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    April 20, 2025

    संविधान पर संसद में बहस.. सत्ता vs विपक्ष, आपको जरूर सुनना चाहिए इन 4 नेताओं के भाषण।

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    संसद से शीतकालीन सत्र के दौरान संविधान को स्वीकार करने के 75 वर्ष पूरे होने पर संसद में संविधान पर बहस में सत्ता और विपक्ष के कई नेताओं ने अपनी बात रखी. आज हम आपको चार ऐसे नेताओं के भाषण बता रहे हैं, जिनको आपको जरूर सुनना चाहिए.

    संसद के शीतकालीन सत्र के दौरान मंगलवार को राज्यसभा में केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह (Amit Shah) के भाषण के साथ संविधान पर चर्चा पूरी हो गई. संविधान को लेकर सत्ता पक्ष और विपक्ष लगातार एक-दूसरे पर हमले करते रहते हैं और एक-दूसरे पर संविधान को तोड़ने का आरोप लगाते रहे हैं. संविधान की 75 साल की यात्रा पर एक समारोह आयोजित किया गया, जिसकी शुरुआत 26 नवंबर 2024 से हुई. 75 साल पहले 26 नवंबर 1949 को हमारे आजाद देश का संविधान बना था. संविधान को स्वीकार करने के 75 वर्ष पूरे होने पर संसद में संविधान पर बहस के दौरान प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और अमित शाह के अलावा सत्ता और विपक्ष के कई नेताओं ने अपनी बात रखी. आज हम आपको चार ऐसे नेताओं के भाषण बता रहे हैं, जिनको आपको जरूर सुनना चाहिए.

    नेहरू, आंबेडकर और पटेल ने नींव रखी: राजद नेता मनोज झा
    बार-बार देश के पहले प्रधानमंत्री पर निशाना साधने के लिए भारतीय जनता पार्टी (BJP) की आलोचना करते हुए राष्ट्रीय जनता दल (RJD) के मनोज कुमार झा ने मंगलवार को कहा कि जवाहरलाल नेहरू अधिनायकवाद के खिलाफ संसदीय लोकतंत्र के प्रतीक हैं. राज्यसभा में चर्चा में भाग लेते हुए मनोज झा ने कहा कि साल 2014, 2019 और 2024 के आम चुनाव में नेहरू नहीं हारे, बल्कि इनमें विपक्ष और कांग्रेस की हार हुई. उन्होंने कहा, ‘आप (भाजपा) 100 साल और चुनाव जीत सकते हैं लेकिन आप नेहरू को तब भी खड़ा पाएंगे, क्योंकि वह अधिनायकवाद के खिलाफ संसदीय लोकतंत्र के प्रतीक हैं. वह ढाल, रक्षा कवच हैं.’ मनोज झा ने कहा कि नेहरू की आलोचना करने वालों को यह जरूर याद रखना चाहिए कि 1946 और 1947 में देश के क्या हालात थे.

    मनोज झा ने कहा, ‘एक घर का नींव रखना और भूतल का निर्माण सबसे कठिन है. नेहरू, आंबेडकर (बाबा साहेब) और पटेल (सरदार) ने नींव रखी. आप (भाजपा-एनडीए) दूसरी और तीसरी मंजिल बना रहे हैं. आप पांच और मंजिलों का निर्माण कर सकते हैं, लेकिन नींव के बिना, फर्श का कोई फायदा नहीं है. यह हमें हमेशा ध्यान में रखना चाहिए.’ बांग्लादेश के मौजूदा हालात के बारे में उन्होंने कहा कि उन्होंने पहले 1971 के बारे में पढ़ा था, लेकिन अब देख रहे हैं. मनोज झा ने कहा, ‘अगर अल्पसंख्यकों पर भारत की रिपोर्ट अच्छी होती तो हम बांग्लादेश और पाकिस्तान को हमसे सीख लेने के लिए कह सकते थे कि अल्पसंख्यकों के साथ कैसा व्यवहार किया जाना चाहिए.’ उन्होंने मौजूदा सरकार की आलोचना करते हुए कहा कि जब किसान अपने अधिकारों की मांग करते हैं तो उन्हें ‘राष्ट्र-विरोधी’ करार दिया जाता है या छात्रों को ‘नक्सली’ करार दिया जाता है, जब वे केवल निर्धारित कार्यक्रम के अनुसार परीक्षा आयोजित करने की मांग को लेकर आंदोलन करते हैं.

    यहां सुनें राजद नेता मनोज झा का पूरा भाषण
    संविधान मानने वाले लोग अच्छे हुए तो संविधान अच्छा सिद्ध होगा: नड्डा

    भारत के संविधान की 75 वर्षों की गौरवशाली यात्रा पर राज्यसभा में हो रही चर्चा के दूसरे दिन बहस को आगे बढ़ाते हुए बीजेपी अध्यक्ष जेपी नड्डा ने कांग्रेस पर संविधान की भावना को बदलने और उसे पुन: लिखने का प्रयास करने का आरोप लगाया. उन्होंने प्रमुख विपक्षी पार्टी से भारतीय लोकतंत्र के इतिहास में काले अध्याय के रूप में दर्ज आपातकाल के 50 वर्ष पूरे होने पर अगले साल 25 जून को आयोजित होने वाले ‘संविधान हत्या दिवस’ कार्यक्रम में प्रायश्चित स्वरूप शामिल होने का आह्वान किया. नड्डा ने कहा, ‘कांग्रेस की सरकारों ने अनुच्छेद 356 का 90 बार इस्तेमाल किया गया. तत्कालीन प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू ने आठ बार, इंदिरा गांधी ने 50 बार, राजीव गांधी ने नौ बार और मनमोहन सिंह ने 10 बार अनुच्छेद 356 का दुरुपयोग किया. संविधान की 75 साल की गौरवशाली यात्रा में इन बातों का भी जिक्र होना चाहिए. लोगों को पता चलना चाहिए कि आपने किस तरीके से चुनी हुई सरकारों को एक बार नहीं बारम्बार गिराया और देश को मुसीबत में डालने का काम किया.’

    कांग्रेस की सरकारों द्वारा किए गए विभिन्न संविधान संशोधनों का उल्लेख करते हुए नेता सदन ने कहा कि क्या देश को कोई खतरा था कि देश पर आपातकाल थोपा गया. उन्होंने कहा, ‘नहीं… देश को खतरा नहीं था, कुर्सी को खतरा था. किस्सा कुर्सी का था, जिसके लिए पूरे देश को अंधकार में डाल दिया गया.’ नड्डा ने कहा कि कांग्रेस के सदस्य कहते हैं कि उनके नेताओं ने आपातकाल को एक गलती के रूप में स्वीकार कर लिया है, लिहाजा बार-बार इसका जिक्र नहीं किया जाना चाहिए. आपातकाल के दौरान प्रजातंत्र का गला घोंटने का प्रयास हुआ. अगर आपके दिल में कहीं भी प्रायश्चित है तो मैं आह्वान करता हूं…और आपको समय से पहले बताता हूं… 25 जून 2025 को लोकतंत्र विरोधी दिवस कार्यक्रम में आप शामिल हो.’

    जेपी नड्डा ने संविधान निर्माता बाबा साहेब आंबेडकर का हवाला देते हुए कहा कि उन्होंने कहा है कि संविधान चाहे कितना भी अच्छा क्यों न हो, यदि संविधान को मानने वाले लोग खराब निकले तो निश्चित रूप से संविधान खराब सिद्ध होगा और दूसरी तरफ अगर संविधान को मानने वाले लोग अच्छे हुए तो संविधान अच्छा सिद्ध होगा. उन्होंने कहा कि चाहे आपातकाल हो या अनुच्छेद 370 हो, कांग्रेस ने संविधान से छेड़छाड़ का कोई मौका नहीं छोड़ा. उन्होंने कहा कि राष्ट्रपति के आदेश से संसदीय प्रक्रियाओं को नजरअंदाज करते हुए पिछले दरवाजे से 35ए लाया गया. उन्होंने कहा कि इसका नतीजा यह निकला कि भारतीय संसद द्वारा पारित 106 कानून जम्मू-कश्मीर में लागू नहीं हो सके और इनमें पोक्सो, मानवाधिकार के खिलाफ अत्याचार और महिलाओं की संपत्ति के अधिकार जैसे कानून थे. उन्होंने कहा कि पश्चिमी पाकिस्तान से आए हुए मनमोहन सिंह, इन्द्र कुमार गुजराल भारत के प्रधानमंत्री बने तथा लालकृष्ण आडवाणी भी पश्चिमी पाकिस्तान से आए थे और वह भारत के उप-प्रधानमंत्री बने. उन्होंने कहा, ‘लेकिन आपको जानकर आश्चर्य होगा कि पीओके से आया हुआ व्यक्ति जम्मू कश्मीर की विधानसभा का सदस्य नहीं बन सकता था, वह पंचायत का चुनाव नहीं लड़ सकता था. यहां तक कि उस व्यक्ति को वोट देने की भी अनु​मति नहीं थी. प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की सूझबूझ के कारण जम्मू कश्मीर भारत का अभिन्न अंग बन गया.’

    कांग्रेस ने निर्लज्जता के साथ संविधान में क‍िया संशोधन : अमित शाह
    केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने मंगलवार को संविधान के 75 वर्ष पूरे होने पर राज्यसभा में आयोजित चर्चा के दौरान विपक्ष पर निशाना साधा.उन्होंने कहा कि संविधान संशोधनों से पार्टियों के कैरेक्टर के बारे में पता चलता है. अमित शाह ने राज्यसभा में कहा कि आज हम जिस मुकाम पर खड़े हैं, उस मुकाम पर महर्षि अरविंद और स्वामी विवेकानंद की वो भविष्यवाणी सच होती दिखाई पड़ती है कि भारत माता अपनी देदीप्यमान ओजस्वी स्वरूप में जब खड़ी होंगी, तब दुनिया की आंखें चकाचौंध हो जाएगी और पूरी दुनिया रोशनी के साथ भारत की ओर देखेगी. उन्होंने कहा, ‘इंदिरा गांधी की सरकार में 45वां संशोधन किया गया और कांग्रेस ने निर्लज्जता के साथ संविधान में संशोधन किया. यही नहीं, कांग्रेस ने ‘वन नेशन, वन इलेक्शन’ का भी विरोध किया. हमारे पीएम कहते हैं कि वह प्रधानमंत्री नहीं, बल्कि प्रधान सेवक हैं.’

    अमित शाह ने संविधान संशोधन का जिक्र करते हुए कहा कि भाजपा ने 16 साल तक शासन किया और संविधान में 22 संशोधन किए. इसके विपरीत, कांग्रेस पार्टी ने 55 साल तक शासन किया और 77 संशोधन किए. दोनों पार्टियों ने संविधान में संशोधन किए हैं. संशोधनों को लागू करने के अलग-अलग तरीके हैं, कुछ संवैधानिक प्रक्रियाओं का पालन करते हैं, जबकि अन्य केवल औपचारिकता के तौर पर किए जा सकते हैं. संविधान में संशोधन के पीछे के उद्देश्यों की जांच करके किसी पार्टी के चरित्र और इरादों को समझा जा सकता है. अमित शाह ने आगे कहा, ‘कोई ये न समझे कि हमारा संविधान दुनिया के संविधानों की नकल है. हां, हमने हर संविधान का अभ्यास जरूर किया है, क्योंकि हमारे यहां ऋग्वेद में कहा गया है, हर कोने से हमें अच्छाई प्राप्त हो, सुविचार प्राप्त हो और सुविचार को स्वीकारने के लिए मेरा मन खुला हो. हमने सबसे अच्छा लिया है, लेकिन हमने अपनी परंपराओं को नहीं छोड़ा है. पढ़ने का चश्मा अगर विदेशी है, तो संविधान में भारतीयता कभी दिखाई नहीं देगी.’

    केंद्रीय गृह मंत्री ने राज्यसभा में कहा कि संविधान की रचना के बाद डॉ. अंबेडकर ने बहुत सोच समझकर एक बात कही थी कि कोई संविधान कितना भी अच्छा हो, वह बुरा बन सकता है, अगर जिन पर उसे चलाने की जिम्मेदारी है, वो अच्छे नहीं हों. उसी तरह से कोई भी संविधान कितना भी बुरा हो, वो अच्छा साबित हो सकता है, अगर उसे चलाने वालों की भूमिका सकारात्मक और अच्छी हो. ये दोनों घटनाएं हमने संविधान के 75 साल के कालखंड में देखी हैं. अमित शाह ने विपक्ष पर कटाक्ष करते हुए कहा, ‘अभी एक फैशन हो गया है-आंबेडकर, आंबेडकर…. इतना नाम अगर भगवान का लेते तो सात जन्मों तक स्वर्ग मिल जाता.

    राज्यपाल के कार्यालय और चुनाव आयोग जैसी संस्थाएं महत्वपूर्ण: सिब्बल
    राज्यसभा सांसद कपिल सिब्बल ने सोमवार को ‘भारतीय लोकतंत्र की स्थिति’ के बारे में गंभीर चिंता जताई. उन्होंने वर्तमान राजनीतिक परिदृश्य की आलोचना की और वैश्विक तकनीकी शक्तियों से संभावित खतरों के बारे में चेतावनी दी. संविधान के 75 वर्ष पूरे होने के मौके पर आयोजित बहस के दौरान राज्यसभा में बोलते हुए कपिल सिब्बल ने देश के लोकतांत्रिक ढांचे में प्रणालीगत विफलताओं को उजागर किया. उन्होंने वर्तमान राजनीतिक नेतृत्व पर स्पष्ट निशाना साधते हुए कहा, ‘भारत एक व्यक्ति के बारे में नहीं है, भारत इस देश के लोगों के बारे में है.’ कपिल सिब्बल ने देश की लोकतांत्रिक संस्थाओं के सामने आने वाली कई चुनौतियों को रेखांकित किया. उन्होंने आर्थिक असमानताओं की ओर इशारा करते हुए कहा कि आबादी के एक प्रतिशत लोगों के पास देश की 40-50 प्रतिशत संपत्ति है. सिब्बल ने दलितों के खिलाफ हिंसा की घटनाओं और चल रहे नागरिक अशांति का हवाला देते हुए सामाजिक न्याय के बारे में भी चिंता जताई.

     

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