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    April 22, 2025

    G7 Meet: क्या हिरोशिमा में पीएम मोदी के सामने जापान चलेगा यह ‘इमोशनल ट्रिक’? फिलहाल व्यापार है बड़ी जरूरत |

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    G7 meet: विदेशी मामलों के जानकारों और वरिष्ठ राजनयिकों का कहना है कि जापान समेत कई देश परमाणु अप्रसार संधि (एनपीटी) को समूची दुनिया में परमाणु संपन्न देशों के साथ लागू करना चाहते हैं। क्योंकि भारत शुरुआत से ही एनपीटी को भेदभाव पूर्ण मानता आया है और अपने न्यूक्लियर प्रोग्राम को शांतिपूर्ण उद्देश्यों के लिए ही अपनाने की बात करता है…
    इंदिरा गांधी और अटल बिहारी वाजपेई के प्रधानमंत्रित्व काल में हुए पोखरण परमाणु विस्फोटों के बाद पहली बार देश के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी जापान के हिरोशिमा जा रहे हैं। बताया जा रहा है कि इस दौरान प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी समेत जी7 देशों के राष्ट्राध्यक्ष और मेहमान देशों के प्रमुखों को हिरोशिमा में उन परिवारों से भी मिलवाया जाएगा, जिनके परिजन परमाणु हमले के शिकार हुए थे। विदेशी मामलों के जानकारों का मानना है कि इसके पीछे जापान की एक मंशा यह भी हो सकती है कि वह प्रधानमंत्री मोदी के सामने हिरोशिमा में ‘इमोशनल ग्राउंड’ पर परमाणु अप्रसार संधि (एनपीटी) की भूमिका बनाए। हालांकि भारत पहले से ही अंतरराष्ट्रीय मंचों पर यह कहता आया है कि उसका परमाणु कार्यक्रम शांतिपूर्ण उद्देश्य के लिए है। प्रधानमंत्री मोदी की जापान यात्रा के दौरान भारत और जापान के बीच व्यापारिक गतिविधियों को बढ़ावा देने के लिहाज से नई उम्मीदें नजर आ रही है।
    देश के पहले प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू के बाद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी दूसरे पीएम हैं, जो हिरोशिमा पहुंच रहे हैं। विदेशी मामलों के जानकार और वरिष्ठ राजनयिक एसएन प्रकाश कहते हैं कि मोदी का जी-7 में शिरकत करना अंतरराष्ट्रीय स्तर पर भारत की बढ़ रही महत्ता की निशानी ही है। वह कहते हैं कि बीते कुछ सालों में भारत ने जिस तरीके से अंतरराष्ट्रीय स्तर पर विकसित देशों में धाक जमाते हुए समूची दुनिया में ख्याति अर्जित की है, उससे पूरी दुनिया की निगाहें भारत की ओर लगी हुई हैं। विदेशी मामलों के जानकारों का मानना है कि प्रधानमंत्री मोदी हिरोशिमा में रहेंगे, क्योंकि हिरोशिमा ही एक ऐसा शहर है, जहां पर पहला परमाणु हमला हुआ था और इसके प्रभावित परिवार आज भी उस हमले का दंश झेल रहे हैं। विदेशी मामलों के विशेषज्ञों का मानना है कि जापान परमाणु संपन्न देशों को हिरोशिमा में उन परिवारों से भी मिलवाने की योजना बना रहा है, जो इस हमले का दंश झेल चुके हैं।

    विदेशी मामलों के जानकारों और वरिष्ठ राजनयिकों का कहना है कि जापान समेत कई देश परमाणु अप्रसार संधि (एनपीटी) को समूची दुनिया में परमाणु संपन्न देशों के साथ लागू करना चाहते हैं। क्योंकि भारत शुरुआत से ही एनपीटी को भेदभाव पूर्ण मानता आया है और अपने न्यूक्लियर प्रोग्राम को शांतिपूर्ण उद्देश्यों के लिए ही अपनाने की बात करता है। बावजूद इसके अन्य परमाणु संपन्न देश भारत समेत दूसरे देशों के साथ इस संधि पर एकमत होने के लिए पहले भी कई प्लेटफार्म पर बातचीत करते आए हैं। विदेशी मामलों के जानकारों का मानना है कि पहली बार हिरोशिमा में प्रधानमंत्री मोदी पीस मेमोरियल हॉल भी पहुंच रहे हैं। जो हिरोशिमा में परमाणु हमले में मारे गए लोगों और उसके बाद की बर्बादी का दंश झेल रहे परिवारों की याद में तैयार किया गया है। माना यह भी जा रहा है कि जापान इमोशनल ग्राउंड पर ही दुनिया के परमाणु संपन्न देशों को एनपीटी के लिहाज से एकमत होने का संदेश भी देने की कोशिश भी करेगा।

    प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की विदेश यात्रा के मद्देनज़र विदेश सचिव का कहना है कि पीएम शुक्रवार सुबह हिरोशिमा में जी-7 देशों की बैठक में शामिल होने के लिए रवाना हो रहे हैं। अपने दौरे में विभिन्न बैठकों के बाद पीएम जापान के पीएम के साथ द्विपक्षीय वार्ता करेंगे। मोदी हिरोशिमा में महात्मा गांधी की प्रतिमा का अनावरण भी करेंगे। जापान समेत पूरब के देशों में अपनी सेवाएं दे चुके विदेश सेवा के अधिकारी एसएन प्रकाश कहते हैं कि जापान भारत को अपना बड़ा व्यावसायिक पार्टनर बनाने की दिशा में पहले भी कई कदम उठा चुका है। उनका कहना है कि जी7 के देश कभी पूरी दुनिया की 64 फीसदी विश्व की अर्थव्यवस्था पर अपनी हिस्सेदारी रखते थे। लेकिन बदलते हालात और भारत जैसे विकासशील देशों की बढ़ती रफ्तार से जी7 देशों की यह हिस्सेदारी घटकर 37 फ़ीसदी से भी कम के करीब ही रह गई है। इन देशों के लिए यह बड़ी चुनौती भी है और आर्थिक नजरिए से इसको बढ़ाने का प्रयास भी हैं।
    इसी लिहाज से जापान में शुरू होने वाले जी7 देशों की बैठक में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और जापान के प्रधानमंत्री की द्विपक्षीय वार्ता बहुत महत्वपूर्ण मानी जा रही है। जानकारों का मानना है कि भारत के साथ जापान अपने व्यापारिक क्षेत्र और निवेश को बढ़ाना चाहता है। आंकड़ों के मुताबिक इस वक्त भारत में जापान की ओर से सालाना तकरीबन 6 बिलियन डॉलर का निवेश किया जा रहा है। जापान इस निवेश को और कई गुना बढ़ाकर भारत के साथ व्यापारिक संधि को मजबूत कर अपने रिश्ते मजबूत करना चाह रहा है। माना यही जा रहा है कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के साथ होने वाली द्विपक्षीय वार्ता में जापान भारत के साथ और बेहतर आर्थिक और सांस्कृतिक रिश्तो की नींव को मजबूत करेगा।

    इसके अलावा जापान फ्री एंड ओपन इंडो पैसिफिक (एफओआईपी) विकास के लिहाज से 75 बिलियन डॉलर के निवेश की और तैयारी कर रहा है। विदेशी मामलों के जानकार और फॉरेन ट्रेड एक्सपर्ट बोर्ड के डायरेक्टर अनुज बाधवा कहते हैं कि जापान जिस तरीके से इंडो पेसिफिक रीजन में म्यांमार, थाईलैंड के साथ त्रिपक्षीय राजमार्ग और अन्य मल्टीमॉडल परियोजनाओं को जोड़ने की तैयारी कर रहा है, उसके केंद्र में न सिर्फ भारत है, बल्कि भारत के साथ पड़ोसी मुल्क बांग्लादेश को भी आर्थिक दृष्टिकोण से निवेशक के रूप में देखा जा रहा है। विदेशी मामलों के जानकारों का मानना है कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की जी7 में |

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