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    April 22, 2025

    कैबिनेट मंत्री, राज्यमंत्री में कौन है ताकतवर, क्या है इनका काम, जानें किसके पास हनक, रुतबा और मोटी तनख्वाह।

    1 min read
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    प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने 9 जून को तीसरी बार प्रधानमंत्री पद की शपथ ली. प्रधानमंत्री के साथ मंत्रिपरिषद के 71 अन्य मंत्रियों ने भी राष्ट्रपति भवन में आयोजित कार्यक्रम में शपथ ली. इसमें कुछ लोगों को कैबिनेट मंत्री तो कुछ को राज्यमंत्री बनाया गया है, आप लोगों ने कई बार कैबिनेट, राज्य और स्वतंत्र प्रभार वाले मंत्री शब्द सुने होंगे, आइए जानते हैं क्या है इनमें अंतर, किसके पास होती है अधिक ताकत.

    प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने तीसरी बार पीएम की शपथ ली. इसके साथ ही भारतीय जनता पार्टी (BJP) के नेतृत्व वाली तीसरी एनडीए सरकार (NDA Government) के शपथ ग्रहण के बाद सोमवार को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी (PM Narendra Modi) ने 71 मंत्रियों को मंत्रालय आवंटित कर दिए. मोदी सरकार में 30 कैबिनेट मंत्री, 5 राज्यमंत्री (स्वतंत्र प्रभार) और 36 राज्यमंत्री बनाए गए हैं. आइए जानते हैं इन तीनों में क्या है अंतर.

    मंत्रियों में अंतर समझने से पहले आपको जानना होगा कि मंत्री किस आधार पर चुना जाता है, और उसके क्या नियम कानून है.

    पहले जानते हैं केंद्रीय मंत्रिपरिषद क्या होती है?
    आजादी के बाद भारत ने प्रभावी शासन के लिए मंत्रिपरिषद के साथ संसदीय शासन प्रणाली को अपनाया. प्रधानमंत्री के पास अपने शासन के तहत मंत्रिपरिषद तय करने की शक्ति है. दरअसल, संविधान के अनुच्छेद 74 और 75 में केंद्रीय मंत्रिपरिषद का प्रावधान किया गया है. अनुच्छेद 74(1) कहता है कि राष्ट्रपति की सहायता और सलाह के लिए प्रधानमंत्री की अध्यक्षता में एक मंत्रिपरिषद होगा, जो अपने कार्यों के निष्पादन में राष्ट्रपति की सलाह के अनुसार कार्य करेगा.

    मंत्रियों की नियुक्ति कौन करता है?
    प्रधानमंत्री की नियुक्ति राष्ट्रपति द्वारा की जाती है और अन्य मंत्रियों की नियुक्ति राष्ट्रपति द्वारा प्रधानमंत्री की सलाह पर की जाती है. आमतौर पर मंत्री बनने के लिए किसी व्यक्ति को संसद के किसी सदन का सदस्य होना चाहिए. हालांकि, संविधान में संसद के बाहर से किसी व्यक्ति को मंत्री नियुक्त करने पर कोई रोक नहीं है. लेकिन ऐसा व्यक्ति छह महीने से अधिक समय तक मंत्री नहीं रह सकता, जब तक कि वह संसद के किसी सदन का सदस्य न बन जाए.

    मंत्रिपरिषद में कैबिनेट मंत्री, राज्य मंत्री (स्वतंत्र प्रभार), राज्य मंत्री और उप मंत्री शामिल होते हैं. हालांकि, हाल के समय में केंद्रीय मंत्रिपरिषद में उप मंत्री बनाए जाने के उदाहरण नहीं आए हैं

    सरकार में तीन तरह के मंत्रियों की होती है नियुक्ति
    मंत्रिमंडल में तीन प्रकार के मंत्री होते हैं- कैबिनेट मंत्री (Cabinet Minister), राज्यमंत्री -स्वतंत्र प्रभार (Minister of State Independent Charge)) और राज्यमंत्री (Minister of state). सवाल उठता है कि इन मंत्री पदों में क्या अंतर होता है और इनकी भूमिकाएं किस तरह की होती हैं?
    इन मंत्री पदों से जुड़ी अलग-अलग जिम्मदारियां और अधिकार तय हैं. बारी-बारी से सभी मंत्रियों के पद, ताकत, कार्य को समझते हैं.

    कैबिनेट मंत्री
    कैबिनेट मंत्री मंत्रिपरिषद का सदस्य होते हैं जो मंत्रालय का नेतृत्व करते हैं. मंत्रिपरिषद में कैबिनेट मंत्री सबसे वरिष्ठ होते हैं जिनके पास सबसे अधिक ज्ञान और अनुभव होता है. इनकी नियुक्ति प्रधानमंत्री की सिफारिश पर राष्ट्रपति द्वारा उनकी विशेषज्ञता और वरिष्ठता के आधार पर की जाती है. केंद्र सरकार में प्रधानमंत्री के बाद मंत्रियों में सबसे सबसे ताकतवर कैबिनेट मंत्री होते हैं जो कि सीधे प्रधानमंत्री को रिपोर्ट करते हैं. कैबिनेट मंत्रियों को एक से अधिक मंत्रालय भी सौंपे जा सकते हैं और उनकी समूची जिम्मेदारी उनके पास होती है. इन मंत्रियों का मंत्रिमंडल की बैठकों, जिनमें सरकार अहम फैसले लेती है इसमें मौजूद होना अनिवार्य होता है. आम तौर पर काफी अनुभवी सांसदों को कैबिनेट मंत्री पद दिए जाते हैं.

    कैबिनेट मंत्री के काम
    कैबिनेट मंत्री केन्द्र सरकार के अंतर्गत अहम मंत्रालय जैसे गृह, वित्त, रक्षा, स्वास्थ्य, शिक्षा, सड़क परिवहन और राजमार्ग और विदेश मंत्रालयों को संभालते हैं. इनका काम नई नीतियों का निर्णय और विकास करना, कार्यान्वयन का समन्वय और पर्यवेक्षण करना होता है.

    राज्यमंत्री (स्वतंत्र प्रभार) और उनके काम
    आसान भाषा में कहा जाए तो इन्हें जूनियर मंत्री कहा जाता है. राज्यमंत्री (स्वतंत्र प्रभार) सीधे पीएम को ही रिपोर्ट करते हैं. इन्हें जो मंत्रालय दिया जाता है, उसकी जिम्मेदारी इन्हीं के पास होती है. ये कैबिनेट की बैठक में शामिल नहीं होते हैं और ना ही कैबिनेट मंत्री के प्रति इनकी जवाबदेही होती है.

    राज्यमंत्री और उनके काम
    कैबिनेट मंत्री के सहयोग के लिए राज्यमंत्री बनाए जाते हैं. ये कैबिनेट मंत्री को रिपोर्ट करते हैं. आमतौर पर कैबिनेट मंत्री के नीचे एक या दो राज्यमंत्री होते हैं. राज्य मंत्रियों को मंत्रालय के भीतर विशिष्ट जिम्मेदारियां सौंपी जाती हैं और वे कार्यभार संभालने में कैबिनेट मंत्री की सहायता करते हैं. इसमें मंत्रालय के भीतर विशेष क्षेत्रों या परियोजनाओं की देखरेख करना शामिल हो सकता है. उनके पास निर्णय लेने की सीमित शक्ति होती है और वे आमतौर पर अपने मंत्रालय के भीतर विशिष्ट कार्यों या क्षेत्रों पर ध्यान केंद्रित करते हैं.

    किसको कितनी मिलती है सैलरी-
    वेतन की बात करें तो कैबिनेट मंत्री को हर महीने एक लाख रुपए मूल वेतन के रूप में मिलते हैं. इसके साथ ही सांसदों की तरह निर्वाचन क्षेत्र भत्ता 70000 रुपए मिलता है. कार्यालय के लिए भी हर महीने 60,000 रुपए मिलते हैं. राज्य मंत्रियों को भी ये सब मिलता है. बस सत्कार भत्ता के रूप में इनको 1,000 रुपए प्रतिदिन मिलते हैं. अगर कोई डिप्टी मंत्री बनाया जाता है तो उसको सत्कार भत्ता के रूप में 600 रुपए प्रतिदिन के हिसाब से दिया जाता है.

    क्या-क्या मिलती है सुविधाएं
    मंत्रियों को भी संसद सदस्यों की तरह ही यात्रा भत्ता/यात्रा सुविधाएं, ट्रेन यात्रा की सुविधाएं, स्टीमर पास, टेलीफोन की सुविधाएं और वाहन खरीदने के लिए अग्रिम राशि मिलती है.

    पूर्व मंत्रियों को मिलती है पेंशन
    मंत्रियों को भी किसी पूर्व सांसद की तरह ही मासिक पेंशन मिलती है. हर बार पांच साल पूरे होने पर 1500 रुपये की अतिरिक्त वृद्धि पेंशन में की जाती है. मृत्यु होने की स्थिति में इनके पति या पत्नी को ताउम्र आधी पेंशन दी जाती है. हालांकि, मृत्यु के बाद आश्रित को पेंशन की 50 प्रतिशत राशि ही मिलती है.

    ट्रेन में यात्रा की छूट
    मंत्रियों को सांसदों की ही तरह ट्रेन के एसी फर्स्ट क्लास में चाहे जितनी यात्राओं की छूट होती है. हालांकि, साथ में कोई सहायक या पत्नी हो तो सेकंड एसी में यात्रा की छूट मिलती है. पूर्व केंद्रीय मंत्रियों को पेंशन और फ्री रेल यात्रा के अलावा चिकित्सा की सुविधाएं भी निशुल्क मिलती हैं. कैबिनेट मंत्री की ही तरह ये सारी सुविधाएं राज्यमंत्री और राज्यमंत्री स्वतंत्र प्रभार को भी दी जाती हैं.

    जानें कौन तय करता है वेतन
    साल 2018 तक तो संसद के सदस्य खुद ही अपने वेतन में संसोधन के लिए कानून बनाते थे. इसको लेकर खूब विवाद होता था. इसको देखते हुए फाइनेंस एक्ट-2018 के जरिए कानून में बदलाव किया गया. अब इस एक्ट के अनुसार सांसदों के वेतन, दैनिक भत्ते और पेंशन में हर पांच साल में वृद्धि का प्रावधान किया गया है. इसके लिए इनकम टैक्स एक्ट-1961 में बताया गया लागत मुद्रास्फीति सूचकांक आधार बनाया जाता है.

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