कुछ देश अमीर और बाकी गरीब क्यों होते हैं? इस पहेली से पहली बार उठा ‘पर्दा’.
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इस पूरी कहानी को समझने के लिए आपको अमेरिका-मेक्सिको बॉर्डर पर स्थित नोगेल्स शहर का किस्सा जानना होगा. सीमावर्ती क्षेत्र होने की वजह से ये भौगोलिक रूप से एक विभाजित शहर है.
किसी भी देश की संपन्नता का उसके यहां की संस्थाओं से क्या नाता है? सोवियत संघ का पतन क्यों हुआ? क्या अधिनायकवादी चीन का पतन भी सोवियत संघ की तरह होगा? अबकी बार का अर्थशास्त्र का नोबेल पुरस्कार इन सवालों की खोज के लिए ही तीन अमेरिकी विद्वानों मैसाचुसेट्स इंस्टीट्यूट ऑफ टेक्नोलॉजी (एमआईटी) के डेरॉन ऐसमोग्लू और साइमन जॉनसन तथा अमेरिका के शिकागो विश्वविद्यालय के जेम्स ए. रॉबिन्सन को दिया गया है. उन्होंने इस बात पर नई अंतर्दृष्टि प्रदान की कि देशों के बीच समृद्धि में इतना बड़ा अंतर क्यों है तथा इस पहेली को सुलझाने में मदद करने का प्रयास किया कि क्यों कुछ देश अमीर और अन्य गरीब हैं? इसको समझने के लिए आपको मेक्सिको के शहर नोगेल्स के बारे में जानना होगा
नोगेल्स (Nogales) का किस्सा
अमेरिका-मेक्सिको बॉर्डर पर स्थित है. ये शहर मेक्सिको के सोनोरा प्रांत का हिस्सा है. सीमावर्ती क्षेत्र होने की वजह से ये भौगोलिक रूप से एक विभाजित शहर है. यानी इसका एक हिस्सा अमेरिका के एरिजोना की तरफ पड़ता है और दूसरा मेक्सिको की तरफ पड़ता है. इसी यूनीक पोजीशन के कारण मेक्सिको के लोग इसको नोगेल्स एरिजोना भी कहते हैं. नोबेल पाने वाले अमेरिकी अर्थशास्त्रियों ने अपने अध्ययन में बताया कि अमेरिकी एरिजोना की तरफ पड़ने वाले नोगेल्स में अधिक समृद्धि है जबकि मेक्सिको की तरफ पड़ने वाले हिस्से में आर्थिक रूप से पिछड़ापन है.
वास्तविकता ये है कि नोगेल्स के दोनों ही हिस्सों की जलवायु, भूगोल और डेमोग्राफी एक ही है लेकिन उनकी संस्थाओं की संरचना में अंतर है. एक तरफ अमेरिका ने जहां समावेशी संस्थाएं बनाई हैं जो राजनीतिक अधिकारों का संरक्षण देती हैं और आर्थिक अवसरों को पैदा करती हैं. वहीं मेक्सिको का अतीत स्पेन के उपनिवेश से जुड़ा रहा है. जिसने अपने फायदे के लिए मेक्सिको का हर स्तर पर शोषण किया लिहाजा मेक्सिको, अमेरिका के बगल में होते हुए भी पिछड़ गया. संबंधित संस्थाओं का असर इस वजह से ही एक ही शहर के दोनों हिस्सों में अलग-अलग पड़ा.
कुल मिलाकर इन विद्वानों ने अपने अध्ययन में देश की समृद्धि के लिए सामाजिक संस्थाओं के महत्व को प्रदर्शित किया है. देश की सामाजिक-सांस्कृतिक संस्थाएं जितना जीवंत और लोकतांत्रिक होंगी उस देश के उतने ही अधिक समृद्ध होने के चांस होंगे. अपने इसी अध्ययन के आधार पर इन विद्वानों का मत है कि अधिनायकवादी शासन के चलते सोवियत संघ की तरह चीन का भी पतन होगा.
इनकी इसी बात को रेखांकित करते हुए नोबेल अकादमी ने कहा, “जिन समाजों में कानून का शासन खराब है और संस्थाएं जनसंख्या का शोषण करती हैं, वहां विकास नहीं होता और न ही बेहतर बदलाव होता है. पुरस्कार विजेताओं के शोध से हमें यह समझने में मदद मिलती है कि ऐसा क्यों होता है.” पुरस्कार समिति के अध्यक्ष जैकब स्वेन्सन ने कहा, “देशों के बीच आय में भारी अंतर को कम करना हमारे समय की सबसे बड़ी चुनौतियों में से एक है. इस लक्ष्य को प्राप्त करने के लिए विजेताओं ने सामाजिक संस्थाओं के महत्व को बताया है.”
उपनिवेशीकरण और सामाजिक संस्थाएं
नोबेल पुरस्कार विजेताओं ने दिखाया है कि देशों की समृद्धि में अंतर का एक कारण उपनिवेशीकरण (Colonization) के दौरान शुरू की गई सामाजिक संस्थाएं हैं. कुछ उपनिवेशों में इसका उद्देश्य स्वदेशी आबादी का शोषण करना और उपनिवेशवादियों को लाभ पहुंचाने के लिए प्राकृतिक संसाधनों का दोहन करना था. अन्य मामलों में उपनिवेशवादियों ने यूरोपीय निवासियों के दीर्घकालिक लाभ के लिए समावेशी राजनीतिक और आर्थिक व्यवस्था का निर्माण किया.
अकादमी के मुताबिक, “यह एक महत्वपूर्ण कारण है कि पूर्व उपनिवेश जो कभी समृद्ध थे, अब गरीब हो गए हैं और जो गरीब थे, वो अमीर हो गए हैं.”
शोधकर्ताओं ने यह भी कहा कि जब तक राजनीतिक व्यवस्था यह गारंटी देती रहेगी कि अभिजात वर्ग नियंत्रण में रहेगा, तब तक कोई भी भविष्य के आर्थिक सुधारों के उनके वादों पर भरोसा नहीं करेगा. पुरस्कार विजेताओं के अनुसार यही कारण है कि कोई सुधार नहीं होता है.
हालांकि, सकारात्मक परिवर्तन के विश्वसनीय वादे करने में असमर्थता यह भी बता सकती है कि कभी-कभी लोकतंत्रीकरण क्यों होता है. अकादमी ने स्पष्ट किया, “जब क्रांति का खतरा होता है तो सत्ता में बैठे लोगों को दुविधा का सामना करना पड़ता है. वे सत्ता में बने रहना पसंद करेंगे और आर्थिक सुधारों का वादा करके जनता को खुश करने की कोशिश करेंगे, लेकिन लोगों को यह विश्वास नहीं होगा कि स्थिति सामान्य होते ही वे पुरानी व्यवस्था में वापस नहीं लौटेंगे.”
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