लोकसभा चुनाव के नतीजे जारी होने के बाद कुछ राज्यों में नई सरकारों का गठन हुआ। जब देश में मोदी सरकार दोबारा सत्ता में आई, तो उन्हीं के घटक दलों को भी जिन राज्यों में विजय मिली, वहां भी कुछ ऐसा ही नजारा देखने को मिला।
प्रधानमंत्री पद पर फिर से विराजमान होने के बाद नरेंद्र मोदी और एनडीए में शामिल घटक दलों की ताकत बढ़ गई। इन्हीं में से एक दल है चंद्रबाबू नायडू की तेलुगू देशम पार्टी (टीडीपी)। आंध्र प्रदेश के मुख्यमंत्री पद पर आसीन होने के बाद नायडू ने राजधानी शहर के विकास पर अपना पूरा ध्यान केंद्रित किया है।
राजनीतिक विश्लेषकों और जानकारों के अनुसार, आंध्र प्रदेश में टीडीपी को भारी सफलता मिली। वर्तमान में केंद्र में सत्तारूढ़ एनडीए में भी टीडीपी का महत्वपूर्ण स्थान होने के कारण इस दल और इसके नेताओं की बात का वजन बढ़ गया है। नायडू का प्रभाव और समग्र राजनीतिक घटनाक्रम को देखते हुए, आने वाले समय में हैदराबाद के रियल एस्टेट क्षेत्र में मंदी आ सकती है और यहां प्रॉपर्टी के दाम घट सकते हैं।
बदलते राजनीतिक समीकरणों के चलते हैदराबाद से व्यवसाय कम होने के कारण रियल एस्टेट के दाम 15 प्रतिशत तक गिर सकते हैं। इसका सबसे अधिक असर व्यावसायिक रियल एस्टेट पर पड़ने की संभावना है। रियल एस्टेट कंसल्टेंट फर्म एनारॉक की रिपोर्ट का हवाला देते हुए मनीकंट्रोल द्वारा प्रकाशित खबर के अनुसार, आने वाले समय में तेलुगू भाषी इन दोनों राज्यों में नए निवेशकों की संख्या बढ़ सकती है।
चंद्रबाबू नायडू के 11 जून को दिए गए बयान के बाद दक्षिणी राजनीति में एक नया मोड़ आया। उनके बयान के अनुसार, अमरावती ही आंध्र प्रदेश की एकमात्र राजधानी होगी। कुल मिलाकर, नायडू की सभी गतिविधियां फिलहाल अमरावती की ओर केंद्रित नजर आ रही हैं। जानकारों के अनुसार, जब तेलंगाना और आंध्र प्रदेश अलग हुए थे, तब हैदराबाद में निवेशकों और कई बड़े व्यवसायों ने कदम बढ़ाए और तब से हैदराबाद देश का नया व्यावसायिक केंद्र बन गया था।
अमरावती के संदर्भ में नायडू की समग्र नीति को देखते हुए, फिलहाल यह शहर ही केंद्र में है और इसका समग्र विकास सही मायनों में शुरू होने के स्पष्ट संकेत मिल रहे हैं।
आंध्र प्रदेश का विभाजन:
2014 में जब आंध्र प्रदेश का विभाजन हुआ था, तभी नायडू ने अमरावती के लिए कुछ योजनाएं बनाई थीं। 2014 से 2019 के बीच विभाजित आंध्र प्रदेश के पहले मुख्यमंत्री के रूप में, उन्होंने अपने कार्यकाल के दौरान अमरावती को ही राजधानी बनाने का विचार किया था। लेकिन, 2019 में सत्ता में न आ पाने के कारण, वाई एस जगनमोहन रेड्डी के नेतृत्व वाली वाईएसआर सरकार ने नायडू के इस विचार को दरकिनार कर दिया था।
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