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    April 25, 2025

    वो मराठा शेर जिसके शरीर को काटते गया औरंगजेब लेकिन… ‘छावा’ की कहानी रोंगटे खड़े कर देगी।

    1 min read
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    मराठा साम्राज्य की कहानी वीरों के लहू से लिखी गई है. मुगलों के राज में मराठा वीर अपने धर्म के लिए सिर कटाने से पीछे नहीं हटे. विकी कौशल की छावा फिल्म ऐसे ही एक रणबांकुरे की कहानी है जिसने औरंगेजब के सामने सिर नहीं झुकाया. इसके बदले में औरंगेजब ने उनके शरीर के एक-एक अंग काट दिए.

    देश धरम पर मिटने वाला, शेर शिवा का छावा था. महा पराक्रमी परम प्रतापी, एक ही शंभू राजा था… अगर आप सोशल मीडिया पर हैं तो ऐसी जोश से भर देनी वाली लाइनें आजकल आप जरूर पढ़ रहे होंगे. ऐसे में आपके मन में सवाल होगा कि विकी कौशल ने जिस बहादुर का किरदार निभाया है, वो कौन है? फिल्म के वायरल सीन में वह शेर से लड़ता, तलवार चलाता और जंजीरों में बंधा दिखाई देता है. खून खौलाने वाले फिल्मी दृश्य के पीछे की असल कहानी क्या है? ये कहानी है मराठा साम्राज्य के सितारे छत्रपति शिवाजी महाराज के बेटे छत्रपति संभाजी महाराज की. शिवाजी बड़े प्यार से अपने बेटे को ‘छावा’ कहते थे. यह फिल्म उसी वीर योद्धा की गाथा है. विकी कौशल के शानदार अभिनय के साथ अब छावा की चर्चा जोर पकड़ रही है.

    शेर से लड़ने वाले उस संभाजी ने महज 22 साल की उम्र में पहली जंग लड़ी थी. आगे 10 साल के भीतर उन्होंने 100 से ज्यादा लड़ाइयां लड़ीं और जीती भी. कहते हैं कि मुगल बादशाह औरंगजेब उन्हें हराने का सपना ही देखता रहा. इस फिल्म में भी औरंगजेब और संभाजी महाराज की दुश्मनी की कहानी दिखाई गई है. संभाजी महाराज की वीरता का कायल औरंगजेब भी था. हालांकि उनके साथ उस जालिम ने जो किया, वो पढ़कर आप हिल जाएंगे. फिल्म देखकर लोगों की आंखों में आंसू आ जाते हैं.

    संभाजी की वीरता से फड़कने लगेंगे बाजू!
    3 अप्रैल 1680, इतिहास में दर्ज वो तारीख है जब छत्रपति शिवाजी महाराज का निधन हुआ. इसके बाद मराठा साम्राज्य के उत्तराधिकारी को लेकर अनिश्चितता की स्थिति पैदा हो गई. ऐसा इसलिए क्योंकि शिवाजी ने कोई वसीयत नहीं की थी. संभाजी उस समय शिवाजी के पास नहीं थे. उनकी सौतेली मां अपने बेटे राजाराम को गद्दी दिलाना चाहती थी. 21 अप्रैल को ऐसी कोशिश भी हो गई. संभाजी महाराज को पता चला तो उन्होंने 22 साल की उम्र में ही एक के बाद एक मराठा किलों पर अपना अधिकार जमा लिया. आखिरकार 20 जुलाई 1680 को उन्होंने सिंहासन संभाला.

    छावा का अर्थ
    आगे पढ़ने से पहले यह जान लीजिए कि छावा का अर्थ होता है- शेर का बच्चा. पुणे से करीब 50 किमी दूर पुरंदर किले में संभाजी का जन्म 14 मई 1657 को हुआ था. वह 2 साल के थे तभी उनकी माता का निधन हो गया. शिवाजी महाराज की माता जीजाबाई ने उन्हें पाला.

    औरंगजेब ने पूरी ताकत लगा दी लेकिन…
    संभाजी महाराज शेर की तरह बहादुर थे. सिंहासन संभालने के बाद उन्होंने भी पिता के नक्शेकदम पर चलते हुए मुगलों को चुनौती देना जारी रखा. 1682 आते-आते औरंगजेब दक्षिण की तरफ तेजी से कब्जा करने की नीयत से आगे बढ़ रहा था. उसकी साजिश ऐसी थी कि मराठा साम्राज्य को चारों तरफ से घेरकर घुटनों पर लाया जा सके. हालांकि संभाजी शेर की तरह अड़े रहे. गुरिल्ला युद्ध में उन्होंने अपने से कई गुना बड़ी मुगलों की फौज को एक नहीं, कई बार धूल चटाई.

    1685 तक मुगल फौज मराठा साम्राज्य की दीवारें तक नहीं हिला सकी. दो साल बाद यानी 1687 में मुगलों ने पूरी ताकत झोंक दी और बड़ा हमला किया. इस जंग में संभाजी के विश्वासपात्र सेनापति हंबीरराव मोहिते वीरगति को प्राप्त हुए. मराठा सेना के भीतर खुद को कमजोर समझने की भावना पैदा होने लगी. इधर, साम्राज्य के भीतर संभाजी के दुश्मन सिर उठाने लगे. जासूसी होने लगी. यही वजह थी कि 1689 में संभाजी की एक बैठक में मुगलों ने घात लगाकर हमला कर दिया. मराठा साम्राज्य के कुछ ऐसे दगाबाजों की बदौलत संभाजी महाराज को पकड़ लिया गया.

    बताते हैं कि कैदी बनाने के बाद औरंगजेब ने संभाजी से इस्लाम कबूल करने का दबाव डाला. संभाजी को सिर कटाना कबूल था लेकिन धर्म छोड़ना नहीं. मुगलों ने जुल्म की सीमा पार कर दी. संभाजी के हाथ और गर्दन को लकड़ी से फंसाकर बेड़ियों में बांधा गया. एक वक्त ऐसा आया जब घमंडी औरंगजेब ने संभाजी को उनके सामने नजरें झुकाने के लिए कहा. संभाजी का सिर नहीं झुका तो औरंगजेब के कहने पर इस वीर मराठा की आंखें निकाल ली गईं.

    जुबान कटवाई फिर काटने लगा शरीर
    कई इतिहासकारों ने लिखा है कि औरंगजेब ने एक नहीं, कई बार इस्लाम कबूल करने की पेशकश की लेकिन संभाजी अडिग रहे. इसके बाद भी अत्याचार का सिलसिला नहीं थमा. औरंगजेब ने संभाजी की जुबान कटवा दी. आगे की लाइनें पढ़कर आप हिल जाएंगे. जरा सोचिए, वो मंजर कैसा रहा होगा. आगे संभाजी के एक-एक अंग काट दिए गए. उस समय संभाजी महज 32 साल के थे. 11 मार्च 1689 को सिर उनके धड़ से अलग कर दिया गया.

    औरंगजेब को हिंदुओं का नरसंहार करने वाला यूं ही नहीं कहा जाता. संभाजी महाराज की हत्या करवाने के बाद उसने मराठा साम्राज्य में दहशत फैलाने की कोशिश की. उसने कई शहरों में संभाजी का सिर लेकर घुमाया. हालांकि डरने की बजाय मराठाओं का खून खौल उठा. वे आगबबूला हो गए और साम्राज्य के सभी शासक एकजुट हो गए. इसका नतीजा यह हुआ कि जीते जी औरंगजेब कभी मराठा साम्राज्य पर कब्जा नहीं कर पाया.

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