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    May 7, 2025

    राइट टू हेल्थ बिल: सीएम गहलोत का ये दांव क्या चुनाव में बनेगा ‘नई लहर’ की वजह |

    1 min read
    😊

    राइट टू हेल्थ बिल के अनुसार राज्य का कोई भी निवासी आपातकाल के दौरान किसी भी निजी अस्पतालों या सरकारी अस्पताल में निशुल्क इलाज करवा सकता है |

    राजस्थान में इस साल के अंत में होने वाले विधानसभा चुनाव को लेकर कांग्रेस- बीजेपी सहित सभी पार्टियों ने अपनी तैयारियां तेज कर दी है , इसी क्रम में राज्य के सीएम अशोक गहलोत ने प्रदेश की जनता को बड़ा तोहफा दिया है , दरअसल बीजेपी के तमाम विरोध के बीच राजस्थान विधानसभा में राइट टू हेल्थ (स्वास्थ्य के अधिकार) बिल बीते मंगलवार को पास हो गया |

    यह बिल अशोक गहलोत सरकार का महत्वाकांक्षी बिल है जिसके तहत राज्य के ,,किसी भी मरीज के पास पैसे नहीं होने पर उसके इलाज के लिए इनकार नहीं किया जा सकता |

    इस ऐलान के साथ ही राजस्थान राइट टू हेल्थ बिल पारित करने वाला भारत का पहला राज्य बन गया है | इस राज्य के किसी भी निवासी को सरकारी या प्राइवेट हॉस्पिटल इलाज करने से अब मना नहीं कर सकेंगे |

    हालांकि निजी डॉक्टर इस कानून को लेकर राज्य सरकार से उलझे हुए हैं | उनका कहना है कि इस कानून के कारण उनके कामकाज में नौकरशाही का दखल बढ़ेगा. ऐसे में सवाल उठता कि तमाम अड़चनों के बीच इस बिल को पास करने का फायदा क्या कांग्रेस को आने वाले चुनाव में मिल सकता है | क्या कांग्रेस का ये दांव चुनाव में ‘नई लहर’ की वजह बनेगा ?

    पहले जानते हैं कि आखिर ये बिल में है क्या, क्यों हो रहा है विरोध

    मुफ्त इलाज: राइट टू हेल्थ बिल के अनुसार राज्य का कोई भी निवासी आपातकाल के दौरान किसी भी निजी अस्पतालों या सरकारी अस्पताल में निशुल्क इलाज करवा सकता है | वहीं इस नियम पर प्राइवेट अस्पताल के डॉक्टर विरोध कर रहे हैं | उनका कहना है कि इमरजेंसी कब और कैसे तय की जाएगी इसका कोई दायरा तय नहीं किया गया है | ऐसे में कोई भी मरीज अपनी बीमारी को इमरजेंसी बताकर मुफ्त में इलाज करवा सकता है |

    एंबुलेंस का खर्चा: इस बिल में एक प्रावधान ये भी कि अगर अस्पताल में इलाज करवा रहा मरीज किसी गंभीर बीमारी से ग्रसित है और आगे के इलाज के लिए इसे दूसरे अस्पताल रेफर करना है तो ऐसी स्थिति में एंबुलेंस का व्यवस्था करना अनिवार्य है | इस प्रावधान पर आपत्ति जताते हुए प्राइवेट डॉक्टरों का कहना है कि अगर ऐसा हुआ तो एंबुलेंस के आने जाने का खर्चा कौन उठाएगा और निजी अस्पताल उठाती है तो कितना उठा पाएगी |

    वाहवाही लूटने का आरोप: इस बिल में कहा गया है कि सरकारी योजना के अनुसार प्राइवेट अस्पतालों को भी सभी बीमारियों का इलाज निशुल्क करना है | ऐसे में बिल का विरोध कर रहे डॉक्टरों का कहना है कि राज्य सरकार चुनाव को नजदीक देख प्राइवेट अस्पताल पर सरकारी योजनाएं थोप रही है |

    इलाज करने से मना करने पर क्या होगा

    राज्य सरकार के अनुसार इस कानून को सभी सरकारी और निजी अस्पताल को मानना होगा | अगर राइट टू हेल्थ का उल्लंघन होता है और किसी भी अस्पताल में इलाज से मना किया जाता है तो उस अस्पताल को 10 से 25 हजार तक का जुर्माना देना पड़ सकता है |

    नियम के अनुसार पहली बार इलाज से मना करने पर जुर्माना 10 हजार होगा और अगर दूसरी बार इसी अस्पताल से मना किया जाता है तो 25 हजार का जुर्माना लगाया जा सकता है | इस बिल की शिकायत सुनने के लिए जिला स्वास्थ्य प्राधिकरण और राज्य स्तर पर राज्य स्वास्थ्य प्राधिकरण बनेगा | बिल के उल्लंघन से जुड़े मामले में प्राधिकरण के फैसले को किसी सिविल कोर्ट में चुनौती नहीं दी जा सकेगी |

    बिल को लेकर सत्ता और विपक्ष में जमकर नोकझोंक

    इस बिल पर मुहर लगाने से पहले सदन में इसे लेकर सत्ता और विपक्ष में जमकर बहस हुई | स्वास्थ्य मंत्री परसादी लाल मीणा ने अपना तर्क रखते हुए कहा कि राज्य में ऐसे कई बड़े अस्पताल हैं जहां इलाज के दौरान किसी की मौत होने पर पूरे पैसे दिए बगैर पार्थिव शरीर नहीं ले जाने दिया जाता | ऐसे में कोई गरीब आदमी कहां से लाखों रुपए लाएगा? जबकि बीजेपी इस बिल को लाने के विरोध में थे ,

    राज्य में क्या है कांग्रेस का हाल

    गहलोत सरकार के बनने के बाद से इस राज्य में पिछले 4 साल में कई वजहों के चलते 9 उपचुनाव हुए हैं | इनमें कांग्रेस को 66 प्रतिशत सफलता मिली है | जिसका मतलब है कि 9 उपचुनावों में से 6 उपचुनावों के परिणाम को देखें तो कांग्रेस का पलड़ा भारी रहा है | इन उपचुनावों में बीजेपी ने अन्य दलों के प्रत्याशियों को हरा दिया है | इन उपचुनावों के परिणाम के दम पर ही अशोक गहलोत दावा करते रहे हैं कि राज्य में सरकार विरोधी कोई लहर नहीं है |

    इस बिल को पास करने से आम लोगों में होगा फायदा

    नीति आयोग की रिपोर्ट के अनुसार राजस्थान की कुल आबादी में 29.46 फीसदी प्रदेशवासियों को गरीबी में गुजर बसर करना पड़ रहा है. वहीं इस राज्य के शहरी क्षेत्र में 11.52 प्रतिशत और ग्रामीण क्षेत्र में 35.22 प्रतिशत आबादी गरीब है | ऐसे में राज्य की लगभग 29.46 फीसदी जनता कांग्रेस के इस बिल को लाने के फैसले से खुश होंगे | जाहिर है कि गरीबी के कारण उनके पास महंगे इलाज के लिए पैसे नहीं होंगे और कांग्रेस का ये बिल उनके लिए काफी मददगार साबित होगा | ऐसे में ये आबादी कांग्रेस को विधानसभा चुनाव में चुन सकती है |

    इस रिपोर्ट के अनुसार देश में सबसे ज्यादा गरीबी में बिहार में यानी 51.91 प्रतिशत, झारखंड में 42.16 प्रतिशत और तीसरे स्थान पर यूपी है जहां कुल आबादी के 37.79 प्रतिशत लोग गरीबी में जी रहे हैं. वहीं राजस्थान को 8वां स्थान प्राप्त है |

    राजस्थान में शहरी क्षेत्र में 11.52 प्रतिशत और ग्रामीण क्षेत्र में 35.22 प्रतिशत आबादी गरीब है | उदयपुर में बाड़मेर की 56.13 फीसदी जनसंख्या गरीब है |

    क्या है राजस्थान में विधानसभा का गणित ?

    मौजूदा समय में इस राज्य में 200 विधानसभा सीटें हैं जिस पर साल 2023 के अंत तक चुनाव होने वाले हैं | यानी राज्य में बहुमत का आंकड़ा 101 विधायकों का है |

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