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    April 21, 2025

    Chandrayaan 3 Launch: ‘मिशन चंद्रयान-3’ का काउंटडाउन शुरू, कैसे काम करता है रॉकेट और क्यों खतरनाक है लैंडिंग- जानें हर बड़ी बात।

    1 min read
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    Chandrayaan 3 Launch: सबसे पहली कोशिश होगी कि रॉकेट को सफलतापूर्वक लॉन्च किया जाए, इसके बाद चांद की सतह पर रोवर की सफल लैंडिंग के बाद भारत नया कीर्तिमान हासिल कर लेगा |
    Chandrayaan 3 Launch: मिशन चंद्रयान-3 का काउंटडाउन कुछ ही घंटों में शुरू होने वाला है | इसे लेकर ISRO की तरफ से पूरी तैयारी कर ली गई है और अब लॉन्चिंग की बारी है | इस बार कोशिश है कि रोवर की सफलतापूर्वक चांद पर लैंडिंग कराई जाए , अगर भारत ऐसा करने में कामयाब हो जाता है को तो वो अमेरिका और चीन जैसे देशों की लिस्ट में शामिल हो जाएगा , इस बड़ी लॉन्चिंग से पहले आइए जानते हैं कि आखिर मिशन चंद्रयान-3 क्या है और इस रॉकेट की क्या खासियत है |
    चंद्रयान-3 का सफर कुल 40 दिन का होगा. जिसके बाद ये अपनी कक्षा में पहुंचेगा और चांद पर चक्कर लगाने के बाद रोवर लैंड होगा , आइए एक-एक कर जानते हैं कि इस पूरे मिशन में क्या-क्या होने जा रहा है |

    धरती से चांद की कुल दूरी 3.84 लाख km की है. रॉकेट का सफर कुल 36 हजार किमी का होगा , रॉकेट रोवर को पृथ्वी के बाहरी ऑर्बिट तक ले जाएगा. इसमें करीब 16 मिनट लगेंगे |
    बाहरी ऑर्बिट से बाद का सफर प्रोपल्शन मॉड्यूल से चांद के ऑर्बिट में पहुंचकर कई स्टेज में ऑर्बिट घटाएगा 100 km के ऑर्बिट में पहुंचने पर प्रोपल्शन मॉड्यूल से अलग अंत में लैंडर चांद पर उतरेगा |
    चांद पर लैंडिंग खतरनाक क्यों 43?

    चांद पर वायुमंडल का न होना काफी खतरनाक साबित होता है, क्योंकि ऐसे में लैंडर के टूटने की ज्यादा संभावनाएं होती हैं |
    इसके अलावा लोकेशन बताने वाला GPS न होना भी एक बड़ी परेशानी है, जिससे लैंडर को सही जगह तक पहुंचाना एक बड़ा चैलेंज होता है |

    चांद के साउथ पोल पर साफ नहीं दिखना भी साइंटिस्ट्स के लिए एक बड़ी चुनौती होता है |

    लैंडर को सूर्य के विकिरण के असर से कोई सुरक्षा नहीं मिलती है. इसीलिए ये भी मिशन के लिए काफी खतरनाक होता है |

    भारत का अब तक का मून मिशन

    चंद्रयान-1
    22 अक्टूबर 2008 को लॉन्च
    हासिल – चांद पर पानी की खोज
    चंद्रयान-2
    22 जुलाई 2019 को लॉन्च
    हासिल- सेफ लैंडिंग नहीं
    चंद्रयान-3
    14 जुलाई 2023 को लॉन्च
    मिशन मून का मकसद
    अब अगर भारत के इस मिशन मून के मकसद की बात करें तो इसमें सबसे पहला मकसद लैंडर की सुरक्षित और सॉफ्ट लैंडिंग होगा. इसके बाद रोवर को चांद की सतह पर चलकर दिखाना और वैज्ञानिक परीक्षण करना मकसद होगा |

    मिशन मून से क्या मिलेगा?
    अब दूसरा सवाल ये है कि मिशन मून से भारत को क्या मिलेगा. इससे चंद्रमा, पृथ्वी और ब्रह्मांड की बेहतर समझ मिल सकती है | भारत बिना विदेशी मदद के अपनी क्षमता दिखा सकता है | इसके अलावा अरबों डॉलर के स्पेस मार्केट में मजबूत मौजूदगी और दुनिया के गिने-चुने देशों के क्लब में एंट्री मिलेगी |

    तीन हिस्सों में काम करेगा रॉकेट
    चंद्रयान-3 की लॉन्चिंग के बाद तीन स्टेप होंगे. पहला प्रपल्शन मॉड्यूल होगा, जिसमें लैंडर रोवर को चंद्रमा की ऑर्बिट में 100 km ऊपर छोड़ेगा. इसके बाद दूसरा लैंडर मॉड्यूल वाला पार्ट होगा, जिसमें रोवर को चांद के दक्षिणी ध्रुव पर उतारेगा , इसके बाद आखिरी स्टेप रोवर होगा, इसमें रोवर चांद पर उतरकर उसकी साइंटिफिक स्टडी करेगा |

    चांद की सतह से रोवर का मिशन होगा कि वो सतह की तस्वीरें भेजेगा, इसके अलावा मिट्टी की जांच, वातावरण की रिपोर्ट देना, केमिकल विश्लेषण करना और वहां मौजूद खनिज की खोज करना होगा |

    रॉकेट की खासियत
    रॉकेट की खासियत की बात करें तो ये देश का सबसे भारी रॉकेट है | जिसका वजन कुल 640 टन है और लंबाई 43.5 मीटर की है | इसका व्यास 5 मीटर, क्षमता 200 Km और करीब 8 टन पेलोड, 35 हजार Km तक आधा वजन ले जाने में सक्षम है |

    स्पेस सेक्टर में नौकरियां
    भारत में स्पेस सेक्टर में जॉब का स्कोप भी तेजी से बढ़ा है, इसीलिए इस क्षेत्र में युवाओं की रुचि भी बढ़ रही है , इस सेक्टर में साल 2020 में कुल 45 हजार नौकरियां थीं | जिसके बाद अब 2030 के लिए 2 लाख नौकरियों का अनुमान लगाया गया है | स्पेस टेक कंपनियों की बात करें तो सबसे ज्यादा अमेरिका में 5582, उसके बाद यूनाइटेड किंगडम में 615, कनाडा में 480, जर्मनी में 402, और भारत में कुल 368 कंपनियां काम कर रही हैं |

    दुनियाभर में स्पेस इकॉनमी भी तेजी से बढ़ती जा रही है. दुनिया की कुल स्पेस इकॉनमी 38 लाख करोड़ रुपये है | वहीं भारत की स्पेस इकॉनमी 78,988 करोड़ है. भारत का कुल हिस्सा 2% है. वहीं इसे 2025 तक 9% करने का टारगेट है |

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