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    April 22, 2025

    10000 का नोट: भारत में कभी चलता था 10 हजार का नोट; 1978 में चलन से बाहर हुए, जानें देश में कब-कब हुई नोटबंदी |

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    Demonetisation History: देश में पहली बार नोटबंदी आजादी के पहले साल 1946 में हुई थी। भारत के वायसराय और गर्वनर जनरल सर आर्चीबाल्ड वेवेल ने 12 जनवरी 1946 को हाई करेंसी वाले बैंक नोटों को डिमोनेटाइज (Demonetisation) करने का अध्यादेश लाने का प्रस्ताव दिया था।
    भारत रिजर्व बैंक ने दो हजार के नोटों को चलन से बाहर का करने का फैसला किया है। हालांकि केंद्रीय बैंक ने यह साफ किया है कि 2000 के नोट लीगल टेंडर बने रहेंगे, ऐसे में यह फैसला नोटबंदी नहीं है। आरबीआई ने यह भी कहा है कि 2000 के नोट 30 सितंबर तक बैंकों में जमा किए या बदले जा सकेंगे। इसकी प्रक्रिया 23 मई से शुरू होगी। देश में कई मौकों पर लीगल टेंडर या चलन में मौजूद नोटों से जुड़े कई फैसले लिए गए हैं। देश में कभी 5000 और 10000 के नोट भी चलन में थे। जिन्हें नोटबंदी जैसा फैसला लेकर प्रचलन से हटा दिया गया था। हालांकि यहां हम साफ कर दें कि आरबीआई की दो हजार के नोटों के संबंध में लिया गया फैसला नोटबंदी के तहत नहीं आता है। यह इन नोटों को बस चलन से बाहर करने का मामला है।
    पहली बार साल 1946 में हुई थी नोटबंदी |
    देश में पहली बार नोटबंदी आजादी के पहले साल 1946 में हुई थी। भारत के वायसराय और गर्वनर जनरल सर आर्चीबाल्ड वेवेल ने 12 जनवरी 1946 को हाई करेंसी वाले बैंक नोटों को डिमोनेटाइज (Demonetisation) करने का अध्यादेश लाने का प्रस्ताव दिया था। इसके 13 दिन बाद यानी 26 जनवरी रात 12 बजे के बाद से ब्रिटिश काल में जारी 500 रुपये, 1000 रुपये और 10000 रुपये के नोटों की वैधता समाप्त कर दी गई थी। आजादी से पहले 100 रुपये से ऊपर के सभी नोटों पर प्रतिबंध लगाया गया था। सरकार ने उस वक्त यह फैसला लोगों के पास कालेधन के रूप में पड़े नोटों को वापस मंगाने के लिए यह फैसला लिया था। इतिहासकारों का मानना है कि उस समय भारत में व्यापारियों ने मित्र देशों को सामान निर्यात कर मुनाफा कमाया था और इसे सरकार की नजर से छुपाने की कोशिश कर रहे थे।

    1978 मोरारजी देसाई सरकार ने लिया नोटबंदी का फैसला
    देश में कालेधन को खत्म करने के लिए अंग्रेजों से आजादी मिलने के बाद साल 1978 में भी नोटबंदी का फैसला लिया गया। तत्कालीन मोरारजी देसाई सरकार ने बड़े नोटों को डिमोनेटाइज करने की घोषणा की थी। उस समय के अखबारों में प्रकाशित खबरों के मुताबिक नोटबंदी के इस फैसले से लोगों को काफी परेशानी झेलनी पड़ी थी। जनता पार्टी के नेतृत्व वाली सरकार ने 16 जनवरी 1978 को 1000 रुपये, 5000 रुपये और 10 हजार रुपये के नोटों को बंद करने की घोषणा की थी। सरकार ने इस नोटबंदी की घोषणा के अगले दिन यानी 17 जनवरी को लेनदेन के लिए सभी बैंकों और उनकी ब्रांचों के अलावा सरकारों के अपने ट्रेजरी डिपार्टमेंट को बंद रखने को कहा गया था।

    1978 से चलन से बाहर हैं पांच और दस हजार के नोट
    यहां एक बार गौर करने वाली है कि रिजर्व बैंक ने जनवरी 1938 में पहली पेपर करंसी छापी थी जो 5 रुपए नोट की थी। इसी साल 10 रुपए, 100 रुपए, 1,000 रुपए और 10,000 रुपए के नोट भी छापे गए थे। लेकिन 1946 में 1,000 और 10 हजार के नोट बंद कर दिए गए थे। 1954 में एक बार फिर से 1,000 और 10,000 रुपए के नोट छापे गए थे। साथ ही 5,000 रुपए के नोटों की भी एक बार फिर छपाई की गई थी। उसके बाद 10000 और 5000 के नोटों को 1978 में मोरारजी देसाई की सरकार ने चलन से बाहर कर दिया।

    मोदी सरकार ने 2016 में लिया नोटबंदी का फैसला
    मोदी सरकार ने 8 नवंबर 2016 को देश में नोटबंदी की थी। इस दौरान सरकार ने एक हजार रुपये के नोट को डिमोनेटाइज करने का ऐलान किया था। पांच सौ के पुराने नोटों को भी चलन से बाहर कर दिया गया था। इस फैसले के बाद 2000 रुपये के नोट जारी किए गए थे। विपक्ष ने सरकार के इस फैसले की कड़ी आलोचना की थी और मामला सुप्रीम कोर्ट तक पहुंच गया था। हालांकि कोर्ट ने 6 महीने लंबी चली सुनवाई के बाद कहा था कि नोटबंदी (Demonetisation) के फैसले में कोई खामी नहीं थी। नोटबंदी के फैसले पर सरकार को सुप्रीम कोर्ट की संवैधानिक पीठ ने बड़ी राहत दी थी। पीठ ने बहुमत से माना है कि नोटबंदी का उद्देश्य सही था।

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