फडणवीस ने माना अजित से मुद्दों पर मतभेद, महाराष्ट्र चुनाव में दिलों की दूरी या रणनीति का हिस्सा?
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महाराष्ट्र विधानसभा चुनाव में मतदान का दिन करीब आने के बीच सत्तारुढ़ महायुति के दो सहयोगी भाजपा और एनसीपी में मतभेद भी उभरता जा रहा है. महाराष्ट्र की राजनीति के कुछ जानकार इसे दिलों की दूरी बता रहे हैं. वहीं, कई लोग इसे चुनावी रणनीति का हिस्सा भी मान रहे हैं.
महाराष्ट्र विधानसभा चुनाव 2024 के बीच महायुति में भाजपा और एनसीपी के मतभेद लगातार बढ़ते जा रहे हैं. भाजपा नेताओं के विरोध के बावजूद दागी नवाब मलिक को मनखुर्द शिवाजी नगर सीट से टिकट देने, उसका बचाव करने, ‘बंटेंगे तो कटेंगे’ नारे का विरोध और मुंबई में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की रैली से जीशान सिद्दीकी समेत एनसीपी के कई उम्मीदवारों की दूरी से यह बात खुलकर सामने आ गई.
देवेंद्र फडणवीस ने मान ली कई मुद्दों पर अजित पवार से मतभेद की बात
दूसरी ओर, भाजपा नेता और महाराष्ट्र के उप मुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस ने भी मुद्दों पर अजित पवार और उनकी एनसीपी के साथ मतभेदों की बात को सार्वजनिक तौर पर मान लिया. एक टीवी चैनल के इंटरव्यू में फडणवीस ने साफ तौर पर कहा, ‘अजित पवार के साथ इस बात पर पर हंड्रेड परसेंट रिफ्ट है कि हम नवाब मलिक का काम नहीं करेंगे. हमने कहा कि नवाब मलिक को टिकट मत दीजिए. हमने वहां शिवसेना को टिकट दिया है उसका काम करेंगे.’
अजित पवार ने पूर्व पीएम राजीव गांधी से की नवाब मलिक की तुलना
वहीं, अजित पवार ने न्यूज एजेंसी एएनआई के साथ इंटरव्यू में पूर्व प्रधानमंत्री राजीव गांधी से नवाब मलिक की तुलना करते हुए उनका बचाव किया. कुख्यात आतंकी और भगोड़े दाउद इब्राहिम के गुर्गों के साथ करीबी और मनी लॉन्ड्रिंग के मामले में जेजा चुके नवाब मलिक को टिकट दिए जाने पर एनसीपी प्रमुख ने सफाई दी. उन्होंने कहा, “आरोप लगाना आसान है, लेकिन उन्हें अदालत में साबित किया जाना चाहिए. अभी ये सिर्फ आरोप हैं. लोकतंत्र में कोई भी किसी पर भी आरोप लगा सकता है.”
क्या भाजपा- एनसीपी और उनके नेताओं के दिलों की दूरियां बढ़ गई?
इसके अलावा, अजित पवार ने उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के हाल ही में चर्चित हुए नारे ‘बंटेंगे तो कटेंगे’ और लोकसभा चुनाव के नारे ‘अबकी बार 400 पार’ का सीधे तौर पर विरोध किया. ऐसे ही कई और मामले सामने आने के बाद माना जाने लगा कि दोनों दलों और उनके नेताओं के दिलों की दूरियां बढ़ गई हैं. चुनाव के पहले टिकट के लिए मारामारी कर रहे महायुति के दोनों साथी नतीजे आने के बाद उसके हिसाब से फैसला ले सकते हैं. क्योंकि इस बीच अजित पवार ने एनसीपी (शरद पवार) और बारामती सीट समेत परिवार के लिए प्रेम का भी सार्वजनिक प्रदर्शन किया. रैलियों में आंसू बहाकर इमोशनल भी हुए.
अजित पवार के भाजपा के नारे के मिसफायर होने वाली बात खारिज
इस बीच, देवेंद्र फडणवीस ने लोकसभा चुनाव में महाराष्ट्र में अजित पवार के भाजपा के नारे के मिसफायर होने वाली बात को खारिज कर दिया. फडणवीस ने कहा कि लोकसभा चुनाव में महायुति के प्रदर्शन खराब होने का पहला कारण विपक्ष की ओर से संविधान बदल जाएगा और आरक्षण जाएगा जैसे फेक नैरेटिव फैलाए जाने और दूसरा कारण कांग्रेस का महाराष्ट्र में वोट जिहाद के इस्तेमाल को बताया. उन्होंने कहा कि हमें कई सीटों पर अल्पसंख्यक वोटों के कारण हारना पड़ा. क्योंकि कई सीटों पर धार्मिक नेताओं ने प्रचार किया, धर्मस्थल से अपीलें की गईं. अब यह दोनों कारण महाराष्ट्र में सफल नहीं होने वाला है.
योगी के ‘बंटेंगे तो कटेंगे’ और पीएम मोदी के ‘एक हैं तो सेफ हैं’ की गूंज
फडणवीस ने योगी आदित्यनाथ के नारे ‘बंटेंगे तो कटेंगे’ और पीएम caor के नारे ‘एक हैं तो सेफ हैं’ को सही बताते हुए अजित पवार को जवाब दिया. उन्होंने कहा, ‘योगी जी ने जो कहा है कि बंटेंगे तो कटेंगे. ये तो भारत का इतिहास रहा है. भारत जब भी जातियों, प्रांतों और भाषाओं में बंटा है, तब-तब भारत गुलामी में गया है. इसलिए जो बात कही गई है कि बंटेंगे तो कटेंगे, वो बिल्कुल सही है. लेकिन उससे भी ज्यादा मैं मानता हूं कि जो मंत्र मोदी जी ने दिया है कि एक हैं तो सेफ हैं वो बहुत अहम मंत्र हैं.
अजित पवार के विचारों को फडणवीस ने क्यों कहा सूडो सेकुलरिज्म?
अजित पवार पर बोलते हुए फडणवीस ने कहा कि वे अलग विचारों से आए हैं. कई बार मुझे लगता है कि जिन विचारों से वो आए हैं, उन विचारों ने उनके दिमाग में कभी-कभी सूडो सेकुलरिज्म बाहर आ जाता है. इसके साथ ही उन्होंने एक और अहम बात कहा कि हमारी लड़ाई मुख्य रूप से कांग्रेस के खिलाफ है. महाराष्ट्र में सबसे ज्यादा आमने-सामने भाजपा और कांग्रेस ही है. इसके बाद भाजपा और एनसीपी या अजित पवार के बीच दिलों की दूरी के बरअक्श एक और सवाल खड़ा हुआ कि क्या ये बयानबाजियां दोनों दलों और उनके नेताओं की मिली-जुली चुनावी रणनीति तो नहीं है.
भाजपा और अजित के बीच मौजूदा बयानों को क्यों रणनीति माना जा रहा?
पिछली बार 2019 में हुए विधानसभा चुनाव के नतीजे के बाद देवेंद्र फडणवीस ने शिवसेना के झटके के बाद अजित पवार की मदद से ही अहले सुबह शपथ ग्रहण कर सरकार बना ली थी. हालांकि, शरद पवार की रणनीति के चलते यह सरकार तुरत गिर गई और महाराष्ट्र में शिवसेना, कांग्रेस और एनसीपी के गठबंधन की नई सरकार बनी. इसके बावजूद फडणवीस और अजित पवार की दोस्ती बनी रही. जिसका असर एनसीपी में टूट के रूप में सामने आया. विरोधी दिखने के बावजूद माना जा रहा है कि दोनों दल महाराष्ट्र के मुस्लिम वोट बैंक के लिए यह नूराकुश्ती करते दिख रहे हैं.
महाराष्ट्र में भाजपा विरोधी मुस्लिम वोट बैंक को महायुति में लाने की कवायद
महाराष्ट्र में लगभग 12 प्रतिशत मुस्लिम वोट बैंक को भाजपा विरोधी ही माना जाता रहा है. महाराष्ट्र में 1 करोड़ 30 लाख से ज्यादा आबादी वाले मुस्लिम 38 विधानसभा सीटों पर 20 फीसदी से ज्यादा और 9 विधानसभा सीटों पर 40 फीसदी से ज्यादा बड़े वोट बैंक हैं. आमतौर पर भाजपा के पास मुस्लिम उम्मीदवार भी नहीं होते हैं. ऐसे में भाजपा वाले गठबंधन महायुति को मुस्लिम वोटों का नुकसान न हो इसलिए अजित पवार के जरिए उनको अपने साथ जोड़े रहने की कवायद की जा रही है.
महाराष्ट्र चुनाव में राज्य के 11.56 फीसदी से ज्यादा मुस्लिम वोटों के ध्रुवीकरण के लिए ओवैसी की एआईएमआईएम, कांग्रेस, एनसीपी (शरद पवार), शिवसेना (यूबीटी) के बीच अजित पवार भी अपना कार्ड खेलने से पीछे नहीं हट रहे.
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