वक्फ बिल के बाद लेटरल एंट्री भी ठंडे बस्ते में, 20 साल बाद बीजेपी को चखने मिला गठबंधन पॉलिटिक्स का स्वाद।
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विपक्ष के साथ सहयोगियों ने भी आंखें तरेरी तो बीजेपी नीत एनडीए सरकार ने फौरन UPSC से लेटरल एंट्री के जरिए भर्ती कैंसिल करने को कह दिया.
दो घटनाओं से देश की राजनीति में आए बदलाव को समझिए. सितंबर 2020 में बीजेपी के नेतृत्व वाली NDA सरकार कृषि से जुड़े तीन नए कानून लाती है. साल भर किसानों के विरोध-प्रदर्शन के बाद, दबाव के आगे झुकते हुए नरेंद्र मोदी सरकार उन कानूनों को वापस ले लेती है. फिर अगस्त 2024 में, संघ लोक सेवा आयोग (UPSC) ‘लेटरल एंट्री’ के जरिए 45 पदों को भरने का विज्ञापन देता है. इस बार भी विरोध होता है, लेकिन सरकार महज दो दिन में घुटने टेक देती है. UPSC से वह भर्ती रद्द करने को कहा जाता है. कुछ दिन पहले ही, सरकार ने प्रेशर में आकर वक्फ (संशोधन) बिल को संसद की संयुक्त समिति में भेज दिया था.
चार सालों के भीतर घटी ये दो घटनाएं बताती हैं कि केंद्र में सरकार के काम करने का तरीका बदल गया है. ऐसा क्यों हुआ? 2020 में तो बीजेपी को पंजाब में प्रमुख सहयोगी शिरोमणि अकाली दल के नाता तोड़ने से भी कोई फर्क नहीं पड़ रहा था. लेकिन 2024 में जैसे ही गठबंधन के कुछ दलों ने तेवर दिखाए, बीजेपी को झुकने पर मजबूर होना पड़ा.
गठबंधन पॉलिटिक्स के आगे मजबूर बीजेपी
2020 में जहां बीजेपी के पास अपने दम पर बहुमत था, 2024 में एनडीए के भीतर उसकी हालत कमजोर हो चुकी है. तब 300 से ज्यादा लोकसभा सीटों के दम पर अड़ी रहने वाली बीजेपी अब सिर्फ 240 सीटों के साथ गठबंधन के सहयोगियों के आगे झुकने को मजबूर है. 2014 में भी बीजेपी ने अपने दम पर बहुमत हासिल किया था. यानी, बीजेपी को करीब दो दशक बाद केंद्र की सत्ता में गठबंधन पॉलिटिक्स का स्वाद चखना पड़ रहा है.
दोनों मामलों में सहयोगियों ने बनाया दबाव
वक्फ बिल का मामला लीजिए. इस महीने की शुरुआत में, जेडी(यू), एलजेपी (रामविलास) और टीडीपी समेत बीजेपी के कई सहयोगी दलों ने वक्फ (संशोधन) बिल में प्रस्तावित व्यापक बदलावों को लेकर चिंता जताई थी. जिसके बाद सरकार ने बिल को संसद की संयुक्त समिति के पास भेज दिया था.
मंगलवार को केंद्र सरकार फिर अपने दो सहयोगियों- जेडी(यू) और एलजेपी (रामविलास) के आगे झुक गई. एक दिन के भीतर ही, लेटरल एंट्री के जरिए 45 प्रमुख पदों को भरने का विज्ञापन वापस ले लिया गया. जैसे ही UPSC ने भर्ती रद्द किए जाने की घोषणा की, सहयोगी दल इसे अपनी ‘जीत’ बताने में लग गए.
क्रेडिट लेने में जुट गए सहयोगी
एलजेपी (रामविलास) के राष्ट्रीय उपाध्यक्ष और प्रवक्ता एके बाजपेयी ने इसे ‘गठबंधन राजनीति की जीत’ बताया. उन्होंने कहा, ‘हमें खुशी है कि प्रधानमंत्री मोदी ने हमारी चिंताओं पर ध्यान दिया और लेटरल एंट्री विज्ञापन को वापस लेने का आदेश दिया. हम इस कदम का विरोध करने वाले पहले व्यक्ति थे और तर्क देते हैं कि आरक्षण के बिना ऐसा नहीं किया जा सकता. यह गठबंधन राजनीति की जीत है.’
जेडी(यू) के राष्ट्रीय प्रवक्ता के सी त्यागी ने इंडियन एक्सप्रेस से कहा, ‘हम इसका स्वागत करते हैं. हम प्रधानमंत्री को हमारी चिंता का संज्ञान लेने के लिए धन्यवाद देते हैं. यह नीतीश कुमार के नेतृत्व वाले सामाजिक न्याय आंदोलन की जीत है. वह फिर से देश में सामाजिक न्याय की ताकतों के चैंपियन के रूप में उभरे हैं.’
कोई रिस्क नहीं लेना चाहती बीजेपी
‘लेटरल’ एंट्री’ से भर्ती में किसी तरह का आरक्षण नहीं था. विपक्ष के साथ-साथ सहयोगी दल भी इसे ‘सामाजिक न्याय के खिलाफ’ बता रहे थे. चूंकि, बीजेपी को इस पिच पर पहले ही लोकसभा चुनाव में तगड़ा नुकसान हो चुका है, वह और रिस्क नहीं लेना चाहती. UPSC का विज्ञापन शनिवार को आया था, विपक्ष ने रविवार को सवाल उठाए तो सरकार ने शुरू में भर्ती का बचाव किया. लेकिन जैसे ही नैरेटिव आरक्षण की ओर मुड़ता दिखा, सरकार ने न केवल पीछे हटने का विकल्प चुना है, बल्कि लेटरल एंट्री में कोटा लागू करके एक कदम और आगे बढ़ाया है.
आने वाले दिनों में महाराष्ट्र, झारखंड और हरियाणा जैसे बड़े राज्यों में विधानसभा चुनाव होने हैं. यहां कोटा में सीधी हिस्सेदारी वाले बड़े निर्वाचन क्षेत्र हैं, ऐसे में बीजेपी किसी तरह का जोखिम नहीं लेना चाहती.
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