कचरे’ ने कर दिया डोनाल्ड ट्रंप के लिए ‘कमाल’, कमला हैरिस क्यों हार गईं?
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चुनाव से पहले ऐसा लग रहा था कि डोनाल्ड ट्रंप और कमला हैरिस के बीच कांटे की टक्कर होगी लेकिन ऐसा नहीं हुआ.
अमेरिकी राष्ट्रपति चुनावों ने स्पष्ट जनादेश दे दिया है कि डोनाल्ड ट्रंप 47वें राष्ट्रपति बनने जा रहे हैं. चुनाव से पहले ऐसा लग रहा था कि डोनाल्ड ट्रंप और कमला हैरिस के बीच कांटे की टक्कर होगी लेकिन ऐसा नहीं हुआ. बैटलग्राउंड माने जाने वाले सात स्विंग स्टेट्स में भी उनको बंपर समर्थन मिला और वो बड़ी जीत की तरफ बढ़ रहे हैं. सवाल उठता है कि कमला हैरिस क्यों पिछड़ गईं जबकि ट्रंप के साथ जब उनकी पब्लिक डिबेट हुई थी उसके बाद से ही उनके ग्राफ और लोकप्रियता में काफी बढ़ोतरी हुई थी. इस पृष्ठभूमि में आइए जानते हैं कि कमला हैरिस क्यों हार गईं?
सत्ता विरोधी लहर: राष्ट्रपति जो बाइडेन की टीम में कमला हैरिस उपराष्ट्रपति रहीं. घरेलू और अंतरराष्ट्रीय मुद्दों को लेकर जो बाइडेन की पब्लिक रेटिंग में हालिया दौर में काफी गिरावट दर्ज की गई थी. घरेलू स्तर पर महंगाई, बेरोजगारी के मुद्दे पर वो बैकफुट पर रहे और अंतरराष्ट्रीय स्तर पर इजरायल-हमास युद्ध एवं रूस-यूक्रेन युद्ध को लेकर उन पर निष्क्रिय रहने के आरोप लगे. स्थिति इतनी खराब हो गई कि अपनी पहली पब्लिक डिबेट में वो ट्रंप के मुकाबले कमजोर साबित हुए और उन पर दबाव बनाया गया कि वो चुनावी मैदान से हटें. सत्तारूढ़ डेमोक्रेटिक पार्टी की इस कमजोरी का खामियाजा कमला हैरिस को भी भुगतना पड़ा. विरोध में डोनाल्ड ट्रंप लोगों को ये समझाने में सफल रहे कि वो राष्ट्रपति बनने पर इन युद्धों को रुकवा सकते हैं या अंतरराष्ट्रीय क्षेत्र में अमेरिका की पुरानी साख को दिला सकते हैं. अमेरिका में जब 2016-20 के दौरान वो राष्ट्रपति रहे थे तो उनके दौर में अमेरिका में बेरोजगारी और महंगाई में कमी दर्ज की गई थी.
नाम वापस लेने में देरी: जो बाइडेन ने जब चुनाव से हटने की घोषणा की तो उस वक्त चुनाव में केवल तीन महीने ही बचे थे. राष्ट्रपति पद के लिहाज से कमला हैरिस को चुनाव लड़ने और प्रचार करने के लिए कम वक्त मिला. जबकि इसके विपरीत डोनाल्ड ट्रंप लगातार चार सालों से सत्ता से दूर रहने के बावजूद कोर्ट केसों और तमाम वजहों से रिपब्लिकन पार्टी के पसंदीदा नेता बने रहे. उनकी उम्मीदवारी का पार्टी के भीतर से ज्यादा विरोध नहीं हुआ.
कचरे की बात: ऐन चुनाव के बीच जो बाइडेन ने डोनाल्ड ट्रंप के समर्थकों को कचरा कहकर अपनी पार्टी को पूरी तरह से बैकफुट पर ला दिया. कमला हैरिस को इस तरह के बयान से दूरी बनानी पड़ी. जबकि इसके बरक्स डोनाल्ड ट्रंप ने इस बयान को भावनात्मक रूप देते हुए अमेरिकी अस्मिता से जोड़कर लोगों को अपनी तरफ कर लिया.
इमीग्रेशन का मसला: ये डोनाल्ड ट्रंप का सबसे मजबूत चुनावी कार्ड साबित हुआ. ट्रंप ने कहा था कि वो सत्ता में आने की स्थिति में एक करोड़ अवैध घुसपैठियों को देश से निकाल देंगे. अपनी सीमाओं को सील कर देंगे ताकि अवैध अप्रवासी नहीं आ सकें. अपने पहले कार्यकाल में भी उन्होंने मेक्सिको बॉर्डर के साथ दीवार खड़ी करने की बात कही थी और उस दिशा में काम भी किया था. उन्होंने कहा कि वो अमेरिका को फिर से महान बनाना चाहते हैं. अमेरिका की समृद्धि और तरक्की पर पहला हक अमेरिकियों का है. नौकरियों में उनकी नीतियां संरक्षणवादी होंगी. उनकी ये बात श्वेत, वर्किंग क्लास अमेरिकियों को पसंद आई. इमीग्रेशन पर बाइडेन सरकार की उदारवादी नीतियां कमला हैरिस पर भारी पड़ीं. कमला हैरिस ने महिला मुद्दे खासकर गर्भपात के मुद्दे पर जरूर बढ़त ली लेकिन इसके दम पर चुनावी कामयाबी नहीं मिल सकी.
ट्रंप को भावनात्मक समर्थन: चुनाव प्रचार के दौरान दो बार डोनाल्ड ट्रंप पर जानलेवा हमले की कोशिश और लगातार चार साल तक मीडिया ट्रायल के कारण एक हद तक अमेरिकी समुदाय में उनके लिए सहानुभूति की भावना पनपी. आम अमेरिकी लोगों को लगा कि डोनाल्ड ट्रंप उनके लिए लड़ रहे हैं लेकिन उनकी आवाज को चुप कराने की कोशिश की जा रही है. डोनाल्ड ट्रंप हमारी रोजी-रोटी की चिंता कर रहे हैं लेकिन उनको मारने का प्रयास किया जा रहा है. रही-सही कसर एलन मस्क जैसे ट्रंप के समर्थकों ने पूरी कर दी. उन्होंने चुनावों में ये बात पुरजोर तरीके से रखी कि ये अमेरिकी समुदाय के लिए आखिरी चुनाव है. उनका कहने का मतलब था कि यदि इस बार फिर हैरिस की पार्टी जीत गई तो बैटलग्राउंड कहे जाने वाले सात स्विंग राज्यों में उदारवादी नीतियों के माध्यम से प्रवासियों को इस कदर भर दिया जाएगा कि ये राज्य भी डेमोक्रेटिक पार्टी के समर्थन में आ जाएंगे. इससे हमेशा अमेरिका में डेमोक्रेटिक पार्टी के लोग ही चुनाव जीतने की स्थिति में रहेंगे और रिपब्लिकन वोटरों की ताकत कम हो जाएगी.
दरअसल अमेरिका के 50 राज्यों में से 43 ऐसे हैं जहां पहले से ही पता होता है कि कौन चुनाव जीतेगा? कहने का मतलब है कि वहां का वोटिंग पैटर्न एक तरीके से सेट जैसा है. इनमें से कुछ राज्य 1980 से डेमोक्रेटिक और कुछ रिपब्लिकन को सपोर्ट करते आ रहे हैं. लेकिन सात राज्य ऐसे हैं जो हर चुनाव में अपना रुख बदल देते हैं. इन्हीं सात राज्यों को स्विंग स्टेट्स या बैटलग्राउंड स्टे्टस कहा जाता है. एलन मस्क ने स्विंग स्टेट्स के बारे में ही ऐसी बातें कहीं. डोनाल्ड ट्रंप की भारी जीत देखकर लग रहा है कि कहीं न कहीं लोगों ने उनकी बात को स्वीकारा क्योंकि इमीग्रेशन इस बार के अमेरिकी चुनाव में सबसे बड़ा मुद्दा था. चुनाव जीतने के बाद अपने विजयी संबोधन में संभवतया इसलिए ही डोनाल्ड ट्रंप ने अपनी जीत में योगदान के लिए मस्क के प्रति आभार प्रकट किया.
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