डमी-शैडो कहे जाने के बावजूद भी सबसे विनम्र रहे.. मनमोहन के प्रधान सचिव रहे नायर ने क्या कहा?
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मनमोहन सिंह के प्रधान सचिव रहे नायर ने उन्हें भारत का अब तक का सबसे विनम्र प्रधानमंत्री बताया. नायर ने बताया कि उन्होंने अपने पूरे कार्यकाल के दौरान कठिन आलोचनाओं का सामना किया.
भारत के पूर्व प्रधानमंत्री और अर्थशास्त्री मनमोहन सिंह का 26 दिसंबर 2024 को दिल्ली के एम्स अस्पताल में 92 वर्ष की आयु में निधन हो गया. उनके निधन की खबर से पूरे देश और दुनिया में शोक की लहर है. मनमोहन सिंह का जीवन और योगदान सिर्फ भारत में ही नहीं, बल्कि वैश्विक स्तर पर भी एक प्रेरणा का स्रोत रहा है. उनके कार्यकाल के दौरान लिए गए ऐतिहासिक फैसलों और उनकी सादगी भरी जीवनशैली को लोग याद कर रहे हैं. इसी कड़ी में संयुक्त प्रगतिशील गठबंधन के शासनकाल में मनमोहन सिंह के प्रधान सचिव रहे टी.के.ए. नायर ने उन्हें भारत का अब तक का सबसे विनम्र प्रधानमंत्री बताया.
कठिन आलोचनाओं का सामना किया, लेकिन..
दरअसल, नायर ने बताया कि उन्होंने अपने पूरे कार्यकाल के दौरान कठिन आलोचनाओं का सामना किया, लेकिन अपने कर्तव्यों को पूरी ईमानदारी और दृढ़ता से निभाया. राजनीतिक विरोधियों द्वारा डमी और शैडो प्रधानमंत्री कहे जाने के बावजूद, सिंह ने हमेशा देश के हितों को प्राथमिकता दी और व्यक्तिगत हमलों से खुद को दूर रखा.
नायर ने कहा कि मनमोहन सिंह पार्टी और नेतृत्व के प्रति हमेशा निष्ठावान रहे. अपने 10 साल के कार्यकाल को लेकर उन्होंने संतोष जताया और विश्वास व्यक्त किया कि उन्होंने ईमानदारी और कड़ी मेहनत के साथ अपने कर्तव्यों का निर्वहन किया. सिंह का जीवन उनकी सहिष्णुता, दूसरों के प्रति आदर और सादगी का उदाहरण रहा. वे सभी से गर्मजोशी से मिलते और सुनिश्चित करते कि सभी उनके साथ सहज महसूस करें.
आर्थिक सुधारों और विकास की दिशा में
पूर्व प्रधानमंत्री के निधन के साथ भारत ने एक ऐसा नेता खो दिया है, जिन्होंने देश को आर्थिक सुधारों और विकास की दिशा में नई ऊंचाइयों तक पहुंचाया. उनका योगदान और व्यक्तित्व हमेशा देशवासियों के दिलों में जीवित रहेगा.
मनमोहन सिंह का जन्म 26 सितंबर 1932 को अविभाजित भारत के पंजाब प्रांत के गाह गांव में हुआ था जो अब पाकिस्तान में है. उन्होंने अपनी शिक्षा की शुरुआत यहीं से की, और बाद में Cambridge और Oxford विश्वविद्यालयों में शिक्षा प्राप्त की. भारतीय अर्थव्यवस्था को नई दिशा देने में उनका योगदान अतुलनीय है. 1991 में जब उन्होंने भारतीय अर्थव्यवस्था के उदारीकरण की दिशा में ऐतिहासिक कदम उठाए, तब उनका नाम एक प्रमुख अर्थशास्त्री के रूप में उभरा.
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