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    May 1, 2025

    ग्लेशियरों के लगातार पिघलने से उत्तराखंड में मंडराया बड़ा खतरा, इन 5 झीलों से आ सकती है बड़ी आपदा।

    1 min read
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    वैज्ञानिकों का कहना है कि उत्तराखंड में ऐसी पांच झीलें हैं जो खतरनाक हो सकती हैं और अगर ये झीलें फट जाती हैं तो उसके रास्ते में आने वाले गांवों भारी नुकसान हो सकता है और कई लोगों की जान भी जा सकती है.

    ग्लोबल वॉर्मिंग की वजह से पृथ्वी गर्म हो रही है और इसका असर हिमालय के ग्लेशियरों पर भी पड़ रहा है. ये ग्लेशियर तेजी से पिघल रहे हैं, जिससे पानी की कमी हो सकती है. लेकिन, पिघलते ग्लेशियरों से एक और खतरा भी पैदा हो रहा है. ग्लेशियरों के पिघलने से बन रही झीलों की वजह से उत्तराखंड में बड़ा खतरा मंडरा रहा है और इस वजह बड़ी आपदा आ सकती है. वैज्ञानिकों का कहना है कि उत्तराखंड में ऐसी पांच झीलें हैं जो खतरनाक हो सकती हैं और अगर ये झीलें फट जाती हैं तो उसके रास्ते में आने वाले गांवों भारी नुकसान हो सकता है. इसके साथ ही कई लोगों की जान भी जा सकती है.

    वैज्ञानिक शुरू करेंगे एक विशेष अभियान
    उत्तराखंड में हिमस्खलन और बाढ़ की घटनाओं को रोकने के लिए एक महत्वपूर्ण कदम उठाया जा रहा है. विशेषज्ञ जुलाई में उत्तराखंड में पांच खतरनाक ग्लेशियल झीलों को तोड़ने के लिए एक अभियान शुरू करेंगे. इस पहल का नेतृत्व उत्तराखंड राज्य आपदा प्रबंधन प्राधिकरण (USDMA) विभिन्न केंद्रीय और राज्य सरकार निकायों के सहयोग से कर रहा है. आपदा प्रबंधन सचिव डॉ. रंजीत सिन्हा के अनुसार, वैज्ञानिक अध्ययनों ने उत्तराखंड में 13 ग्लेशियल झीलों की पहचान की है, जो आने वाले समय में तबाही मचा सकती हैं. इनमें से चमोली और पिथौरागढ़ जिलों में स्थित पांच झीलें सबसे ज्यादा खतरनाक हैं, जिनकी स्थिति बहुत नाजुक है. इन झीलों की लगातार मॉनिटरिंग की जा रही है.

    ग्लेशियर पिघलने से लगाता बढ़ रहा झीलों का जलस्तर
    फ्री प्रेस जर्नल की रिपोर्ट के अनुसार, डॉ सिन्हा ने बताया कि ग्लेशियरों के लगातार पिघलने से इन झीलों का जलस्तर बढ़ रहा है, जिससे भयानक ग्लेशियल लेक आउटबर्स्ट फ्लड (GLOF) यानी भयंकर बाढ़ का खतरा बढ़ गया है. उन्होंने आगे कहा, ‘इन झीलों को कंट्रोल करने के लिए वैज्ञानिक तरीके से उनमें से कुछ पानी निकाला जाएगा. जुलाई में विशेषज्ञों की एक टीम आकर इस प्रक्रिया को पूरा करेगी. पूरी प्रक्रिया की निगरानी स्थानीय स्तर पर और उपग्रह के माध्यम से भी की जाएगी ताकि सटीकता और सुरक्षा सुनिश्चित की जा सके.’

    यह अभियान पुणे स्थित सेंटर फॉर डेवलपमेंट ऑफ एडवांस कंप्यूटिंग (C-DAC) की एक टीम के नेतृत्व में किया जाएगा. इस टीम में वाडिया हिमालय भूविज्ञान संस्थान, लखनऊ में स्थित भारतीय भूवैज्ञानिक सर्वेक्षण (GSI), रुड़की में स्थित राष्ट्रीय जल विज्ञान संस्थान (NIH) और देहरादून में स्थित भारतीय सुदूर संवेदन संस्थान (IIRS) जैसे संस्थानों के विशेषज्ञ भी शामिल होंगे.

    इन 5 झीलों से सबसे बड़ा खतरा
    जीएलओएफ (GLOF) स्टडी में पांच झीलों को सबसे खतरनाक के रूप में पहचाना गया है. इसमें चमोली के धौलीगंगा बेसिन में वसुधारा झील, जो 4702 मीटर की ऊंचाई पर 0.50 हेक्टेयर क्षेत्र में फैली है. पिथौरागढ़ के दारमा बेसिन में एक झील, जो 4794 मीटर की ऊंचाई पर 0.09 हेक्टेयर में फैली है. पिथौरागढ़ के लसार यांगती घाटी में मबन झील, जो 0.11 हेक्टेयर में फैली है और 4351 मीटर की ऊंचाई पर स्थित है. पिथौरागढ़ के कुथी यांगती घाटी में एक झील, जिसका आकार 0.04 हेक्टेयर है और जो 4868 मीटर की ऊंचाई पर स्थित है. पिथौरागढ़ के दारमा बेसिन में पुंगरू झील, जो 0.02 हेक्टेयर में फैली है और 4758 मीटर की ऊंचाई पर स्थित है.

    कैसे निकाला जाएगा इन झीलों से पानी?
    इन झीलों में छेद करने का काम विशेष उपकरणों का उपयोग करके किया जाएगा, जिन्हें ऑपरेशन की निगरानी और नियंत्रण के लिए डिजाइन किया गया है. इन उपकरणों को साइट पर स्थापित किया जाएगा और वास्तविक समय के डेटा ट्रांसमिशन और निगरानी के लिए उपग्रहों से जोड़ा जाएगा. धीरे-धीरे पानी छोड़ने के लिए डिस्चार्ज क्लिप पाइप झीलों में डाले जाएंगे, जिससे नियंत्रित तरीके से झीलों में छेद हो जाएगा. डॉ. रंजीत सिन्हा ने बताया, ‘तकनीकी टीम झील की दीवारों की मजबूती और गहराई का भी आकलन करेगी ताकि यह सुनिश्चित किया जा सके कि छेद करने की प्रक्रिया अनजाने में और अस्थिरता पैदा न करे. यह सावधानीपूर्वक दृष्टिकोण अचानक होने वाले विस्फोट को रोकने के लिए महत्वपूर्ण है, जिससे विनाशकारी बाढ़ आ सकती है.’

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