अगर ब्रिटेन ने नहीं दी शरण तो शेख हसीना का ये होगा नया पता!
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शेख हसीना की स्थिति को लेकर अभी तक कुछ भी अस्पष्टता नहीं है. वो फिलहाल भारत में हैं. कहा जा रहा है कि उन्होंने ब्रिटेन में शरण मांगी है. लेकिन क्या उनका वहां जाना इतना आसान है?
शेख हसीना के इस्तीफे के साथ ही उनकी पार्टी अवामी लीग का भी बांग्लादेश में सफाया हो गया है. लोगों का गुस्सा इतना ज्यादा है कि वे अवामी लीग के नेताओं के घरों पर भी हमले और आगजनी कर रहे हैं. ज्यादातर अवामी लीग के नेता अंडरग्राउंड हो गए हैं. अवामी लीग और शेख हसीना की पूरी कहानी फिलहाल उनके किसी सुरक्षित जगह पहुंचने पर टिकी है. शेख हसीना किसी सुरक्षित मुल्क पहुंचने के बाद ही अपनी और पार्टी के सियासी भविष्य के रूप में बोलने के लिए स्वतंत्र होंगी. लेकिन मौजूदा हालात को देखते हुए शेख हसीना के लिए खुद के लिए किसी सुरक्षित जगह को तलाशना इतना आसान भी नहीं है.
अंतर्राष्ट्रीय मामलों के जानकार रबिंदर सचदेव ने इस समय को शेख हसीना के लिए मुश्किल भरा बताया. भारत में शरण लेने की संभावना को भारत खुद टाल सकता है. उनके ब्रिटेन जाने की बात हो रही है. इसमें दो तीन फैक्टर काम करते हैं. पता नहीं ब्रिटिश सरकार उनको कौन सा वीजा दे. अमेरिका और ब्रिटेन सरकारें काफी समय से शेख हसीना से इस बात से नाराज थे कि वह अपने देश में लोकतंत्र को दबा रही थीं. उनकी बहन शेख रेहाना ब्रिटिश नागरिक हैं. उनकी एक बेटी लेबर पार्टी की सांसद है. लिहाजा उनको ब्रिटेन का वीजा मिल सकता है. अब इस पर अंतिम रूप से क्या फैसला होता है ये देखने वाली बात होगी.
लंदन में शेख हसीना को एक और भी समस्या है. लंदन में बांग्लादेशी मूल के लोग काफी संख्या में रहते हैं. इन लोगों में बड़ी संख्या ऐसे लोगों की है जो शेख हसीना के खिलाफ हैं. बांग्लादेश के नेताओं की दुबई और लंदन में काफी प्रॉपर्टी हैं. लिहाजा ये भी कहा जा रहा है कि शेख हसीना दुबई जाने का विकल्प सोच सकती हैं जहां कानून व्यवस्था सख्त और अच्छी है.
अमेरिका ने गहरी चिंता जताई
इस बीच अमेरिका ने बांग्लादेश में धार्मिक और राजनीतिक समूहों के सदस्यों पर जारी हमले सहित सभी प्रकार की हिंसा पर गहरी चिंता जताई है. विदेश विभाग के एक प्रवक्ता ने कहा, “हम बांग्लादेश में हिंसा को लेकर लगातार आ रही खबरों से बेहद चिंतित हैं, जिसमें धार्मिक और राजनीतिक समूहों के सदस्यों को निशाना बनाकर किए गए हमले भी शामिल हैं. हम पुलिस और कानून प्रवर्तन एजेंसियों के खिलाफ हिंसा की खबरों को लेकर भी समान रूप से चिंतित हैं.”
व्हाइट हाउस की प्रेस सचिव कैरीन जीन-पियरे ने अपनी दैनिक प्रेस वार्ता में पत्रकारों से कहा, “हम बांग्लादेश के हालात पर बहुत करीब से नजर रख रहे हैं. हम लंबे समय से बांग्लादेश में लोगों के लोकतांत्रिक अधिकारों का सम्मान करने का आह्वान करते आए हैं. हम देश में लोकतांत्रिक एवं समावेशी रूप से अंतरिम सरकार के गठन का आग्रह करते हैं.”
जीन-पियरे ने कहा, “बांग्लादेशी सेना ने जो संयम दिखाया है, हम उसकी सराहना करते हैं. हम सभी पक्षों से हिंसा से बचने और जल्द से जल्द शांति बहाल करने का आह्वान करते हैं.” उन्होंने कहा, “नई सरकार के लिए सभी हमलों की सावधानीपूर्वक और विश्वसनीय तरीके से जांच कराना तथा पीड़ितों को इंसाफ दिलाना व जवाबदेही तय करना बेहद अहम होगा.”
मोहम्मद यूनुस अंतरिम सरकार के प्रमुख नियुक्त
गौरतलब है कि बांग्लादेश के राष्ट्रपति मोहम्मद शहाबुद्दीन ने नोबेल पुरस्कार विजेता मोहम्मद यूनुस को बांग्लादेश की अंतरिम सरकार का प्रमुख नियुक्त किया है. प्रेस सचिव मोहम्मद जैनुल आब्दीन ने बताया कि यह निर्णय राष्ट्रपति शहाबुद्दीन और ‘भेदभाव विरोधी छात्र आंदोलन’ के 13 सदस्यीय प्रतिनिधिमंडल के बीच हुई बैठक में किया गया। इस बैठक में तीनों सशस्त्र बलों के प्रमुख भी मौजूद थे.
चार घंटे चली बैठक के बाद प्रेस सचिव ने कहा, ‘‘राष्ट्रपति ने डॉ. यूनुस को अंतरिम सरकार का मुख्य सलाहकार नियुक्त किया.’’ उन्होंने कहा कि अंतरिम सरकार के अन्य सदस्यों के नाम विभिन्न राजनीतिक दलों के साथ विचार-विमर्श के बाद तय किए जाएंगे. सरकारी समाचार एजेंसी ‘बीएसएस’ के अनुसार, राष्ट्रपति 1971 के मुक्ति संग्राम के कम से कम एक सेनानी को कैबिनेट के सलाहकार के रूप में शामिल करने के पक्ष में हैं.
बैठक के दौरान सेना प्रमुख जनरल वकर-उज-जमान, नौसेना प्रमुख एडमिरल एम. नजमुल हसन, एयर चीफ मार्शल हसन महमूद खान, ढाका विश्वविद्यालय के विधि विभाग के प्रोफेसर आसिफ नजरूल और अंतरराष्ट्रीय संबंध विभाग के प्रोफेसर तंजीम उद्दीन खान मौजूद थे.
यूनूस नोबेल पुरस्कार विजेता हैं, जिन्हें ‘‘सबसे गरीब लोगों का बैंकर’’ भी कहा जाता है. यूनुस (83) हसीना के कटु आलोचक और विरोधी माने जाते हैं. उन्होंने हसीना के इस्तीफे को देश का ‘‘दूसरा मुक्ति दिवस’’ बताया है.
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