आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस: ”आर्टिफिशियल” इंटेलिजेंस के दौर में मानवीय गुण |
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आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस मनुष्य में वैसे निर्वैयक्तिक गद्य कौशल की क्षमता भर सकता है, जो कॉरपोरेट कम्युनिकेशन या अकादमिक जर्नल्स में देखी जा सकती है। पिछली गर्मी में आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस की मदद से तैयार एक कलाकृति को कोलोराडो स्टेट फेयर में पहला पुरस्कार मिला। उसका चित्र मुझे किसी रंगमंच के पीछे के जीवंत दृश्य-सा लगा, जिसमें तीन गायकों की पीठ देखी जा सकती थी। उसके पीछे टेढ़ी-मेढ़ी अस्पष्ट रेखाएं थीं, जो भीड़ का चेहरा हो सकती थीं और नहीं भी। और पूरे चित्र में जो दृश्य सर्वाधिक प्रभावी था, वह लॉर्ड ऑफ द रिंग्स जैसा भव्य महल था, जहां वे कलाकार गा रहे थे। पहली नजर में वह कलाकृति आंखों को सुकून देती थी, लेकिन ज्यादा देर देखने पर लगती थी कि वह जीवंत बिल्कुल नहीं है। ‘इस चित्र पर बहुत ध्यान से नजर दौड़ाने पर मैंने पाया कि ऐसी कोई चीज है, जो मुझे इसकी गहराई में जाने से रोक रही है। ऐसा तब हुआ, जब मैंने इसे बहुत नजदीक से देखा। वैसे में, चित्र के प्रति मेरी भावना गहराने के बजाय कम होने लगी’, एल एम सैकेसस ने अपने अखबार के तकनीक और कला वाले कॉलम में लिखा।
यह कोई अनोखा अनुभव नहीं है। आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस की मदद से तैयार की गई कलाकृति या गद्य के बारे में हमारा अनुभव आम तौर पर ऐसा ही होता है। ऐसी चीजें अनाकर्षक और अस्पष्ट मालूम होती हैं। ज्यादा स्पष्ट तरीके से कहें, तो यह कि इस तरह की कृतियों में मनुष्यता के स्पर्श का न होना सबसे अधिक खटकता है। इनमें किसी व्यक्ति के जुनून, दुख, चाह और व्यक्तिगत अनुभव का अभाव होता है। यह किसी व्यक्ति की कल्पना, मौलिक विचार, चिंता या आनंद की प्रतिच्छवि नहीं होता, जो विराट मानवीय सृजनात्मकता के बारे में बताती है।
इससे पता चलता है कि आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस के आने वाले दौर की वास्तविकता क्या होगी। कृत्रिम बुद्धिमता हमें शानदार औजार तो देगी, जिनके जरिये हम अपने तमाम मौजूदा मानसिक क्रियाकलाप संपन्न कर सकेंगे। लेकिन इसके साथ-साथ यह मनुष्यों को इसके लिए भी प्रेरित करेगी कि हम अपनी प्रतिभा और हुनर को और तराशें, ये वे विशेषताएं हैं, जो सिर्फ हम मनुष्यों में ही पाई जाती हैं। आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस हमें बताती है कि उसके पास क्या नहीं है, और इस तरह यह सच उद्घाटित करती है कि हम मनुष्य में कितनी प्रतिभा है और हम क्या कर सकते हैं।
उदाहरण के लिए, अगर आप कॉलेज में पढ़ते हैं | और आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस के क्षेत्र में जाना चाहते हैं, तो आपको खुद से यह पूछना पड़ेगा : कौन-सी पढ़ाई मुझे पूर्ण मनुष्य बनाएगी और वह हुनर प्रदान करेगी, जो मशीन के जरिये संभव नहीं है, आप वैसी कक्षाओं में जाने से बचना चाहेंगे, जो आपको निर्वैयक्तिक और सामान्यीकृत तरीके से चीजों को समझाए-ऐसे नजरिये के साथ आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस के क्षेत्र में जाने का नुकसान ही होगा। इसके बजाय आप विज्ञान या मानविकी में पढ़ाई करना चाहेंगे, जो आपमें मानवीय कौशल विकसित करे।
आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस मनुष्य में वैसे निर्वैयक्तिक गद्य कौशल की क्षमता भर सकता है, जो कॉरपोरेट कम्युनिकेशन या अकादमिक जर्नल्स में देखी जा सकती है। अगर आप जॉर्ज ऑरवेल, जोआन डिडियन, टॉम वुल्फ या जेम्स बाल्डविन जैसी विशिष्ट लेखनी के धनी बनना चाहते हैं, तो आपको उन कक्षाओं में जाना होगा, जो खास और दूसरों से अलग बनने की क्षमता पैदा करे।
जॉर्ज मैसोन यूनिवर्सिटी के अर्थशास्त्री टाइलर कॉवेन लिखते हैं, ‘सूचना प्रौद्योगिकी से पहले की पीढ़ी ने अंतर्मुखी लोग ज्यादा पैदा किए। जबकि आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस के दौर में बहिर्मुखी प्रकृति के लोगों की बहुतायत होगी। ऐसे में, वही लोग खास काम कर सकेंगे, जो यह जताने में सफल होंगे कि वे आम लोगों से अलग हैं।’ अच्छा भाषण लिखना और देना, श्रोताओं से जुड़ पाना तथा रचनात्मकता के साथ मनोरंजन की क्षमता का होना वे मानवीय कौशल हैं, जो आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस में संभव नहीं है।
मशीनी सोच के जरिये एक बड़ी आबादी के व्यवहार के पैटर्न को तो समझा जा सकता है, लेकिन किसी खास व्यक्ति के सोच-विचार के बारे में जानना मशीन के ज्ञान से संभव नहीं है। अगर कोई आम विचारों के बजाय खास व्यक्तिगत धारणाओं के बारे में जानना-समझना चाहता है, तो उसके लिए मानविकी की कक्षाओं से उपयुक्त और कुछ नहीं है। साहित्य, नाटक, जीवनी और इतिहास पढ़ने से हम यह जान सकते हैं कि दूसरे लोगों के मस्तिष्क में क्या चल रहा है। मशीन द्वारा एक बड़ी आबादी से जुड़े आंकड़ों की जानकारी देने की तुलना में अगर हम दूसरे व्यक्ति के नजरिये के बारे में जानें, तो हमारा हुनर ज्यादा कीमती होगा।
अच्छे शिक्षक वस्तुत: खुद को पढ़ाते हैं। जब मैं अपने श्रेष्ठ शिक्षकों के बारे में सोचता हूं, तो यह याद नहीं रखता कि पाठ्यक्रम में क्या था, बल्कि यह याद करता हूं कि वे शिक्षक कौन थे। पाठ चाहे विज्ञान का रहा हो या मानविकी का, मैं यह याद करता हूं कि उन शिक्षकों ने हममें ज्ञान का कैसा जुनून पैदा किया, किस प्रभावी और दिलचस्प तरीके से वे हमसे खुद को जोड़ लेते थे। उन्होंने हमें नैतिकता के मानकों के बारे में भी सिखाया : कि कैसे तथ्यों को महत्व देना है, कैसे अपनी गलतियां स्वीकारनी हैं, और जब छात्र नई चीजों की खोज करे, तब कैसे उन्हें दिशा-निर्देश देना है। मैं याद करता हूं कि पढ़ाई के दिनों में मैं अपने उन शिक्षकों की कितनी प्रशंसा करता और उन जैसा बनने की कोशिश करता था। ऐसा ज्ञान मशीनों से हमें कतई नहीं मिलने वाला।
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