सस्ते में चांद पर पहुंचने का चीन ने निकाला जुगाड़, अब कम खर्चे में अंतरिक्ष घूमेगा ड्रैगन।
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China: चीन के इंस्टीट्यूट 165 ने एक दिन के अंदर लिक्विड ऑक्सीजन कैरोसीन इंजन का 3 सफल परीक्षण किया है. चीन का यह परीक्षण उनके स्पेस मिशन के लिए काफी किफायती समाधान साबित हो रहा है. इससे चीन को भविष्य के मिशन में काफी सफलता मिल सकती है.
China: ये तो सभी जानते हैं कि दुनियाभर में सबसे किफायती प्रोडक्ट्स बनाने में चीन हमेशा आगे रहता है. वहीं इस देश ने अमेरिका की तरह रिवर्स इंजीनियरिंग में भी अपनी अलग पहचान बनाई है. हाल ही में चीन ने स्पेस लॉन्चिंग से जुड़ी लागतों को कम करने के लिए एक नया एक्सपेरिमेंट किया है. ये टेक्नोलॉजी लूनार मिशन की लागत को भी कम करने में मदद कर सकती है. भारत भी इस टेक्नीक में आगे बढ़ रहा है. चीन ने इसको लेकर न सिर्फ सफल प्रयोग किया है, बल्कि इसके विकास में कई तरक्की भी हासिल की है.
चीन का सफल परीक्षण
चीनी इंस्टीट्यूट 165, जो चीन के ‘एरोस्पेस साइंस एंड टेक्नोलॉजी कॉर्पोरेशन’ ( CASC) के छठी अकादमी का हिस्सा है उसने एक दिन के अंदर लिक्विड ऑक्सीजन कैरोसीन इंजन का 3 बार लगातार सफल परीक्षण किया है. यह सफल परीक्षण चीन के लिए मील का पत्थर साबित हो रहा है. चीन की इस उपलब्धि ने वहां की अगली पीढ़ी के लॉन्चिंग वेहिकल के लिए प्रॉपल्शन इंजनों के विकास में महत्वपूर्ण प्रगति को दर्शाया है. इससे यह देश एक्सेलेरेटेड रेट पर मिशन लॉन्च कर सकेगा. चीन की यह सफलता उसके स्पेस प्रोग्राम को और अधिक सुधारने में मदद कर सकती है.
इस टेक्नोलॉजी का किया इस्तेमाल
इस इंजन कॉम्बिनेशन के साथ चीन के रॉकेट स्पेस में 500 टन पेलोड को कैरी करने में सक्षम हो सकते हैं. इसके साथ ही लिक्विड कैरोसीन इंजन का इस्तेमाल करने से चीन की अंतरिक्ष उड़ान कम लागत वाली हो जाएगी. चीन आमतौर पर इसके लिए ही जाना जाता है. साल 2024 में चीन ने सफलतापूर्वक 4 इंजन वाले पैरेलल इग्निशन का परीक्षण किया था. उसमें भी इसी लिक्विड कैरोसीन टेक्नोलॉजी का इस्तेमाल किया गया था.
कितने उपयोगी हैं इंजन
आमतौर पर सैटेलाइट और स्पेस्क्राफ्ट ले जाने वाले रॉकेट के इंजन को उसमें आग बनाए रखने के लिए न सिर्फ ईधन बल्कि ऑक्सीजन की भी आवश्यकता होती है. ऐसे में लिक्विड ऑक्सीजन इसमें ऑक्सीडाइजर का काम करते हैं, जो रॉकेट टेक्नोलॉजी के लिए जरूरी बन जाते हैं. खासतौर पर मीडियम क्रायोजेनिक इंजन के लिए. कैरोसीन और लिक्विड इंजन के कॉम्बिनेशन की लागत काफी कम है. इसके साथ ही यह रॉकेट की शक्ति को भी बढ़ाने का काम करता है. इन दोनों चीजों को आसानी से स्टोर और मैनेज किया जा सकता है.
स्पेस मिशन के लिए उपयोगी
बता दें कि ये टेक्नोलॉजी इंजन के डिजाइनिंग में भी काफी फायदा पहुंचाती है. इसमें पारंपरिक इंजनों के मुकाबले कम जगह और वजन की जरूरत पड़ती है. चीन के इस टेक्नोलॉजी में सुधार करने की प्रक्रिया उनके रॉकेट की क्षमता को और भी अधिक बढ़ा रही है. चीन का यह एक्सपेरिमेंट जल्द ही भविष्य के स्पेस मिशन के लिए अमूल्य साबित होगा यह उनके साल 2030 तक अपने अंतरिक्ष यात्रियों को चांद पर भेजने के उद्देश्य में भी मदद कर सकता है.
लूनार मिशन की तैयारी कर रहा चीन
चीन अपने स्पेस प्रोगाम के लिए काफी खर्चा करता है, हालांकि वह लगातार अपने मिशन की लागत को कम करने के लिए भी प्रयास करता है. ऐसे में सरकार के साथ ही वहां की प्राइवेट कंपनियां भी इसमें सक्रिय रूप से शामिल हो रही हैं. अगर लूनार मिशन की बात करें तो चीन अपना लॉन्ग मार्च 9 स्पेस्क्राफ्ट डेवलेप कर रहा है. यह स्पेसएक्स के स्टारशिप जैसा ही है. इसकी पेलोड क्षमता 1,500kg है. बता दें कि चीन ने लूनार मिशन के लिए अपने अपने अंतरिक्ष यात्रियों के लिए विशेष स्पेस सूट भी विकसित किए हैं. वहीं चीन ने चांद के दूरी की तरफ पहुंचना, चांद के कुछ सैंपल प्राप्त करना और मंगल पर रोवर तैनात करना जैसी उपलब्धियां हासिल की हैं. इन उपबलब्धियों को देखते हुए विशेषज्ञों का मानना है कि चीन साल 2030 तक चांद पर अंतरिक्ष यात्रियों को उतारने का लक्ष्य प्राप्त कर सकता है.
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