संघर्ष से सफलता तक: प्रशांत वसंत बोंबले (झोपे) की प्रेरणादायक कहानी।
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बुलढाणा: मलकापुर, बुलढाणा के प्रसिद्ध व्यवसायी प्रशांत वसंत बोंबले (झोपे) ने अपने जीवन में अनेक संघर्षों का सामना कर एक कामगार से सफल उद्यमी बनने तक का सफर तय किया है। उनकी यह कहानी न केवल मेहनत और लगन का प्रतीक है, बल्कि युवाओं के लिए एक प्रेरणा स्रोत भी है।
शुरुआती जीवन और पारिवारिक संघर्ष
प्रशांत बोंबले का जन्म जलगांव जिले के मुक्ताईनगर तालुका के रूईखेड गांव में हुआ। उनके पिता वसंत बोंबले की आर्थिक स्थिति काफी कमजोर थी, जिससे परिवार को दो वक्त की रोटी के लिए भी संघर्ष करना पड़ता था। इस कठिन परिस्थिति के कारण उनका परिवार बुलढाणा जिले के मोताळा तालुका के तळणी गांव में आकर बस गया।
प्रशांत जी के पिता वसंत बोंबले बाद में पुलिस विभाग में हवलदार के पद पर भर्ती हुए और ईमानदारी से अपनी सेवाएं दीं। परिवार में दो बहनों के बाद प्रशांत एकमात्र पुत्र हैं।
शिक्षा और शुरुआती कामकाज
प्रशांत बोंबले ने वर्ष 1996 में बारहवीं की परीक्षा उत्तीर्ण की और जी.एस. कॉलेज, खामगांव से स्नातक की डिग्री प्राप्त की। उन्होंने सरकारी नौकरी के लिए कई प्रतियोगी परीक्षाएं दीं, लेकिन आर्थिक तंगी के कारण वे सरकारी सेवा में प्रवेश नहीं कर सके।
कॉलेज के दिनों में उन्होंने एक सोनार की दुकान में बिना वेतन के काम करना शुरू किया। अपनी मेहनत और ईमानदारी से उन्होंने दुकान के मालिक का विश्वास अर्जित किया और धीरे-धीरे पूरी दुकान की जिम्मेदारी संभाल ली।
व्यवसाय की शुरुआत
वर्ष 2003 में, प्रशांत जी ने अपने माता-पिता के पास जमा चांदी के कुछ आभूषणों को आधार बनाकर मलकापुर मेन रोड पर एक छोटी-सी दुकान में बेंटेक्स (कटलरी) का व्यवसाय शुरू किया। ग्राहकों को उचित मूल्य और बेहतर सेवा देने के कारण उन्होंने अपनी एक अलग पहचान बनाई।
2004 में उन्होंने चांदी के आभूषणों का व्यापार शुरू किया और 2005 में माता-पिता के सौभाग्य के 65 ग्राम सोने के आभूषणों से ‘श्री मुक्ताई ज्वेलर्स‘ की नींव रखी।
सफलता की ओर बढ़ते कदम
अपने व्यवसाय को स्थापित करने के लिए उन्होंने पूरे 10 वर्षों तक कड़ी मेहनत की। वर्ष 2006 तक वे साइकिल से यात्रा करते थे। 2011 में, उनके पिता की पुलिस सेवा से सेवानिवृत्ति के बाद प्राप्त धन से उन्होंने मलकापुर बुलढाणा मेन रोड पर अपनी खुद की दुकान खरीदी और ‘श्री मुक्ताई ज्वेलर्स‘ का विस्तार किया।
प्रशांत बोंबले हमेशा से अपने ग्राहकों के हित को प्राथमिकता देते हैं। उनके नेतृत्व में काम करने वाले कर्मचारी परिवार के सदस्य की तरह हैं और उन्हें सम्मानपूर्वक व्यवहार मिलता है। उनका मानना है कि दुकान में काम करने वाला हर व्यक्ति मालिक की तरह जिम्मेदारी निभाता है, जिससे उनके व्यवसाय में सामूहिक उत्तरदायित्व की भावना बनी रहती है।
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