वकील के कंजूमर कोर्ट में याचिका नहीं कर सकते, सुप्रीम कोर्ट के फैसले की 5 बड़ी बातें।
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सुप्रीम कोर्ट ने रखे गए कंजूस जजमेंट में कहा है कि वकीलों को जुमर संरक्षण अधिनियम के तहत नहीं दिया जा सकता। मतलब सेवा में कमी के लिए उनके कंज्यूमर कोर्ट के खिलाफ वोटिंग संभव नहीं है।
यदि वकील आपसे अपेक्षा करता है कि आप सेवा न दें तो आप उसके खिलाफ कंज्यूमर कोर्ट में नहीं जा सकते। सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि वकीलों को कंज्यूमर रिवोल्यूशन (सीपी) अधिनियम के बारे में जानकारी नहीं दी जा सकती है। कोर्ट ने कहा कि वकील का पेशा बाकी सभी से अलग है क्योंकि यह जज स्टूडियो का हिस्सा है। जस्टिस बेला एम वकील और जस्टिस पंकज मॅक की बेंच ने सुप्रीम कोर्ट के 1995 वाले जजमेंट से दिवालियापन की बेंच बनाई। 1995 में SC ने डेमोक्रेसी को जुमर रिव्ज़ांच लॉ के दस्तावेज़ में ला दिया था। अब सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि उस जजमेंट को बड़ी बेंच पर नजर रखने की जरूरत है। कोर्ट ने कहा कि ‘कंजुमर लॉ के ऑफिस में पेशों की वकालत नहीं की गई थी। सुप्रीम कोर्ट का कहना है कि वकील न्यायिक व्यवस्था का बड़ा अहम हिस्सा हैं। सुप्रीम कोर्ट का कहना है, उनकी यह कर्तव्यनिष्ठा न केवल मुवक्किल के प्रति है बल्कि अदालत के साथ-साथ कृषि पक्ष के प्रति भी है। वकीलों से जुड़ी सुप्रीम कोर्ट के फैसले की 5 बड़ी बातें पढ़ें.
1. सुप्रीम कोर्ट के बेंच ने मंगलवार को कहा, ‘हमारी राय है कि 2019 में फिर से अधिनियमित कंज्यूमर पब्लिकेशन एक्ट अधिनियम, 1986 का उद्देश्य केवल दस्तावेजों को अनुचित व्यापार संबंधों और व्यापक व्यापार विवरणों से सुरक्षा प्रदान करना था। रिकॉर्ड पर ऐसा कुछ भी नहीं है जिससे लगे कि विधायिका का इरादा कभी भी शमाअम या दिग्गजों को अभिनय में शामिल करने का था।’
2. सुप्रीम कोर्ट ने साफा के समर्थकों को कथित कदाचार या आपराधिक कृत्यों के लिए दोषी करार दिया। लेकिन ऐसा नागरिक एवं आपराधिक कानून के अंतर्गत नहीं है, उपभोक्ता कानून के अंतर्गत नहीं है।
3. SC ने कहा कि ‘मजबूत और स्मारक लोकतंत्र के तीन स्तंभों में से एक है, उसे अपनी (वीकीलोन) सेवाओं की तुलना में अन्य मजबूत सेवाओं से नहीं बनाया जा सकता है। इसलिए, ‘सशस्त्र के रूप में विशिष्टता की भूमिका, स्थिति और सिद्धांत के आधार पर, हमारी राय यह है कि कानूनी पेशा अद्वितीय है यानी इसकी प्रकृति अद्वितीय है और इसकी तुलना किसी अन्य परिमाण से नहीं की जा सकती है।’
4. अदालत ने कहा कि एक वकील जिस तरह से अपनी कंपनी की पेशकश करता है, उस ग्राहक का काफी हद तक प्रत्यक्ष नियंत्रण रहता है। कोर्ट ने कहा कि हमारी राय एक वकील द्वारा ली गई कंपनी ‘निजी सर्विस’ के लिए एक अनुबंध के समान है। इसलिए इसे सीपी अधिनियम, 2019 की धारा 2(42) में निहित सेवा की परिभाषा से बाहर रखा जाएगा।
5. कोर्ट ने कहा कि सीपी एक्ट के तहत कानूनी रोक की वकालत करने वाले अधिवक्ताओं की सेवा में कमी का आरोप वाली याचिका दायर करना उचित नहीं होगा।
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