साल भर से भी कम चल पाएंगी 10 राज्यों की सरकारें, 2029 में एक साथ चुनाव हुए तो और क्या-क्या होगा?
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‘एक देश, एक चुनाव’ के तहत अगर 2029 में लोकसभा और विधानसभाओं के चुनाव एक साथ हुए तो 10 राज्य ऐसे होंगे जहां की सरकारों को सत्ता में रहने के लिए साल भर से कम का वक्त मिलेगा.
केंद्रीय कैबिनेट ने ‘एक देश, एक चुनाव’ के प्रस्ताव को मंजूरी दे दी है. पूर्व राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद की अध्यक्षता वाली कमेटी की सिफारिशें मान ली गईं. मंगलवार को, केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने कहा कि ‘वन नेशन, वन इलेक्शन इसी सरकार के कार्यकाल में लागू होगा.’ अगर 2029 से एक साथ चुनाव होने हैं तो उसके लिए प्रक्रिया अभी से शुरू करनी होगी.
कोविंद कमेटी ने मार्च में अपनी रिपोर्ट राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू को सौंपी दी. पैनल ने कई संवैधानिक संशोधन किए जाने की सिफारिश की है. कोविंद कमेटी के अनुसार, पहले लोकसभा और विधानसभा के चुनाव एक साथ कराए जाने चाहिए, उसके बाद 100 दिनों के भीतर स्थानीय निकायों के चुनाव करा लिए जाएं.
फौरन शुरू करनी होगी कवायद
लोकसभा और विधानसभा चुनाव एक साथ कराने के लिए, पहले कदम के रूप में, एक बार इसे संसद की मंजूरी मिल गई तो संशोधनों के लिए राज्यों द्वारा अनुसमर्थन की जरूरत नहीं पड़ेगी. दूसरा कदम यह होगा कि नगर पालिकाओं और पंचायतों के चुनाव, लोकसभा और विधानसभाओं के चुनावों के साथ इस तरह से कराए जाएं कि स्थानीय निकाय चुनाव लोकसभा और विधानसभाओं के चुनावों के 100 दिनों के भीतर हो जाएं. इसके लिए कम से कम आधे राज्यों की सहमति की जरूरत होगी.
2024 आम चुनाव में 240 सीटें जीतने वाली भाजपा को संसद में बहुमत के लिए सहयोगियों का मुंह ताकना पड़ता है. एक साथ चुनाव को लेकर पर्याप्त समर्थन मिलेगा या नहीं, इसे लेकर सवाल उठे हैं. हालांकि, बीजेपी का खेमा आश्वस्त है कि उसके सहयोगी साथ हैं और इस ‘सुधार’ के रास्ते में ‘अंकगणित’ टांग नहीं अड़ाएगा.
2029 से एक साथ होंगे चुनाव!
संसद द्वारा लोकसभा और विधानसभाओं की अवधि पर संवैधानिक प्रावधानों में संशोधन किए जाने के बाद, एक साथ चुनाव कराने के लिए कई राज्य विधानसभाओं को उनके पांच साल के कार्यकाल से काफी पहले, 2029 में भंग करना होगा. हालांकि, कोविंद पैनल ने यह केंद्र पर छोड़ा है कि वह कब एक साथ चुनाव कराए. पैनल ने अपनी रिपोर्ट में बस एक रोडमैप सुझाया है. मंगलवार को, मोदी कैबिनेट ने पैनल की सिफारिशों को मंजूर कर लिया है, यानी यह एक बार का बदलाव तो होकर रहेगा.
यह सुनिश्चित करने के लिए कि एक साथ चुनाव कराना संविधान के खिलाफ न हो, कोविंद समिति ने अनुच्छेद 83 में संशोधन की सिफारिश की है. यह अनुच्छेद लोकसभा की अवधि से संबंधित है. साथ ही अनुच्छेद 172 में बदलाव करना होगा, जो राज्य विधानसभा की अवधि से संबंधित है. राष्ट्रपति की अधिसूचना के बाद यह संभव है. यदि संशोधनों को संसद से मंजूरी नहीं मिलती है, तो अधिसूचना बेकार हो जाएगी. यदि संशोधनों को संसद द्वारा अपनाया जाता है, तो एक साथ चुनाव की उल्टी गिनती शुरू हो जाएगी. इस ट्रांजिशन के दौरान अधिकांश राज्य सरकारों का कार्यकाल छोटा हो जाएगा.
कई राज्यों में चुनी हुई सरकारों को कम वक्त मिलेगा
2029 में एक साथ चुनाव हुए तो कम से कम 10 राज्य ऐसे होंगे, जहां नई सरकार बमुश्किल साल भर ही सत्ता में रह पाएगी. ये राज्य हैं- मेघालय, मिजोरम, नागालैंड, त्रिपुरा, हिमाचल प्रदेश, कर्नाटक, तेलंगाना, मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़ और राजस्थान. उत्तर प्रदेश, पंजाब और गुजरात में अगले चुनाव 2027 में होने हैं, यानी वहां पूर्ण बहुमत की सरकारें बनीं तो उन्हें दो साल या उससे भी कम वक्त मिलेगा.
असम, केरल और पश्चिम बंगाल में 2026 में विधानसभा चुनाव प्रस्तावित हैं, ऐसे में वहां की अगली सरकार तीन साल ही काम कर पाएगी. यानी कुल मिलाकर 17 राज्य ऐसे होंगे, जहां 2029 में एक साथ चुनाव होने की स्थिति में सरकारों का कार्यकाल तीन साल या उससे कम रहेगा. अरुणाचल प्रदेश, सिक्किम, आंध्र प्रदेश, महाराष्ट्र और ओडिशा में इस साल चुनाव होने हैं, इन राज्यों में पांच साल तक एक ही सरकार रह सकती है.
2029 के बाद सरकार गिरी तो होंगे ‘मध्यावधि चुनाव’
2029 में ‘एक राष्ट्र, एक चुनाव’ लागू होने के बाद, अगर लोकसभा या राज्य विधानसभा ‘नियत तिथि’ के बाद सदन में बहुमत खोने के कारण पांच साल के कार्यकाल से पहले भंग हो जाती है, तो समिति ने नए चुनाव कराने का प्रस्ताव दिया है. ये ‘मध्यावधि चुनाव’ होंगे और नई सरकार केवल बाकी समय तक ही चलेगी, जिसे ‘अनएक्सपायर्ड टर्म’ कहा गया है.
एक साथ चुनाव की व्यवस्था लागू होने के बाद, अविश्वास प्रस्तावों जैसे दांव कम देखने को मिल सकते हैं. ऐसा इसलिए क्योंकि विपक्षी दलों को सरकार गिराने और नए चुनाव कराने में कोई खास फायदा नहीं दिखेगा, क्योंकि अगली सरकार का कार्यकाल पूरे पांच साल का नहीं होगा.
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