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    May 11, 2025

    लोकतंत्र खतरे में है! कमला हैरिस का डराना काम नहीं आया, अमेरिका ने डोनाल्ड ट्रंप को फिर राष्ट्रपति क्यों बनाया?

    1 min read
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    अमेरिकी वोटर्स ने डोनाल्ड ट्रंप को ‘लोकतंत्र के लिए खतरा’ बताने वाली लेकर कमला हैरिस को नकार दिया. 2024 के राष्‍ट्रपति चुनाव में असली मुद्दे किसी आभासी खतरे की चेतावनी पर भारी पड़े.

    डोनाल्ड ट्रंप से खतरा है… अमेरिका को, अमेरिका के लोकतंत्र को, दुनिया की शांति को… पिछले कुछ महीनों में कमला हैरिस बार-बार यही डर दिखाकर जनता को अपने पक्ष में मतदान के लिए मनाती रहीं. वह ट्रंप को ‘विलेन’ की तरह पेश करती रहीं और खुद को उस विलेन से बचाने वाले ‘हीरो’ की तरह. लेकिन बुधवार को जब 2024 अमेरिकी राष्ट्रपति चुनाव के नतीजे आए तो कमला हैरिस का दिखाया डर कहीं छूमंतर हो गया. जनता ने ‘लोकतंत्र खतरे में है’ की पुकार को नकारते हुए चार साल बाद फिर से ट्रंप को व्हाइट हाउस में भेजा है. पर क्यों? इस सवाल के जवाब में ही चुनावी राजनीति का सच छिपा है.

    डर के आगे ट्रंप की जीत है!
    60 साल की हैरिस को राष्ट्रपति जो बाइडेन के पीछे हटने के बाद चुनावी रेस में फ्रंट पर आना पड़ा. डेमोक्रेटिक पार्टी की उम्मीदवार के रूप में, उन्होंने 78 वर्षीय ट्रंप की तुलना में ‘नेतृत्व की एक नई पीढ़ी’ का वादा किया. अश्वेत और भारतीय अप्रवासियों की संतान होना कमला के लिए प्लस प्वाइंट था. डेमोक्रेट्स को यह तो मालूम था कि धुर ट्रंप समर्थक कभी पाला नहीं बदलेंगे, इसलिए उन्होंने मध्‍यम-मार्गी वोटर्स और ट्रंप से नाखुश रिपब्लिकन वोटर्स को टारगेट किया.

    कमला हैरिस ने अपने प्रचार अभियानों में बार-बार ट्रंप के चार साल पहले के कार्यकाल की याद दिलाई. वह बार-बार कसम खातीं, ‘हम उस दौर में वापस नहीं जा रहे.’ चूंकि कमला के पास खुद को प्रोजेक्ट करने के लिए ज्यादा वक्त नहीं था, इसलिए उन्होंने सीधे ट्रंप की उम्मीदवारी पर ही सवाल उठाने शुरू कर दिए. उन्होंने खूब वादे किए: घरों की कीमतें काबू में लाएंगी, महंगाई पर कंट्रोल करेंगी, हाशिए पर पड़े समूहों को मुख्यधारा में लाएंगी आदि. लेकिन कमला उस समय शायद यह भूल जाती रहीं कि वर्तमान प्रशासन उन्हीं की पार्टी का है, ट्रंप का नहीं.

    डर पर भारी पड़ी रोजी-रोटी की उम्मीद
    बाइडेन प्रशासन के दौरान, अमेरिका में महंगाई चरम पर जा पहुंची. कोविड-19 के चलते फैक्ट्रियां बंद हुईं तो नौकरियों पर संकट आया. मिडल क्लास और वर्किंग क्लास की हालत बिगड़ने लगी. महामारी का कहर घटा तो बढ़ते हाउस रेंट और ग्रोसरी बिल्स ने परेशान कर दिया. ऊपर से राज्य के बाद राज्य, प्राकृतिक आपदाओं की चपेट में थे. मगर बाइडेन प्रशासन जनता की ओर मदद का हाथ बढ़ाने के बजाय यूक्रेन को भारी रकम भेजता नजर आया. जनता यह सब सहती रही.

    जब बाइडेन की जगह कमला की उम्मीदवारी का ऐलान हुआ तो एक उम्मीद जगी. अमेरिकी पब्लिक के एक बड़े हिस्से को लगा कि कमला निराशा के इस दौर में बराक ओबामा की तरह आशा का संचार करेंगी. चुनावी समर में कमला की डायरेक्ट एंट्री और शुरुआती कुछ दिनों के प्रचार ने उन्हें महिलाओं, अश्वेतों और अन्य अल्पसंख्यक समूहों में बेहद लोकप्रिय बनाया, लेकिन उनकी बातों और जमीनी हकीकत में बहुत अंतर था.

    पब्लिक चार साल के रिपब्लिकन शासन से तंग आ चुकी थी. मीडिया से इंटरव्यू में कई वोटर्स ने कहा भी कि उन्हें भविष्‍य के लिए उम्मीद नहीं दिखती. कमला बार-बार ट्रंप को अमेरिका के लिए खतरा बता रही थीं तो ट्रंप आम अमेरिकी की मुश्किलें दूर करने का वादा कर रहे थे.

    ट्रंप ने अपने प्रचार अभियान में ग्रामीण इलाकों और वर्किंग क्लास के वोटर्स को लुभाया जिनकी बदौलत वह 2016 में व्हाइट हाउस पहुंचे थे. ट्रंप की बातों ने उन पुरुषों को भी रिझाया, जो बदलते सांस्कृतिक मानदंडों और तकनीकी प्रगति के कारण पीछे छूट गए हैं. ट्रंप अपने पिछले कार्यकाल के शुरुआती दौर की यादों को ताजा करते. 2017 की टैक्स कटौती का जिक्र करते और इस बार उन्होंने टैक्स को और भी कम करने की कसम खाई.

    अमेरिकी जनता को ट्रंप में एक विकल्प दिखा. वह विकल्प जो उन्हें महंगाई, बेरोजगारी और सामूहिक निराशा के दौर से बाहर निकालेगा. ट्रंप 2024 में विजेता बनकर इसीलिए उभरे क्योंकि अमेरिकी जनता बातों की नहीं, एक्शन की भूखी है.

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