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    April 23, 2025

    एक देश एक चुनाव.. यह बिल पास हो जाए तो भी 10 साल लग जाएंगे, जानिए इनसाइड स्टोरी।

    1 min read
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    इसमें कोई दो राय नहीं है कि एक देश एक चुनाव भारतीय लोकतंत्र के लिए एक बड़ा कदम हो सकता है, लेकिन इसे लागू करने में समय, संसाधन और सर्वसम्मति की आवश्यकता होगी. इसको ऐसे समझिए कि इसमें राज्यों तक की सहमति चाहिए. लेकिन आखिर इसको पूर्ण रूप से आकर लेने में अभी कम से कम 10 साल लगेंगे.. आखिर कैसे?

    एक देश एक चुनाव की गहमागहमी ने एक बार फिर जोर पकड़ लिया है. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की लंबे समय से चली आ रही इस योजना का उद्देश्य देशभर में लोकसभा और विधानसभा चुनाव एक साथ कराना है, जिससे चुनावी खर्च और प्रशासनिक बोझ को कम किया जा सके. वर्तमान में लोकसभा और तमाम की विधानसभाओं के चुनाव अलग-अलग समय पर होते हैं, जिससे कई चुनौतियां खड़ी होती हैं. इसको ऐसे समझिए कि अगर चुनाव साथ होने लगेंगे तो अलग-अलग होने पर चुनावी खर्चों को एक ही बार कर सकेंगे और काफी पैसे बचेंगे. लेकिन यह राह आसान नहीं है. अगर संसद कानून भी बना दे तो इसमें कम से कम 10 साल लग जाएंगे.

    असल में हुआ यह था कि सितंबर में सरकार ने रामनाथ कोविंद की अध्यक्षता में उच्चस्तरीय समिति की रिपोर्ट को मंजूरी दी थी. इसके बाद, केंद्रीय मंत्रिमंडल ने गुरुवार को इस योजना को लागू करने के लिए विधेयक का मसौदा तैयार करने का निर्णय लिया. सरकार अब इस विधेयक को संसद के शीतकालीन सत्र में पेश करने की तैयारी में है.

    आखिर कैसे लागू होगा एक देश एक चुनाव?
    एक देश, एक चुनाव लागू करने के लिए सबसे पहले संवैधानिक संशोधन जरूरी है. इसके तहत पांच प्रमुख अनुच्छेदों में बदलाव करना होगा—अनुच्छेद 83, 85, 172, 174, और 356. ये अनुच्छेद लोकसभा और विधानसभाओं के कार्यकाल, भंग करने के अधिकार, और राष्ट्रपति शासन से संबंधित हैं.

    सरकार को विधेयक संसद में पारित करवाने के लिए दोनों सदनों में दो-तिहाई बहुमत जुटाना होगा. इसके अलावा, कम से कम 15 राज्यों की विधानसभाओं से इसे मंजूरी दिलानी होगी. इसके बाद राष्ट्रपति के हस्ताक्षर से यह कानून बन सकेगा.

    एक बार कानून बनने के बाद भी, इसे लागू करने के लिए कई चरणों में काम करना होगा. चुनाव आयोग को अधिक संख्या में ईवीएम और वीवीपैट की आवश्यकता होगी, जिनके निर्माण और परीक्षण में समय लगेगा.

    कितना समय लगेगा इसे लागू करने में?
    एक्सपर्ट्स के मुतबिक इस विधेयक के बिना किसी बदलाव के पारित होने पर भी इसे पूरी तरह लागू होने में 10 साल का समय लग सकता है. इसका कारण यह है कि मौजूदा लोकसभा का कार्यकाल 2029 में समाप्त होगा, और उसके बाद निर्वाचित लोकसभा की पहली बैठक के दौरान इसे अधिसूचित किया जाएगा.

    चुनाव आयोग के अनुसार, एक साथ चुनाव कराने के लिए आवश्यक ईवीएम और अन्य संसाधनों की व्यवस्था में कम से कम तीन साल लगेंगे. इसके अलावा, यदि जल्दबाजी में कदम उठाए गए, तो तकनीकी और प्रशासनिक खामियां आ सकती हैं.

    चुनाव आयोग और विशेषज्ञों की चिंताएं
    चुनाव आयोग का कहना है कि भारत जैसे बड़े लोकतांत्रिक देश में एक साथ चुनाव कराने के लिए गहन योजना और तैयारी की जरूरत है. आयोग ने सुझाव दिया कि जल्दीबाजी में इसे लागू करना संभव नहीं होगा. EVM निर्माण कंपनियों को इस प्रक्रिया के लिए बड़ी मात्रा में उत्पादन करने की क्षमता विकसित करनी होगी, जो फिलहाल सीमित है.

    सरकार और विपक्ष की प्रतिक्रिया
    काफी पहले ही बीजेपी ने इसे लोकतंत्र को मजबूती देने वाला कदम बताया है. प्रधानमंत्री मोदी ने इसे “विकासशील भारत” के लिए जरूरी करार दिया. वहीं कांग्रेस ने इसका विरोध करते हुए इसे लोकतांत्रिक मूल्यों के खिलाफ बताया है. कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खरगे ने कहा लोकतंत्र में चुनाव की आवश्यकता समय के साथ बदलती रहती है, इसे एक साथ समेटना व्यावहारिक नहीं है. फिलहाल अब देखना होगा कि यह डिबेट किस दिशा में जाती है. लेकिन इसमें समय लगना तय है.

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