इसरो को बधाई, एसएसएलवी-डी3 मिशन सफल, अब हल्के वजन का सैटेलाइट…
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आज के सफल प्रक्षेपण के साथ, 500 किलोग्राम तक के उपग्रहों को ले जाने में सक्षम एसएसएलवी अब नियमित उपयोग के लिए तैयार है।
इसरो के बेड़े में एक और रॉकेट, लॉन्चर शामिल हो गया है। इसरो के सबसे छोटे उपग्रह ले जाने वाले प्रक्षेपण यान एसएसएलवी-डी3 की तीसरी और अंतिम परीक्षण उड़ान आज शुक्रवार सुबह सफल रही। लॉन्च पैड ने सुबह 9:17 बजे आंध्र प्रदेश में इसरो के श्रीहरिकोटा अंतरिक्ष बेस से उड़ान भरी। योजना के अनुसार 16 मिनट में दो उपग्रहों को सफलतापूर्वक प्रक्षेपित किया गया। इससे हल्के वजन वाले उपग्रहों को ले जाने के लिए एसएसएलवी (लघु उपग्रह प्रक्षेपण यान) के नियमित उपयोग का मार्ग प्रशस्त हो गया है।
आज की उड़ान में एसएसएलवी-डी3 ने दो उपग्रहों अर्थात् ईओएस-08, 175.5 किलोग्राम वजनी उपग्रह और एसआर-0 डेमोसैट, 200 ग्राम वजनी उपग्रह को सफलतापूर्वक लॉन्च किया। विभिन्न तरंग दैर्ध्य के माध्यम से पृथ्वी की तस्वीरें लेने के लिए EOS-08 को 475 किमी की ऊंचाई पर लॉन्च किया गया था। इस सैटेलाइट के जरिए समुद्र, जमीन, हिमालय पर होने वाली विभिन्न प्राकृतिक आपदाओं और घटनाओं का अध्ययन किया जाएगा। इस पर तीन अलग-अलग वैज्ञानिक उपकरण हैं और भविष्य के आधुनिक उपग्रहों की नींव इसी से रखी जाएगी। इसका कार्यकाल एक वर्ष के लिए निर्धारित किया गया है।
एसएसएलवी कैसे संरचित है?
यह प्रक्षेप्य 34 मीटर लंबा, 2 मीटर व्यास वाला और 119 टन वजनी है। इसके जरिए 500 किलोग्राम वजन वाले उपग्रहों को 500 किलोमीटर की ऊंचाई तक भेजा जा सकता है। सबसे खास बात यह है कि इस लॉन्चर को सिर्फ 7 स्टाफ-तकनीशियन-इंजीनियर ही उड़ान के लिए तैयार कर सकते हैं, वह भी सिर्फ सात दिनों में।
एसएसएलवी का महत्व क्या है?
इसरो के पास तीन अलग-अलग रॉकेट-सैटेलाइट लॉन्चर PSLV, GSLV, GSLV MK3 हैं। इस माध्यम से दो टन से छह टन (दो हजार किलोग्राम से छह हजार किलोग्राम) वजन वाले उपग्रह प्रक्षेपित किये जाते हैं। दुनिया भर में छोटे उपग्रहों का उपयोग दिन-ब-दिन बढ़ता जा रहा है और इसकी मांग भी बढ़ती जा रही है। फिर एसएसएलवी के जरिए 500 किलोग्राम तक वजन वाले उपग्रह भेजे जा सकेंगे। तब हल्के वजन वाले उपग्रहों के प्रक्षेपण के लिए इसरो की जनशक्ति और धन में भारी बचत होगी। साथ ही जरूरत पड़ने पर इसरो हर हफ्ते इस एसएसएलवी लॉन्चर के जरिए सैटेलाइट लॉन्च कर सकेगा।
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