Desi Toys: देसी खिलौने परंपरा के वाहक, चीनी कंपनियों को लाइसेंस सूची से बाहर करने से बढ़ी मांग |
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160 चीनी खिलौना कंपनियों को लाइसेंस सूची से बाहर कर एक बड़ा संदेश तो दिया ही गया है, इससे घरेलू खिलौनों की मांग भी बढ़ी है।
देश में खिलौनों का एक बड़ा बाजार है। इस बाजार का बड़ा हिस्सा चीनी कंपनियों के खिलौनों से अटा रहा है। सुखद है कि धीरे-धीरे न केवल खिलौनों के घरेलू बाजार को प्रोत्साहन दिया जा रहा है, बल्कि बाजार में चीनी खिलौनों की हिस्सेदारी भी कम हो रही है। हाल में भारतीय मानक ब्यूरो की विदेशी विनिर्माता प्रमाणन योजना के तहत 29 विदेशी खिलौना निर्माण कंपनियों को लाइसेंस जारी किए गए। इस सूची में चीन की कोई भी इकाई शामिल नहीं है। 2021-22 में तीन और 2022-23 में शेष 26 लाइसेंस दिए गए हैं। वियतनाम को अधिकतम 16 लाइसेंस दिए गए हैं। यह सूची भारतीय मानक ब्यूरो और वाणिज्य एवं उद्योग मंत्रालय द्वारा जारी नियमों को ध्यान में रखते हुए आई है। खिलौनों के आयात के मामले में अब गुणवत्ता नियंत्रण और सुरक्षा से जुड़े पहलुओं को लेकर गंभीरता बरती जा रही है। दरअसल, गुणवत्ता नियंत्रण आदेश के अंतर्गत यह अनिवार्य है कि 14 वर्ष से कम उम्र के बच्चों के खिलौने भारतीय मानकों के अनुरूप हों और उनमें एक मानक चिह्न का निशान भी हो। यह सरकारी दिशानिर्देश 2021 से लागू है।
खिलौनों से जुड़ी यह सख्ती और सजगता न सिर्फ बच्चों की सुरक्षा के लिए, बल्कि भारतीय खिलौना उद्योग को बढ़ावा देने के लिए भी अहम है। चीन की खिलौना कंपनियों के लिए भारत एक बड़ा बाजार है। ऐसे में 160 चीनी खिलौना कंपनियों को इस सूची से बाहर रहने से बड़ा झटका लगा है। असल में चीनी उत्पादों की गुणवत्ता को लेकर वैश्विक स्तर पर भी एक संशय ही दिखता रहा है। खिलौने तो बच्चों की शारीरिक-मानसिक सेहत तक को प्रभावित करते हैं। परवरिश के कई संजीदा पक्ष खिलौनों से जुड़े हैं।
अहम यह है कि हमारे खिलौना बाजार से चीन का दबदबा खत्म होने से घरेलू खिलौनों की मांग तेजी से बढ़ रही है। यह न केवल रोजगार के मोर्चे पर अहम है, बल्कि हमारे सांस्कृतिक-पारंपरिक रंगों को सहेजने के लिए भी जरूरी है, क्योंकि स्थानीय खिलौने सिर्फ खिलौने भर नहीं हैं। लकड़ी, मिट्टी, कपड़े और धागे जैसे सामान से बने देसी खिलौने परंपरा के वाहक भी हैं। भारतीय संस्कृति और जीवनशैली को समझने का जरिया हैं। हमारे अधिकतर देसी खिलौने ग्रामीण जनजीवन की झलक और प्रकृति से जुड़ाव का सबक लिए होते हैं। खेल-खेल में ही जीवन से जुड़ी शिक्षा देने के लिए भी एक सुंदर माध्यम हैं। साथ ही भारत के कारीगरों और कलाओं को देश ही नहीं, दुनिया भर में पहचान दिलाने के लिए भी बालमन को बहलाने वाले इन कलात्मक उत्पादों की बहुत अहमियत है।
देसी खिलौने पर्यावरण के अनुकूल तो हैं ही, इनसे बच्चों के स्वास्थ्य को भी खतरा नहीं होता। जबकि प्लास्टिक और अन्य सामान से बने विदेशी खिलौनों में मौजूद रसायन बच्चों की सेहत के लिए खतरनाक होते हैं। बावजूद इसके देश में 70 फीसदी प्लास्टिक के खिलौने आयात किए जाते हैं। कुछ समय पहले आई क्वालिटी कंट्रोल ऑफ इंडिया के एक अध्ययन की रिपोर्ट बताती है कि भारत में आयात किए जाने वाले 67 प्रतिशत खिलौने सुरक्षा मानकों की सभी जांच में खरे नहीं उतरे। वहीं 30 प्रतिशत प्लास्टिक खिलौने सुरक्षा मानकों के अनुरूप नहीं थे।
हाल के वर्षों में खिलौनों की गुणवत्ता और सुरक्षा के मानकों को लेकर बरती जा रही सख्ती से आयात भी घटा है। खासकर चीनी खिलौनों के आयात में भारी कमी आई है। आंकड़े बताते हैं कि 2018-19 में चीन से 78 प्रतिशत खिलौना आयात हुआ था, जो 2021-22 में घटकर 57 प्रतिशत रह गया। वहीं बच्चों की बड़ी आबादी वाले हमारे देश में अब घरेलू खिलौना उद्योग तेजी से विस्तार पा रहा है। भारतीय खिलौना बाजार की बदलती स्थितियों का ही परिणाम है कि तीन साल में खिलौनों के निर्यात में 61 फीसदी वृद्धि हुई है। हालांकि अब भी वैश्विक बाजार में भारत की हिस्सेदारी बहुत कम है, पर घरेलू बाजार में भारत निर्मित खिलौनों की हिस्सेदारी बढ़ी है। ऐसे में इस क्षेत्र में विचार, योजना और व्यावहारिक धरातल पर लिए जा रहे निर्णयों से बड़ा बदलाव आएगा। रोजगार सृजन के साथ ही परंपरागत खिलौनों के माध्यम से संस्कृति के रंग भी सहेजे जा सकेंगे।
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