रिक्षा ड्रायव्हर, टॅक्सी ड्रायव्हर और अपने प्रतिस्पर्धीयोंके साथ लडते रहे आण्णा
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जब जज्बा हो कुछ कर दिखाने का, हौसला हो दुनियाॅ से लडने का, तो फिर उम्र और तजुर्बा कोई माईने नही रखता, जैसे मनोहर आण्णाने अपने जिवन के अंतिम क्षणों में कुछ एैसा कर दिखाया जो शायद कोई युवा ही कर सकता है!
मनोहर भाउराव मोरे एक सपना जेहन में लेकर जिते रहे, उन्होंने जिंदगीभर खेती को प्राथमिकता दी, वे चाहते थे उनका एक लाॅंजींग और रेस्टाॅरंट हो जहाॅ वे अपने बिझनेस का सपना साकार कर सके! जिवनभर खेती में मेहनत करने के बाद जब वे थक गए और 75 वर्ष की आयुमें उन्होंने अपना सपना सच करने का प्रयास किया! उन्होंने 20 एकड जमीन बेचकर उनके पुरखोंकी जमीनपर बिल्डींग बनाना प्रारंभ किया, उस समय काफी लोंगोंने उनकी जमीनपर कब्जा कीया हुआ था, तो उन्हे जमीन वापस लेने के लिए काफी संघर्ष करना पडा! उन्होंने काफी लोंगोंको जमीन किरायेंसे दि थी वे भी उस वक्त बडी तकलीफ दे रहे थे! लेकीन बिना कीसी के सहारे वे लडते रहे और अपने हक की जमीन हासील करने में वे सफल हुए!
मनोहरजी को लोग आण्णा के नाम से बुलाते थे, वे हार्टपेशंट होते हुए खुद के अधिकारों के लिए लढ रहे थे! डाॅक्टरोंने उन्हे आराम करने की सलाह दि थी! लेकीन वे बिना थके बिना रूके बिल्डींग बनाने के काम में जुटें रहे! उस समय उनकी तबीयत काफी खराब हो चुकी थी! उनका हार्ट केवल 30 प्रतिशत रीस्पॉन्ड दे रहा था, उन्हे बोनस लाईफ जीनी थी, लेकीन आण्णा अपना सपना साकार करने में कीसी युवाॅ की भाती मेहनत कर रहे थे! सब के मना करने के बावजुद, जीजान से मेहनत करते रहे और सप्तेंबर 2015 को आखीरकार उन्होंने बिल्डींग को मजबुतीसे खडा किया और संतोष लाॅंजींग का सपना सच कर दिखाया!
बिल्डींग खडी हो गई, लाॅजींग का बिझनेस शुरू हुआ लेकीन अभी संघर्ष बाकी था, मार्केट में अन्य लाॅजींग के व्यापारी उनसे जलने लगे, और आसपास के लोग उन्हे बेवजह तकलीफ देने लगे, बिच बाजार लाॅजींग होने की वजह से कभी रिक्षावालें, कभी ड्रायव्हर संघटन उनसे लढते थे! और हमेशा कोई ना कोई झमेला खडा करते थे! उन सबसे लडते झगडते उन्होंने धिरेधिरे सारी समस्याओं से छुटकारा पाया और अब शांतीसे जीवन जीना प्रारंभ कीया, लेकीन शायद किस्मत में उनके आराम लिखा ही नही था, और 4 जनवरी 2017 में उन्हें हार्टअटॅक आया और वे इस दुनिया को छोड चले गए!
आण्णा के जाने के बाद सभी को चिंता इस बात की थी, की उन्होंने जिस मेहनत संघर्ष से उनका सपना साकार किया है उसे आगे कौन संभालेगा, तब उनकी बेटी बिना मनोहर मोरे ने हिम्मत के साथ जिम्मेदारी अपने कंधोपर ले ली! एक महिला अब लाॅजींग का बिझनेस संभालने वाली थी! तब फिरसे रिक्षा और ड्रायव्हर संघटनाओंने तकलीफ देना प्रारंभ किया लेकीन अपने पिता के संस्कारों में पली बडी बिना ने उन सभी संकटोंका डटकर सामना किया और सभी से साहस के साथ लडती रही और लडकीयाॅ भी लडकोसे कम नही होती ये बात सच कर दिखाई! आज वे अपने बिझनेस को बडी जिम्मेदारी से संभाल रही है और निरंतर विकास कर रही है! उनके हौसले और जिद को हम रिसिल.इन की और से सलाम करते है!
लेखक : सचिन आर जाधव
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