हिन्दी दिवस: तमाम चुनौतियों और विरोधों को झेलती एक भाषा की अविरल यात्रा बिलकुल गंगा की तरह।
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हिन्दी दिवस: तमाम चुनौतियों और विरोधों को झेलती एक भाषा की अविरल यात्रा बिलकुल गंगा की तरह।
आज हिन्दी दिवस है. 1953 से अब तक हिन्दी दिवस को विशेष रूप से अंग्रेजी की बढ़ती लोकप्रियता को कम करने के उद्देश्य से मनाया जाता रहा है।
2011 की जनसंख्या के आंकड़ों को मानें तो 26 फीसदी भारतीय हिन्दी को मातृभाषा के तौर पर इस्तेमाल करते हैं संविधान में इसको राजभाषा का दर्जा प्राप्त है भारत में बोली जाने वाली भाषाओं में हिन्दी का स्थान सबसे ऊपर है, लेकिन इसको लेकर तमिलनाडु और दक्षिण के कई राज्यों में विरोध भी है, तमिलनाडु में हिन्दी के विरोध में आंदोलन भी होता रहता है हिन्दी के सामने एक नहीं कई तरह चुनौतियां हैं |
दरअसल हिन्दी भले ही भारत के सबसे ज्यादा राज्यों में बोली जाती हो लेकिन इसको अभी तक अभिजात्य वर्ग की भाषा का दर्जा नहीं मिला है , इस मामले में अंग्रेजी किसी भारतीय भाषाओं से भी ऊपर है , वहीं हिन्दी भी दूसरी भाषाओं के शब्दों को अपने में समाहित करने में पीछे नहीं है , हिन्दी अब संस्कृतनिष्ठ भाषा से हिंग्लिश में बदल रही है. गंगा की तरह हिन्दी भी तमाम तरह की चुनौतियों, विरोधाभाषों को सहेजते हुए सदियों से अविरल है |
भारत के संविधान में 14 सितंबर 1949 को देवनागरी में लिखी गई हिन्दी को राष्ट्रभाषा के रूप में स्वीकार किया गया था , हिन्दी को भारत की आधिकारिक भाषा माना गया. वहीं भारत में पहला हिन्दी दिवस 14 सितंबर 1953 को मनाया गया था |
25.79 करोड़ भारतीय हिन्दी का उपयोग मातृभाषा के रूप में करते हैं. जबकि 42.50 करोड़ लोग इसकी 50 से अधिक बोलियों में से एक को इस्तेमाल करते हैं , हिन्दी दिवस को एक खास मकसद से मनाना शुरू किया गया था , दरअसल अंग्रेजों के भारत छोड़ने के बाद भी भारत में अंग्रेजी की अहमियत दिन व दिन बढ़ती जा रही थी , ऐसे में युवाओं को हिन्दी के महत्व को समझाने के लिए इसे मनाना शुरू किया गया |
वैसे तो भारत में बंगाली, तमिल, तेलुगु, कन्नड़, मलयालम, उड़िया, गुजराती, मराठी और पंजाबी जैसी कई भाषाएं बोली जाती हैं , लेकिन देश में अधिकतर लोग बोलचाल में हिन्दी भाषा का उपयोग करते हैं ,वहीं अगर भारत के अलावा बात की जाए तो मॉरीशस, फिजी, सूरीनाम, गुयाना, त्रिनिदाद, टोबैगो और नेपाल ऐसे देश हैं जहां हिन्दी बोली जाती है , हिन्दी को 1000 साल पुरानी भाषा माना जाता है. जो संस्कृत से निकली थी. आज हम हिन्दी के संपूर्ण विकास और इससे जुड़ी रोचक बातों को जानते हैं |
कैसे हुआ था हिन्दी का विकास |
हिन्दी भाषा का इतिहास लगभग एक हजार साल पुराना है , संस्कृत भारत की सबसे प्राचीन भाषा है , जिसे आर्य या देव भाषा भी कहा जाता है , हिन्दी को इसी आर्य भाषा यानी संस्कृत का उत्तराधिकारी माना जाता है |
दिलचस्प बात ये है कि संस्कृत से निकली ‘हिन्दी’ फारसी भाषा का शब्द है , जिसका मतलब है हिंद से संबंधित. हिन्दी शब्द सिन्धु से आया था , क्योंकि ईरानी भाषा में ‘स’ को ‘ह’ बोला जाता है , इस तरह सिन्धु शब्द से हिंद, और हिंद से हिन्दी बना है |
भारत में आर्य भाषाएं अलग-अलग काल में विभिन्न रूपों में बोली गईं , जैसे संस्कृत के बाद पालि, फिर प्राकृत और इसके बाद अपभ्रंश और इसके बाद हिन्दी भाषा बोली जानी शुरू हुई , हिन्दी का जन्म 1000 ईस्वी पूर्व माना जाता है , जिसे आधुनिक भारतीय आर्यभाषा भी माना जाता है |
कैसे हुआ हिन्दी का विकास
हिन्दी के विकास को भी तीन चरणों में माना जाता है , जैसे वर्तमान में पुरानी हिन्दी से ही हिन्दी की शुरुआत मानी जाती है , हालांकि अलग-अलग कालों में हिन्दी को भी अलग-अलग तरह से बोला गया है , जैसे 1100 से 1350 ईस्वी तक प्राचीन हिन्दी का उपयोग किया गया , वहीं 1350 से 1850 ईस्वी तक मध्यकालीन हिन्दी का उपयोग किया गया और 1850 से अब तक आधुनिक हिन्दी का उपयोग किया जा रहा है |
आदिकाल में बोली जाने वाली हिन्दी
हिन्दी भाषा की लिपि देवनागरी लिपि थी जो बाएं से दाएं ओर लिखी जाती है , लेकिन कई दशकों तक हिन्दी एक मिली-जुली भाषा के रूप में विकसित नहीं हो सकी , हालांकि, स्थानीय रूप से ये लंबे समय तक बोली गई , 10वीं से 15वीं सदी तक के समय को हिन्दी का आदिकाल कहा जाता है , इस काल में धीरे-धीरे ये अपभ्रंश के प्रभाव से मुक्त हुई और स्वतंत्र रूप से बोली जाने वाली भाषा बनी , जिसके बाद 15वीं सदी आने तक हिन्दी में साहित्य भी लिखा जाने लगा , उस दौर में दोहा, चौपाई जैसे छंदों की रचना होती थी , इसमें कबीर, चंदबरदाई, विद्यापति, गोरखनाथ आदि प्रमुख रचनाकार थे |
मध्यकाल में बोली गई हिन्दी
15वीं से 19वीं सदी तक का समय हिन्दी भाषा का मध्यकाल कहा जाता है , इस दौर में मुगलों के कारण फारसी, तुर्की, अरबी, पुर्तगाली, स्पेनी, फ्रांसीसी,अंग्रेजी आदि भाषाओं के शब्द हिन्दी में शामिल होने लगे थे, क्योंकि पश्चिमी एशिया और यूरोप से व्यापार के कारण बाहरी लोगों से भारत के लोगों का ज्यादा संपर्क होने लगा था , यह दौर हिन्दी साहित्य का स्वर्णिम युग माना जाता है , इसी काल में रीतिकालीन रचनाएं भी की जाने लगी थीं |
मध्यकाल में सूरदास, तुलसीदास, मीराबाई, मलिक मोहम्मद जायसी आदि भक्ति आंदोलन के कवियों ने हिन्दी को नई ऊंचाइयों तक पहुंचाया. इस दौरान उत्तर भारत में ब्रज और अवधी ही बोली गई , इसके साथ ही बघेली, भोजपुरी, बुंदेली, छत्तीसगढ़ी, गढ़वाली, हरिवाणी, कन्नौजी, कुमायूंनी, मागई, मारवाड़ी जैसी बोलियां भी हिन्दी से निकली मानी गईं |
कौन हैं आधुनिक हिन्दी के पितामह |
19वीं सदी के बाद के काल को हिन्दी के इतिहास का सबसे आधुनिक काल माना जाता है , इस दौरान हिन्दी कई बदलावों से गुजरी , इस काल में अंग्रेजी के साथ हिन्दी का भी प्रभाव बढ़ा , सबसे पहले खड़ी बोली का हिन्दी पर प्रभाव रहा जिसके बाद धीरे-धीरे हिन्दी फारसी के प्रभाव से भी मुक्त होने लगी , 1860 के बाद हिन्दी को आम भाषा के रूप में बोलचाल में उपयोग किया जाने लगा था , इसके बाद भारतेंदु हरिश्चंद्र ने हिन्दी को आधुनिक रूप दिया और उन्हीं को आधुनिक हिन्दी का पितामह भी माना गया |
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