दुखः तकलीफे सेहते हुए हरिश हिरे ने किस्मत से हार नही मानी
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मुंबई मे 1997 में जन्मे हरिश हिरे ने प्राथमिक शिक्षा मुंबई के शांताराम कृष्णाजी पंतवलावकर विदयालय कुर्ला से पुर्ण की, उसके बाद डाॅ.बाबासाहेब आंबेडकर काॅलेज, चेंबुर से एमए आर्टस् की डिग्री हासील की, उनके पिताजी अजय हिरे रिअल इस्टेट एजंट है! हरिश हिरे अलीबाग में पी.एन.महाविदयालय में एक शिक्षक है, और साथही झोन मराठी कंपनी के संचालक है!
मुंबई कुर्ला में रहने वाले हरिश मुलतःनासिक से है, हिरे के माता पीता ने लव्हमॅरेज की थी इसीलीए उन्हे बचपन से अपनी दादी के घर अकेले ही रेहना पडा, उनकी दादी बडी सख्त स्वभाव की थी, माता पीता एकही शहरमें अलग रहते थे इसलीए वे कभी कभी अपने माता पीता को मिलने जाया करते, माता पिता का साथ ना मिलने से वे बेफिक्र होकर दोस्तों के संग घुमा करते, काफी वक्त बरबाद होने से 10 वी में उन्हे कडी हार का सामना करना पडा, बुरी संगत होते हुवे भी उन्हें कभी कोई गलत आदत नही लगी, उनपर कई बार अच्छे संस्कार नही होने का लांछन लगा, लेकीन उन्होंने कभी कीसी का कोई बुरा नही किया, और ना कोई बुरा काम किया! गरीबी के कारण उनके पास ज्यादा पैसे नही होते थे! छोटी छोटी चिजों के लिए उन्हें तरसना पडाता था, वक्त ने उनके साथ और एक खेल खेला और उनकी माॅ को उन्होंने हमेशा के लिए खो दिया! अचानक ही माॅ के मरने की खबर सुनकर वे अंदर से टूट गए! अंतीम समय में वे उनसे कुछ बातें भी नही कर पाए इस बात का अफसोस उन्हे जिंदगीभर रहेगा!
माॅ के गुजर जाने के बाद किसी ने उनका साथ नही दिया, जीन्हे वे अपना मानते थे उन्होंने सहारा देने से इन्कार कर दिया, और उस समय काफी रिश्तेदार होते हूए भी कीसीने साथ नही दिया! सभी लोग उनके साथ अनाथ की तरह व्यवहार करने लगे, एैसे हालात में एक नौकर की तरह वे दादी के घर दिनरात काम करते रहे, मेहनत करते रहे, और जिल्लत की जिंदगी जिते रहे! कभी एक वक्त का खाना तो कभी रातभर जागना, इसतरह वे जिंदगी बसर कर रहे थे! उनके किसी भी फैसले में उनको सहयोग नही मिला, उन्हे हमेशा विरोध का सामना करना पडा!
हरीश हिरे को इतिहास में अधिक रूची थी, कभी किताबें तो कभी इतीहास के व्हिडीओ देखते हूए उन्होंने 12 वी की परिक्षा दि और अच्छे नंबरोंसे पास होकर दिखाया, उन्होने अपनी पढाई मन लगाकर पुरी की, उन्हे बचपन से मुर्ती कला और अन्य कलाओं में रूची थी, बचपन से ही नेतृत्व गुण होने के कारण उन्होंने राजनीती में अपना एक मुकाम हासिल किया था, उसी दौरान अरूणगवळी जी की पत्नी के सहायक सचिव के रूप मे कार्य करना और फिर शिक्षा के क्षेत्र में खुद को आजमाना इस सफर में उन्होंने काफी समाज सेवा भी की, और निरंतर लोगोंको सहयोग करते रहे!
उन्हें चित्रकला में रूची थी, साथ ही इतिहास के संशोधक के रूप में कार्य किया है, कोविड के दौरान उन्होने मीडीया में काम करना शुरू किया, जिवन मे कुछ समय एैसा था जब उन्हें बदनामी का सामना करना पडा, लेकीन वे डटे रहे लोगोंकी सेवा करते रहे और उन्हें कोविड योध्दा के रूप में सन्मानीत किया गया!
उनके जिवन का लक्ष है की इमानदारी से परिश्रम करते रेहना और सफलता हासिल करना, यही बात हर घर में पहूॅचाने के लिए उन्होंने मराठी में एक बडा प्लॅटफाॅर्म निर्माण किया जिसका नाम झोन मराठी रखा जिसे उन्हें महाराष्ट्र के हरघर में पहुॅचाना है!
वे हमेशा उनके गुरू ओमकार भवरजी का धन्यवाद करते है जिन्होंने ऑनलाईन इतिहास की पढाई उन्हे सिखाई और सही रास्ता दिखाया जिसपर चलते हुए हरिश जी ने आज युटयुब के माध्यम से हजारो व्हिडीओंज बनाए है, और वे निरंतर उसी दिशा मे कार्य कर रहे है, जो उन्हे कभी उलटा सिधा बोला करते या कभी उन्हे अपमानीत करते, आज वे सभी उनका सन्मान करते है और उनके साथ अच्छा व्यवहार भी करते है! कोरोना के काल में शुरू किया गया चॅनल आज बडाही लोकप्रिय हो चुका है, उन्होंने बनाए राजामहाराजाओंके व्हिडिओंज लोगोंने बेहद पसंद किए! आज उनकी एक मेडिया कंपनी है, बिना किसी के सहारे उन्होंने सफलता छूकर दिखा दिया!
एक अनाथ के रूप में उन्होंने जितनी तकलीफे उठाई उन सारी मुसिबतों का सामना करते हुए वे सफलता के रास्तेपर चलने लगे! आज उन्हे गर्व है की वे एक अच्छे इन्सान बन गए है और हजारो लोगों को जिवन की सही प्रेरणा भी दे रहे है! आज खुद के बलबुतेपर उन्होंने एक बेहतर मुकाम हासिल किया है, उन्हे रिसिल.इन की और से हम ढेरसारी शुभकामना देते है!
लेखक : सचिन आर जाधव
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