पृथ्वी से टकराने आ रहा हर एस्टेरॉयड तबाह हो जाएगा! वैज्ञानिकों ने खोजी गजब की तकनीक।
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पृथ्वी से टकराने आ रहा हर एस्टेरॉयड तबाह हो जाएगा! वैज्ञानिकों ने खोजी गजब की तकनीक
सितंबर के महीने में कई क्षुद्रग्रह यानी एस्टेरॉयड धरती के पास से गुजर रहे हैं. वैसे तो अधिकतर एस्टेरॉयड खतरनाक नहीं होते, लेकिन कुछ का साइज और ट्रेजेक्टरी वैज्ञानिकों को टेंशन में डाल देता है. ऐसा ही एक एस्टेरॉयड है ‘अपोफिस’ जो 2029 में पृथ्वी के बेहद नजदीक से गुजरने वाला है. अगर कुछ सौ मीटर चौड़े एस्टेरॉयड की पृथ्वी से टक्कर हो तो भयानक तबाही मचेगी. लेकिन वैज्ञानिक लगातार इस बारे में रिसर्च कर रहे हैं कि कैसे खतरा बन सकने वाले एस्टेरॉयड्स को दूर भगाया जा सकता है. अब उन्हें एक तरीके में काफी उम्मीद नजर आने लगी है. नई स्टडी के मुताबिक, ताकतवर एक्स-किरणों से उन क्षुद्रग्रहों (asteroids) का रास्ता बदला जा सकता है जो पृथ्वी से टकरा सकते हैं.
‘नेचर फिजिक्स’ जर्नल में छपी स्टडी लैब में किए गए प्रयोगों का हवाला देती है. अमेरिका के सैंडिया नेशनल लैबोरेटरीज के रिसर्चर्स के मुताबिक, X-rays से 4 किलोमीटर व्यास तक के एस्टेरॉयड्स का रुख मोड़ा जा सकता है. दो साल पहले, अमेरिकी स्पेस एजेंसी NASA ने DART मिशन के जरिए यह दिखाया था कि अंतरिक्ष यान की मदद से एस्टेरॉयड का रास्ता बदलना मुमकिन है.
X-Ray के जरिए एस्टेरॉयड को कैसे दूर भगा सकते हैं?
एस्टेरॉयड का रीडायरेक्ट करने के लिए स्पेसक्राफ्ट का इस्तेमाल न सिर्फ खर्चीला है, बल्कि उसके जरिए काफी समय भी चाहिए. समय तक चेतावनी मिलनी चाहिए, फिर स्पेसक्राफ्ट को अंतरिक्ष में भेजना पड़ेगा… कई बार एस्टेरॉयड के बारे में हमें कुछ घंटों पहले ही पता लगता है, इसलिए यह तरीका उतना कारगर नहीं. रिसर्चर्स के मुताबिक, एस्टेरॉयड्स का रास्ता बदलने के लिए एक्स-किरणों की तरंगों का इस्तेमाल हो सकता है, जो परमाणु धमाकों से पैदा होती हैं.
स्टडी के अनुसार, ये तरंगें एस्टेरॉयड की सतह को गर्म कर देंगी तथा उसके कुछ पदार्थ को वाष्पीकृत कर देंगी. वाष्पीकृत चट्टान से बनी विस्तारित गैस एस्टेरॉयड के मूवमेंट को बदल देगी, यानी उसकी स्पीड भी बदल जाएगी.
चूंकि पृथ्वी के पास बहुत ज्यादा एस्टेरॉयड्स मौजूद नहीं हैं, इसलिए इस तरीके को टेस्ट करना थोड़ा मुश्किल है. रिसर्चर्स ने लैब में 12 मिलीमीटर की चट्टानों पर एक्स-किरणों की बौछार करके प्रयोग किया. उन्होंने पाया कि दोनों चट्टानें लगभग 70 मीटर प्रति सेकंड की गति से विक्षेपित हो रही थीं.
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