कड़ी मेहनत और ईमानदारी से बना ‘गायत्री भोजनालय’ नांदगांव का प्रसिद्ध शुद्ध शाकाहारी केंद्र।
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नांदगांव: “कोई भी काम छोटा नहीं होता, मेहनत, ईमानदारी और प्रामाणिकता से किया गया कार्य हमेशा सफलता दिलाता है,” यह कहना है नांदगांव के प्रसिद्ध ‘गायत्री भोजनालय‘ के संस्थापक श्री.वाल्मिक हरिदास टिळेकर का। उनकी सफलता की कहानी संघर्ष और आत्मनिर्भरता की मिसाल है।
श्री.वाल्मिक हरिदास टिळेकर का जन्म एक साधारण किसान परिवार में हुआ। उनके पिता एक जमीनदार के यहां सालदार के रूप में काम करते थे और महीने में मात्र 400 रुपये की मजूरी से परिवार का भरण-पोषण करते थे। कठिन आर्थिक परिस्थितियों के बावजूद, उन्होंने अपने दोनों पुत्रों, प्रवीण और वाल्मिक, की शिक्षा पूरी करवाई।
शिक्षा पूर्ण करने के बाद भी नौकरी न मिलने के कारण श्री.वाल्मिक टिळेकर अपनी बहन के गांव भडगांव गए, जहां उन्होंने होटल व्यवसाय की बारीकियां सीखीं। इसी दौरान उनके मन में नांदगांव में अपना भोजनालय शुरू करने का विचार आया। हालांकि, उस समय उनके पास कोई पूंजी नहीं थी, लेकिन उन्होंने साहस दिखाते हुए सावकार से ब्याज पर पैसे उधार लिए और अपने सपने की ओर कदम बढ़ाया।
अपना व्यवसाय शुरू करने के बाद श्री.वाल्मिक टिळेकर ने खुद को एक मेहनती कारागीर के रूप में स्थापित किया। उन्होंने पूरी लगन और समर्पण के साथ ग्राहकों को स्वादिष्ट और पौष्टिक भोजन परोसने की जिम्मेदारी निभाई। व्यवसाय के शुरुआती दिनों में उन्होंने सभी काम खुद किए और हर ग्राहक को संतुष्ट करने का विशेष ध्यान रखा। उनकी इसी मेहनत और गुणवत्ता के प्रति समर्पण के कारण जल्द ही ‘गायत्री भोजनालय‘ नांदगांव में शुद्ध शाकाहारी भोजन के लिए एक विश्वसनीय नाम बन गया।
आज भी, नांदगांव में ‘गायत्री भोजनालय‘ अपनी शुद्धता, स्वाद और सस्ती दरों के लिए जाना जाता है। श्री.वाल्मिक टिळेकर का मानना है कि अगर कोई व्यक्ति मेहनत, ईमानदारी और प्रामाणिकता के साथ किसी भी काम में जुट जाए, तो सफलता अवश्य मिलती है। उनकी कहानी उन सभी लोगों के लिए प्रेरणा है, जो अपने सपनों को पूरा करने का साहस रखते हैं।
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