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    April 22, 2025

    समंदर में समाता जा रहा भारत का ये पड़ोसी मुल्क! क्या दुनिया के नक्शे से हो जाएगा खत्म?

    1 min read
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    पृथ्वी दिवस 2025 पर मालदीव और लक्षद्वीप जैसे द्वीपीय क्षेत्रों पर मंडराते समंदर के जलस्तर वृद्धि के खतरे को नजरअंदाज करना मुश्किल है. जानिए कैसे ये सुंदर द्वीप अब अस्तित्व संकट की ओर बढ़ रहे हैं.

    पृथ्वी दिवस हर साल 22 अप्रैल को मनाया जाता है. यह एक ऐसा दिन है, जो हमें हमारी धरती के प्रति जिम्मेदारी और उसके भविष्य के संकटों की याद दिलाता है, लेकिन इस वर्ष का संदेश पहले से कहीं ज्यादा गंभीर है. ऐसा इसलिए क्योंकि धरती का एक खूबसूरत हिस्सा मालदीव और भारत का लक्षद्वीप धीरे-धीरे समुद्र के पानी में डूबने की कगार पर पहुंच रहा है.

    यह जलवायु परिवर्तन के वास्तविक प्रभावों की एक भयावह सच्चाई है, जो आने वाली पीढ़ियों के लिए जीवन, संस्कृति और अस्तित्व का संकट पैदा कर रही है. मालदीव, जिसे दुनियाभर के पर्यटक स्वर्ग मानते हैं, अब खुद अपने अस्तित्व के लिए संघर्ष कर रहा है. यह देश दुनिया का सबसे निचला देश है, जिसकी औसत ऊंचाई सिर्फ 1.5 मीटर है. इसके 1190 द्वीपों में से 80% द्वीप समुद्र तल से महज 1 मीटर से भी कम ऊंचाई पर स्थित हैं. विश्व मौसम विज्ञान संगठन की रिपोर्ट के अनुसार, 1901 से 2018 तक समुद्र का स्तर 15–25 सेंटीमीटर तक बढ़ा है. 2013 से 2022 के बीच यह वृद्धि 4.62 मिमी प्रति वर्ष हो चुकी है – यानी अब समुद्र पहले से ज्यादा तेजी से बढ़ रहा है.

    2050 तक मालदीव के कई द्वीप हो जाएंगे जलमग्न
    वैज्ञानिकों का अनुमान है कि 2050 तक मालदीव के कई द्वीप जलमग्न हो सकते हैं. यह सिर्फ भौगोलिक संकट नहीं बल्कि सांस्कृतिक और मानवीय आपदा का संकेत है. एक ऐसा देश, जो खुद पर्यावरण के लिए कोई बड़ा खतरा नहीं है, अब दुनिया की कार्बन गतिविधियों का सबसे पहला शिकार बनने वाला है.

    भारत का लक्षद्वीप: समुद्र की गिरफ्त में आ रहा है
    पड़ोसी मालदीव की तरह भारत का लक्षद्वीप द्वीपसमूह भी अब जलवायु परिवर्तन की सीधी मार झेलने को तैयार हो रहा है. IIT खड़गपुर और विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी विभाग द्वारा किए गए एक अध्ययन के अनुसार, लक्षद्वीप में 0.4–0.9 मिमी प्रति वर्ष की दर से समुद्र स्तर बढ़ने की आशंका जताई गई है.

    यह सिर्फ एक जलवायु संकट नहीं, एक मानवीय संकट भी है
    जैसे-जैसे समुद्र तट पीछे खिसकते जा रहे हैं, हजारों लोग बेघर होने के कगार पर हैं. उनकी संपत्ति, रोजगार, परंपरा और संस्कृति सब समुद्र में समाने की स्थिति में है.

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