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    April 23, 2025

    चिंता : हाथियों की घटती संख्या खतरे की घंटी, बढ़ सकता है जलवायु परिवर्तन का प्रभाव |

    1 min read
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    असम में 2001 से 2020 के दौरान 1,330 हाथियों की मौत हुई। एक शोध बताता है कि हाथियों की संख्या घटने से जलवायु परिवर्तन का प्रभाव बढ़ सकता है। लिहाजा इस आंकड़े को गंभीरता से देखने की जरूरत है।
    पिछले कुछ सालों से जबसे सोशल मीडिया के जरिये रील का प्रचलन बढ़ा है, तबसे ऐसे दृश्य भी सामने आए हैं, जब मोबाइल फोन लिए लोग हाथी के पीछे दौड़ रहे हैं, या हाथियों का झुंड लोगों की ओर। ऐसी घटनाएं पिछले कुछ सालों में बढ़ी हैं। हाल ही में असम सरकार ने विधानसभा में एक चौंकाने वाला आंकड़ा पेश किया। सरकार ने कहा कि असम में 2001 से 2022 तक 1,330 हाथियों की मौत हुई है। यह खतरे की घंटी है। यह इसलिए, क्योंकि अगर अमेरिका के एक विश्वविद्यालय में हुए शोध पर यकीन करें, तो दुनिया में हाथी ही एक मात्र जीव है, जो जलवायु परिवर्तन के प्रभाव से मानव जाति को बचा सकता है।
    जबसे इन्सान ने अत्याधुनिक मशीनों के जरिये जंगलों की बर्बादी शुरू की है, तबसे वन्य जीव और मानव के बीच टकराव बढ़ा है। जंगली पशुओं को आज जंगल में भोजन नहीं मिल पा रहा है। जंगल के अंदर जो प्राकृतिक जलाशय, पोखर, तालाब, नद और नाल थे, सूखने लगे हैं। छोटे-छोटे पशु तो अपनी भूख मिटा लेते हैं, लेकिन सबसे ज्यादा दिक्कत अगर किसी पशु को हो रही है, तो वह है हाथी। ऐसी स्थिति में जंगली पशु खासकर हाथी कहां जाएं। इस कारण मानव और हाथियों का संघर्ष पिछले कुछ सालों में बढ़ा है।

    देश में असम की पहचान एक हाथी वाले प्रदेश के रूप में होती है। यह वही असम है, जहां पर पिछले वर्ष एक भी गैंडे की मौत नहीं होने पर सरकार की पीठ स्वयं प्रधनमंत्री नरेंद्र मोदी ने थपथपाई थी। लेकिन इसी राज्य में दो दशक के दौरान 1,330 हाथियों की मौत के आंकड़े किसी भी वन्यजीव प्रेमी और पूरी मानवता के लिए चिंता का विषय हैं। जो जानकारी विधानसभा में रखी गई, उसके मुताबिक केवल 509 हाथियों की मौत प्राकृतिक कारणों से हुई, जबकि 261 हाथियों की मौत अज्ञात कारणों से हुई है। 102 हाथियों की मौत रेलगाड़ियों की चपेट में आने से हुई, जबकि 65 हाथियों को जहर देकर मारा गया, वहीं 40 हाथियों का इस दौरान शिकार किया गया। 202 हाथियों की मौत बिजली के संपर्क में आने से हुई, जबकि आकाशीय बिजली गिरने से 18 हाथी काल का शिकार हुए। असम के वनमंत्री चंद्रमोहन पटवारी ने सदन को जानकारी दी कि सबसे अधिक हाथियों की मौत (107) 2013 में, उसके बाद 2016 में 97 और 2014 में 92 हाथियों की मौतें हुईं।

    असम में हर साल मानव-पशु संघर्ष में औसतन 70 से अधिक लोगों और 80 से अधिक हाथियों की मौत हो जाती है। अगर बात करें वर्तमान में असम में हाथियों की संख्या की, तो यहां 5,700 से कुछ अधिक हाथी ही रह गए हैं। मंत्री ने केवल आंकड़े ही नहीं गिनाए बल्कि इसका कारण भी बताया कि हाथियों के प्राकृतिक वास में मानव के बढ़ते दखल ने पशुओं को भोजन की तलाश में बाहर निकलने के लिए बाध्य किया है, जिसके परिणामस्वरूप उनका मानव से संघर्ष होता है। उल्लेखनीय है कि इस समय देश में 33 हाथी अभयारण्य हैं और 12 सौ वर्ग किलोमीटर में ये फैले हुए हैं। 12 अगस्त दुनिया में हाथी दिवस के रूप में मनाया जाता है। एक रिपोर्ट के मुताबिक 2017 में की गई हाथियों की गणना के मुताबिक देश में हाथियों की संख्या करीब 30 हजार है।

    एक रिसर्च में पाया गया कि हाथी जंगल बनाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। अधिक वायुमंडलीय कार्बन एकत्रित करने और वन की जैविक विविधता को कायम रखने के लिए उनकी बड़ी भूमिका रहती है। शोधकर्ताओं ने पाया कि हाथियों की संख्या कम होती है और अगर हाथी विलुप्त हो गए, तो ऐसी स्थिति में वायुमंडलीय कार्बन का प्रभाव बढ़ सकता है। अमेरिका के सेंट लुइस विश्वविद्यालय के शोधकर्ताओं ने एक अध्ययन में पृथ्वी के लिए हाथी के महत्व को रेखांकित किया है। इस शोध के वरिष्ठ लेखक स्टीफन ने अपने करिअर का अधिकतर समय हाथी के अध्ययन में बिताया है।

    स्टीफन और उनके साथी हाथियों की पारिस्थितिकी के कारण अफ्रीकी देश के वर्षा वनों में कार्बन का प्रभाव अधिक देख रहे हैं। इसका अर्थ यह हुआ कि जैसे-जैसे हाथियों की संख्या कम होती जाएगी, जलवायु परिवर्तन का प्रभाव बढ़ता जाएगा। असम सरकार ने विधानसभा में जो आंकड़े पेश किए हैं, इसे हमें खतरे की घंटी के रूप में देखना चाहिए। भारत सरकार के केंद्रीय वन मंत्रालय ने 1992 में हाथियों के संरक्षण के लिए हाथी परियोजना की शुरुआत की थी। नए संदर्भ में इसे और सशक्त और सक्रिय बनाए जाने की जरूरत है, ताकि धरती के रक्षकों की सुरक्षा सुनिश्चित हो।

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