ दो पूरा पैसा.
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अदालत ने कहा कि घर खरीदने में सालों की बचत, प्लानिंग और इमोशनल इनवेस्टमेंट शामिल होता है. किसी भी प्रकार की गड़बड़ होने पर घर खरीदने वालों को कंपनसेशन देना पिछली गड़बड़ी को सुधारने के साथ भविष्य में इस तरह की चीजों को रोकने का भी मामला है.
दिल्ली हाई कोर्ट ने एनबीसीसी (NBCC) को एक फ्लैट खरीदार को ब्याज समेत 76 लाख रुपये से ज्यादा वापस करने के लिए कहा है. साथ ही याचिकाकर्ता को हुई ‘मानसिक पीड़ा’ के लिए पांच लाख रुपये की पेनाल्टी देने के लिए भी कहा. पब्लिक सेक्टर की कंपनी के मकान खरीदार को 2012 में खरीदे गए फ्लैट का कब्जा नहीं देने पर अदालत ने यह कदम उठाया. न्यायमूर्ति सुब्रमण्यम प्रसाद ने एनबीसीसी (NBCC) के खिलाफ घर खरीदार की पिटीशन को स्वीकार करते हुए कहा कि घर खरीदना किसी व्यक्ति या परिवार का अपनी लाइफ में किए गए सबसे अहम निवेश में से एक है.
2017 में 76 लाख रुपये से ज्यादा का भुगतान किया
अदालत की तरफ से कहा गया कि घर खरीदने में अक्सर सालों की बचत, सावधानी से प्लानिंग और इमोशनल इनवेस्टमेंट शामिल होता है. इसलिए किसी भी प्रकार की गड़बड़ होने पर घर खरीदने वालों को कंपनसेशन देना पिछली गड़बड़ी को सुधारने के साथ भविष्य में इस तरह की चीजों को रोकने का भी मामला है. याचिका दायर करने वाले एक रिटायर्ड सरकारी कर्मचारी ने कहा कि उसने 2012 में गुरुग्राम के लिए शुरू हुए प्रोजेकट ‘एनबीसीसी ग्रीन व्यू अपार्टमेंट’ में फ्लैट खरीदा था. 2017 में 76 लाख रुपये से ज्यादा का भुगतान करने के बावजूद उन्हें फ्लैट का पजेशन नहीं मिला.
पिछले 10 साल से उसके पैसे से वंचित किया गया
अदालत की तरफ से 8 मई को दिये गए आदेश में कहा गया कि याचिकाकर्ता को पिछले 10 साल से उसके पैसे से वंचित किया गया है और स्ट्रक्चर में खामी से घरों का निर्माण किया गया, इससे प्रोजेक्ट पूरी तरह अधर में लटक गया. एनबीसीसी ने पैसे पर ब्याज का भुगतान करने और याचिकाकर्ता के पुनर्वास को लेकर अनिच्छा जतायी. ऐसे में जरूरी है कि कंपनी से कठोरता से निपटा जाए. अदालत ने कहा, इसलिए, यह अदालत तत्काल रिट याचिका की अनुमति देने को इच्छुक है.
प्रतिवादी (NBCC) को निर्देश दिया जाता है कि वह भुगतान की गई पूरी राशि पर आज से छह हफ्ते की अवधि के अंदर 30 जनवरी, 2021 से अबतक 12 प्रतिशत ब्याज के साथ वापस करे. आदेश के अनुसार इस तथ्य को ध्यान में रखते हुए कि याचिकाकर्ता को पिछले सात साल में घर बदलने पड़े और काफी मानसिक पीड़ा का भी सामना करना पड़ा है, ऐसे में यह अदालत एनबीसीसी को याचिकाकर्ता को हर्जाने के रूप में पांच लाख रुपये का भुगतान करने का निर्देश देती है.
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