80% लोग महसूस करते हैं देजा वू: ऐसा क्यों लगता है कि ये घटना पहले हो चुकी है, जानिए इसके पीछे का विज्ञान।
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आप कहीं पहली बार गए हों, अचानक से आपको यहां लगे की पहले भी आ गए या फिर आपको बहुत अजीब सी स्ट्रॉन्ग फीलिंग महसूस होने लगी जैसे कि ये सब पहले हो चुका है। इसे देजा वू कहते हैं। लेकिन क्या आपने कभी सोचा है कि देजा वू क्या है और ऐसा क्यों होता है? आइए जवाब देते हैं…
देजा वू फ्रेंच शब्द है। इसका मतलब ‘पहले से देखा’ होता है। ये ऐसी स्थिति होती है, जब हमें लगने लगता है कि कोई भी घटना हमारे साथ पहले हो चुकी है। इस शब्द का पहली बार इस्तेमाल 1876 में फ्रेंच फिलॉसफर एमिल बोइराक ने एक पत्र में किया था। ‘लाइव साइंस’ की रिपोर्ट के मुताबिक, 80% लोगों को देजा वू महसूस होता है।
इसके पीछे क्या है
देजा वू क्यों महसूस होता है, इसके पीछे कई थ्योरी हैं। न्यूरोसाइकिट्रस्ट डॉ ओहा सुस्मिता का कहना है कि इसके पीछे मेमोरी थ्योरी हो सकती है। इसके अनुसार, देजा वू तब होता है जब मौजूदा स्थिति पहले टूट जाती है लेकिन दिए गए अनुभव के समान होते हैं।
आसान शब्दों में कहें तो मौजूदा स्थिति और पहले हो गई असफलता में कुछ समानताएं होती हैं। इससे ऐसा लगता है कि मौजूदा घटना पहले ही बंद हो चुकी है। देजा वू इन कथित धार्मिक लेखकों को समझने और पूर्वाग्रहों के लिए हमारे दिमाग की कोशिश कर सकते हैं।
साइंटिस्ट्स ने लैब में देजा वू का पुनर्निर्माण किया
देजा वू बहुत ही मजबूत फीलिंग होती है। ये पता लगाना बहुत ही मुश्किल है कि वास्तव में ये फाइलिंग कैसे विकसित हो रही है। इसके लिए साइंटिस्ट्स ने लैब में देजा वू को फिर से बनाने के लिए प्रयोग किया। कुछ पार्टिसिपेंट्स को कॉल किया गया। साइंटिस्ट ऐनी क्लीरी और उनकी टीम लुक्स रियलिटी (VR) की मदद ली। इसमें पार्टिसिपेंट्स को देजा वू महसूस किया गया कि ऐसा माहौल बनाया गया है जो उनके सिग्नल्स से सब्सक्राइबर्स ने बनाया था, जो उन्हें पूरी तरह से याद नहीं थे। इस प्रयोग को गेस्टाल्ट परिचित परिकल्पना (गेस्टाल्ट परिचित परिकल्पना) का नाम दिया गया।
प्रयोग में क्या किया
एक्सपेरिमेंट में क्लीरी और उनकी टीम ने देजा वू को शटरिंग करने के लिए पार्टिसिपेंट्स के सबक के अनुसार बताई गई एक सोच पर फर्नीचर और अन्य सामान बेकार ही रखा दिया जैसे उन्होंने बताया। इसके बाद पार्टिसिपेंट्स को रीक्रिएट किए गए सीन को ताना करने के लिए कहा गया। टीम ने पाया कि ये देखने के बाद पार्टनर्स को देजा वू फीलिंग आई। यानी जब कोई व्यक्ति अतीत से संबंधित चीजों को देखता है तो उसे याद नहीं रहता है, तो उसे देजा वूलिंग महसूस होता है।
विभाजित धारणा : देजा वू से जुड़ी एक और थ्योरी
देजा वू वाली फीलिंग परसेप्चुअल गैप (अवधारणात्मक अंतर) या स्प्लिट परसेप्शन (विभाजित धारणा) के कारण भी आ सकते हैं। ऐसा तब होता है जब हमारा दिमाग एक बार में एक ही तरह के संकेतों को दो बार बता देता है। पहली बार हमारा कॉन्शियस माइंड इस संकेतों पर ध्यान नहीं दे पाता है। इसके तुरंत बाद जब इशारे मिलते हैं तो देजा वू फीलिंग आती है, क्योंकि हमें पहला संकेत याद नहीं रहता।
पॉपुलर और इंटरेस्टिंग- मैट्रिक्स थ्योरी
डेजा वूवर फीलिंग के कई सिद्धांत सबसे लोकप्रिय और दिलचस्प मैट्रिक्स सिद्धांत हैं। लोग इसे कई बार ‘ग्लिच इन द मैट्रिक्स थ्योरी’ कहते हैं। इसे आप सिम्युलेशन कह सकते हैं। कुछ जानकारों का मानना है कि हम असल ब्रम्हांड में नहीं जीते हैं। हम कंप्यूटर से जुड़े एक ब्रम्हांड में रहते हैं और ये दुनिया, पानी, पेड़, समुद्र, जीव सब कुछ एक कंप्यूटर प्रोग्राम है। जब इन प्रोग्राम में ग्लिच होता है यानी कोई खराबी आती है तो हमें देजा वू फीलिंग महसूस होती है।
देजा वू बीमारी का संकेत नहीं
न्यूरोसाइकिट्रास्ट डॉ ओहा सुस्मिता ने कहा- देजा वू फीलिंग कॉमन है। ये किसी मनोवैज्ञानिक सपने का संकेत नहीं है। हालांकि कुछ लोगों को तनाव की वजह से ये जल्दी-जल्दी महसूस होता है जिससे माइग्रेन या अंगजायटी होती है।
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