Ram Mandir: राम मंदिर को सांस्कृतिक आजादी का प्रतीक बताएगी विहिप, उद्घाटन के पहले चलेगा ये अभियान।
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जितेंद्रानंद सरस्वती ने कहा, ‘इसका परिणाम हम देखते हैं कि स्वतंत्रता प्राप्त करने के बाद भी गुलामी के अनेक प्रतीक हमारे बीच बने रहे। यहां तक कि देश की न्याय व्यवस्था भी अंग्रेजों के द्वारा बनाए गए कानूनों से संचालित होती रही।’
राम मंदिर का उद्घाटन अगले वर्ष के जनवरी माह में होना तय हो चुका है। अयोध्या में भगवान राम के मंदिर के उद्घाटन को विश्व हिंदू परिषद (विहिप) ‘सांस्कृतिक आजादी’ के रूप में मनाने की तैयारी कर रही है। इसके लिए मंदिर के उद्घाटन से पूर्व एक विशेष अभियान चलाकर इसके प्रति लोगों को जागरूक किए जाने की तैयारी है। अखिल भारतीय संत समिति के प्रमुख पदाधिकारी स्वामी जितेंद्रानंद सरस्वती ने अमर उजाला से कहा कि 15 अगस्त 1947 को देश को जो स्वतंत्रता प्राप्त हुई थी, वह पूरी तरह राजनीतिक थी। इस दिन देश की सत्ता विदेशी शक्तियों के हाथों से अपने लोगों के हाथों में आई थी। लेकिन स्वतंत्रता प्राप्त करने के बाद भी कई मायनों में भारत राष्ट्र की चेतना को स्वतंत्रता नहीं प्राप्त हुई थी।
‘गुलामी के अनेक प्रतीक हमारे बीच’
जितेंद्रानंद सरस्वती ने कहा, ‘इसका परिणाम हम देखते हैं कि स्वतंत्रता प्राप्त करने के बाद भी गुलामी के अनेक प्रतीक हमारे बीच बने रहे। यहां तक कि देश की न्याय व्यवस्था भी अंग्रेजों के द्वारा बनाए गए कानूनों से संचालित होती रही। यानी हमारे देश के लोगों को न्याय भी अंग्रेजों के कानूनों से दी जाती रही। अब केंद्र सरकार ने नए आपराधिक कानून बनाकर इस गुलामी की निशानी को समाप्त करने का प्रयास किया है। अभी इस दिशा में बहुत कुछ किया जाना बाकी है।’
उन्होंने कहा कि ‘दुनिया का कोई भी राष्ट्र अपनी सांस्कृतिक चेतना को विकसित किए बिना विकास नहीं कर पाया है। यह बात अमेरिका, चीन, जापान सहित दुनिया के किसी भी राष्ट्र पर लागू होती है। यदि भारत को भी अपना सर्वोच्च विकास करना है तो इसे अपनी सांस्कृतिक स्वतंत्रता को प्राप्त करना चाहिए। राम मंदिर के उद्घाटन के साथ ही भारत अपनी इस सांस्कृतिक स्वतंत्रता को प्राप्त करने की दिशा में सबसे बड़ा कदम उठाएगा।’
‘राम किसी वर्ग विशेष के नहीं’
स्वामी जितेंद्रानंद सरस्वती ने कहा कि ‘भगवान राम को किसी संप्रदाय विशेष के साथ जोड़कर नहीं देखा जाना चाहिए। वे इस देश की आत्मा हैं। इस देश में रहने वाले किसी भी धार्मिक और क्षेत्रीय वर्गों की अपनी पहचान तब तक पूर्ण नहीं होती जब तक कि वह अपने आपको भगवान राम के साथ नहीं जोड़ती। यही कारण है कि भगवान राम पर इस देश के हर वर्ग हर संप्रदाय का समान अधिकार है। उन्होंने कहा कि सांस्कृतिक तौर पर संपन्न जनसमुदाय अपने लिए अधिक विकास करता है और इसे आगे बढ़ाया जाना चाहिए।’
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