15 वर्ष की उम्र में तोरणा किला जीता; ऐसा था ‘बाल शिवाजी’ से ‘छत्रपति’ तक का सफर
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जब भी भारतीय इतिहास की चर्चा होती है तो छत्रपति शिवाजी महाराज का जिक्र किये बिना नहीं रहा जाता। शिवाजी महाराज एक बहादुर योद्धा, कुशल शासक, रणनीतिकार और मराठा साम्राज्य के संस्थापक हैं। हम देखेंगे शिवाजी महाराज के जीवन की महत्वपूर्ण यात्रा।
शिवाजी कौन थे? शिवाजी महाराज का कार्य? हम उन्हें क्यों याद करते हैं? हम सभी ने बचपन में शिवाजी महाराज के बारे में जरूर पढ़ा होगा। वह महाराष्ट्र के एक प्रमुख राजनेता, साम्राज्य के संस्थापक और मराठा साम्राज्य के पहले छत्रपति थे। छोटी उम्र में चुनौतियों का सामना करते हुए उन्होंने कई युद्ध लड़े और अपना पूरा जीवन धर्म के लिए समर्पित कर दिया। तिथि के अनुसार 28 मार्च 2024 को छत्रपति शिवाजी की जयंती है। इस मौके पर जानिए उस जांबाज के बारे में जिसका नाम इतिहास के सुनहरे पन्नों में दर्ज हो गया है.
शिवाजी महाराज का जन्म
शिवाजी महाराज का जन्म 19 फरवरी 1630 को शिवनेरी किले, पुणे, महाराष्ट्र में हुआ था। उनका पूरा नाम शिवाजी राजे भोसले है। उनके पिता का नाम शाहजी और माता का नाम जीजाबाई था। शिवाजी महाराज अपनी माँ के धार्मिक गुणों से बहुत प्रभावित थे।
महाराज की शिक्षा
शिवाजी महाराज की प्रारंभिक शिक्षा घर पर ही हुई। उन्हें धार्मिक, राजनीतिक और मार्शल आर्ट की शिक्षा दी गई। शिवाजी महाराज की माँ जीजाबाई और कोंडदेव ने उन्हें महाभारत, रामायण और अन्य प्राचीन भारतीय ग्रंथों का संपूर्ण ज्ञान दिया। उन्होंने बचपन में ही राजनीति और युद्ध की रणनीति सीख ली थी। उनका बचपन राजा राम, गोपाल, साधु-संतों तथा रामायण, महाभारत की कहानियों तथा सत्संग में बीता। वह सभी कलाओं में निपुण थे।
महाराजा की पत्नी और बच्चे
शिवाजी महाराज का पहला विवाह 14 मई 1640 को साईबाई निम्बालकर के साथ हुआ था। उस समय शिवाजी 10 वर्ष के थे। उनसे शिवाजी महाराज को 4 संतानें हुईं। उनकी दूसरी पत्नी का नाम सोयराबाई मोहिते था। शिवाजी महाराज की मृत्यु के बाद सबसे बड़े पुत्र संभाजी गद्दी पर बैठे।
महाराजा को छत्रपति की उपाधि कैसे मिली?
शिवाजी महाराज को अनेक उपाधियाँ प्राप्त थीं। 6 जून, 1674 को रायगढ़ में मराठों का राज्याभिषेक हुआ।
इसके अलावा उनकी वीरता के कारण छत्रपति, क्षत्रियकुलवंत, हिंदू धर्माधिकारी जैसी उपाधियाँ दी गईं।
आदिल शाह की साजिश: बीजापुर के शासक आदिल शाह ने महाराजा को गिरफ्तार करने की साजिश रची। महाराज तो बच गये, लेकिन उनके पिता शाहजी भोसले को आदिल शाह ने कैद कर लिया। शिवाजी महाराज ने सबसे पहले आक्रमण कर अपने पिता को बचाया। बाद में पुरन्दर और जवेली के किलों पर भी कब्ज़ा कर लिया गया।
उन्होंने मुगलों के खिलाफ कई लड़ाइयां लड़ीं और जीतीं।
उनके गुरिल्ला युद्ध कौशल का शत्रुओं पर बहुत प्रभाव पड़ता था।
उनकी नीतियों, सैन्य योजनाओं और युद्ध कौशल के लिए सभी उनका सम्मान करते थे।
उनकी शक्तिशाली सेना ने उन्हें महाराष्ट्र के स्वतंत्रता संग्राम में एक प्रमुख नेता बना दिया।
औरंगजेब का विश्वासघात : औरंगजेब ने विश्वासघात करके शिवाजी महाराज को कैद कर लिया था। लेकिन अपनी बुद्धिमत्ता और चतुराई के कारण वह कैद से भाग निकले और बाद में औरंगजेब की सेना से लड़े। पुरंदर संधि में दिये गये 24 किले वापस जीत लिये गये।
3 अप्रैल 1680 को छत्रपति शिवाजी महाराज का निधन हो गया।
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