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    April 19, 2025

    Antman And The Wasp Quantumania Review: एमसीयू के सिलेबस का एक और चैप्टर, थानोस की कमी पूरी करने आया कैंग |

    1 min read
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    मार्वल सिनेमैटिक यूनिवर्स (एमसीयू) की दुनिया रोमांचकारी रही है, इसमें कोई शक नहीं। इसके चाहने वाले भारत में भी काफी तादाद में हैं। सुबह नौ बजे के शो में किसी आईमैक्स थिएटर का करीब करीब पूरा भरा होना इसका सबूत है। दो घंटे चार मिनट की एमसीयू की नई फिल्म ‘एंटमैन एंड द वैस्प क्वांटमैनिया’ की एडवांस बुकिंग भी ऐसी रही है कि इसके सामने बॉक्स ऑफिस पर उतर रहे हिंदी सिनेमा के ‘शहजादा’ की हालत खराब दिखी। लेकिन, ये फिल्म देखने से पहले अगर आपने एमसीयू में आए मल्टीवर्स के विचार को नहीं समझा है। वेब सीरीज ‘लोकी’ नहीं देखी है तो आपको इसे समझने में दिक्कत हो सकती है। और, एमसीयू के सामने यही सबसे बड़ा यक्ष प्रश्न है। प्रश्न ये है कि क्या एमसीयू की फिल्में एक तरह का कॉलेज सिलेबस होती जा रही हैं? क्या ये फिल्में मनोरंजन के लिए ही बन रही हैं या फिर इसके जरिये मार्वल स्टूडियोज अपने मल्टीवर्स के विचार को दर्शकों पर बार बार थोपने की कोशिश कर रहा है। नई फिल्म ‘एंटमैन एंड द वैस्प क्वांटमैनिया’ इस लिहाज से मार्वल स्टूडियोज के हर टीम मेंबर के लिए सबक है।
    अच्छा लगता है जब नई फिल्म ‘एंटमैन एंड द वैस्प क्वांटमैनिया’ के एंड क्रेडिट रोल में दर्जनों की तादाद में भारतीय मूल के हुनरमंदों के नाम नजर आते हैं। अगली कतार में बैठे युवा इसे देख उत्साहित भी दिखाई दिए लेकिन इन युवाओं का ऐसा ही उत्साह ये फिल्म देखते नहीं दिखा। वजह? वजह है मार्वल स्टूडियो को फिल्मों, वेब सीरीज और स्पेशल्स की पिछले दो साल में लाइन लगा देना। फेज 4 में जिस रफ्तार से सात फिल्में, आठ सीरीज औऱ तीन स्पेशल्स रिलीज किए, उसने एमसीयू के दिग्गज प्रशंसकों के भी दिमाग का दही कर दिया है। इसकी तुलना अगर फेज 3 से करें जोकि साल 2016 से 2019 तक चला तो उस दौरान मार्वल ने सिर्फ 11 कहानियां दर्शकों के सामने परोसी थीं। नई फिल्म ‘एंटमैन एंड द वैस्प क्वांटमैनिया’ एक तरह से एमसीयू के नए विलेन कैंग का लॉन्चपैड है। वह एमसीयू की अगली फिल्मों में भी दिखेगा। इससे पहले उसका संदर्भ ‘लोकी’ सीरीज में ‘ही हू रिमेन्स’ के तौर पर आया था। और, अतिशयोक्ति नहीं होगी अगर कहा जाएगा कि सीरीज का वह हिस्सा इस फिल्म से बेहतर रहा था।
    कहावत है कि अति का भला न बोलना, अति की भली न चूप, अति का भला न बरसना, अति की भली न धूप। इस कहावत का अंग्रेजी तर्जुमा जो भी हो लेकिन मार्वल की फिल्मों में पैसा लगाने वाली कंपनी डिज्नी के सीईओ बॉब आइगर को इसका मतलब समझ आ चुका है। फिल्म ‘एंटमैन एंड द वैस्प क्वांटमैनिया’ बॉब के प्रस्तावित स्पीड ब्रेकर के ठीक पहले की फिल्म है। कहानी है एंटमैन के परिवार की। उसकी बेटी भी पाइम पार्टिकल्स के साथ प्रयोग करना सीख चुकी है। उसके बाबा और उसकी मां इस काम में उसकी मदद भी करती रही हैं। लेकिन, जिस दिन दादी को ये पता चलता है, तूफान आ जाता है। पाताल लोक सी एक दुनिया है जिसे एमसीयू ने नाम दिया है क्वांटम रील्म। पूरा का पूरा परिवार घर की बेटी के प्रयोग से इस दुनिया में खिंचा चला आता है। कहानी का ट्विस्ट ये है कि इस दुनिया में दादी पहले भी 30 साल गुजार चुकी हैं। और, तब उनका साथी रहा कैंग- द कॉन्केरर अब इस परिवार की मदद से फिर से दुनिया को तबाह करना चाहता है।
    आगे की कहानी ज्यादा घुमावदार नहीं है। नायक और खलनायक के समीकरण तय हो जाने के बाद कहानी किसी मसाला हिंदी फिल्म जैसी हो जाती है। बस, कमजोरी इस फिल्म की ये है कि इसके लेखक जेफ लवनेस ये भूल गए कि फिल्म का हीरो कौन है? और, फिल्म को इसके निर्णायक अंत तक ले जाने में किस किस किरदार को उन्हें फोकस में रखना है। इस चक्कर में हीरो हाशिये पर रह जाता है। हीरोइन के लिए बस गिनती के सीन हैं और कहानी की कमान दादी के हाथ में आ जाती है। निर्देशक पेटन रीड ने भी फिल्म में कुछ खास करिश्मा दिखाया नहीं है क्योंकि कहानी केविन फाइगी ने मंजूर की है। परदे पर कुदरती दृश्य गिनती के हैं और जब इतने ज्यादा स्पेशल ग्राफिक्स से भरी फिल्म हो तो भला निर्देशक या सिनेमैटोग्राफर कुछ अलग से कर भी क्या सकता है! स्नातक की किसी कक्षा में दिए जा रहे लेक्चर सी आगे बढ़ती इस फिल्म में इतना ज्ञान है कि इसे देखते हुए दर्शकों का मनोरंजन भी होना है ये फिल्म बनाने वाले भूल जाते हैं।

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