युवाओं पर निवेश करने की जरूरत, डिजिटल कौशल बढ़ाने की दरकार |
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एनएसएसओ के ताजा सर्वेक्षण के मुताबिक, अब भी बड़ी संख्या में ग्रामीण युवा संलग्न फाइल के साथ ईमेल भेजना नहीं जानते, जबकि यह डिजिटल कौशल की बुनियादी चीज है। जनसांख्यिकी लाभांश का लाभ उठाने के लिए डिजिटल कौशल बढ़ाने की जरूरत है।
वर्ष 2024 के लोकसभा चुनाव से पहले हम तेजी से बदलती नई विश्व व्यवस्था में भारत की महत्वपूर्ण भूमिका के बारे में बहुत कुछ सुन रहे हैं। हम संभावित जनसांख्यिकी लाभांश के बारे में भी बहुत कुछ सुनेंगे। अपनी युवा आबादी के साथ भारत आने वाले वर्षों में सबसे तेजी से बढ़ती प्रमुख अर्थव्यवस्था बनने की राह पर है, जबकि बुजुर्गों की आबादी वाले चीन में वर्षों के तेज विस्तार के बाद अब अर्थव्यवस्था में धीमी वृद्धि दिखने की संभावना है।
निस्संदेह, भारत की युवा आबादी अवसरों की एक विशाल खिड़की प्रदान करती है। लेकिन कुछ तल्ख सच्चाइयां भी हैं, जिनकी हम उपेक्षा नहीं कर सकते-यह जरूरी नहीं कि विशाल युवा आबादी होने भर से हमें जनसांख्यिकी लाभांश मिले। इसके लिए हमें अपने युवाओं पर निवेश करने की जरूरत है। हमारे देश में डिजिटल विभाजन सबसे प्रमुख मुद्दों में से एक है और शहरों व गांवों में रहने वाले लोगों, पुरुषों व महिलाओं के बीच, और देश के विभिन्न इलाकों में सूचना एवं संचार प्रौद्योगिकी (आईसीटी) कौशल के क्षेत्र में इस विभाजन को देखा जा सकता है।
सतत विकास लक्ष्यों (एसडीजी) की निगरानी प्रक्रिया के तहत राष्ट्रीय नमूना सर्वेक्षण कार्यालय (एनएसएसओ) ने जनवरी, 2020 से अगस्त, 2021 के बीच 2,76,409 भारतीय परिवारों में एक बहुसूचक सर्वेक्षण किया। हाल में जारी उस सर्वे रिपोर्ट में कई मुद्दों पर दिलचस्प आकंड़े दिए गए हैं। यहां 15 से 24 वर्ष की आयु के युवाओं पर कुछ तथ्य दिए जा रहे हैं, जिन्होंने आईसीटी कौशल क्षमता के बारे में बताया। कुल मिलाकर, एनएसएसओ सर्वेक्षण बताता है कि सरकार की तमाम सुविचारित योजनाओं के बावजूद हमारे युवाओं का एक बड़ा हिस्सा ऑनलाइन काम करने या अध्ययन करने के लिए तैयार नहीं है।
कंप्यूटर कौशल का आकलन करने के लिए पूछे गए नौ सवालों में से मात्र एक को लें, 15-24 आयु वर्ग के लगभग 27 फीसदी लोग ही संलग्न फाइलों के साथ ईमेल भेज सकते हैं, जबकि यह आधुनिक दुनिया में एक बुनियादी कौशल है। लेकिन जब आप देश के भीतर की असमानताओं को देखते हैं, तो स्थिति और विकट हो जाती है। इसी आयु वर्ग की ग्रामीण महिलाओं के लिए यह आंकड़ा 15.9 फीसदी है, जबकि शहरी महिलाओं के लिए यह आंकड़ा 43.3 फीसदी है। इस मामले में ग्रामीण और शहरी महिलाओं की तुलना में ग्रामीण और शहरी पुरुषों की स्थिति कहीं बेहतर है। शहरी-ग्रामीण या स्त्री-पुरुष विभाजन ही असमानता के एकमात्र बिंदु नहीं है। यदि आप रिपोर्ट को समग्रता में देखें, तो ऐसी तालिकाएं हैं, जो राज्यों के बीच भारी अंतरों को प्रकट करती हैं।
केरल में, 15 से 24 वर्ष की आयु के बीच के 73.5 फीसदी ग्रामीण पुरुष संलग्न फाइलों (जैसे-दस्तावेज, चित्र और वीडियो) के साथ ईमेल भेजना जानते हैं। असम में यह आंकड़ा 14.4 फीसदी है; उत्तर प्रदेश में 13.2 फीसदी है, तो तमिलनाडु में यह आंकड़ा 49.9 फीसदी है। 15 से 24 वर्ष के 76 फीसदी शहरी पुरुष संलग्न फाइलों के साथ ईमेल भेज सकते हैं; उत्तर प्रदेश में यह आंकड़ा 35 फीसदी है, तो तमिलनाडु में यह आंकड़ा 69.6 फीसदी है। ग्रामीण भारत में 15-24 आयु वर्ग की युवा लड़कियों की स्थिति भारी असमानताओं को दिखाती है-केरल में 74.1 फीसदी युवतियां संलग्न फाइल के साथ ईमेल भेज सकती हैं। इसकी तुलना यदि ग्रामीण असम से करें, तो वहां यह आंकड़ा मात्र 9.7 फीसदी है।
एनएसएसओ सर्वेक्षण कई अन्य संकेतक भी प्रदान करता है। ये सभी बताते हैं कि सभी युवाओं के लिए समान अवसर उपलब्ध नहीं है। और यह उन अवसरों में परिलक्षित होगा, जिनका वे कामकाजी दुनिया में लाभ उठा सकते हैं। इसके पीछे कई कारण हैं। निर्धन राज्यों में हर परिवार के पास कंप्यूटर या एक से अधिक सेलफोन नहीं होते हैं और इन उपकरणों तक पहुंच भारतीय युवाओं के बीच आईसीटी कौशल में भारी असमानताओं का एक कारण हो सकती है। शिक्षा तक पहुंच में भी भारी विभाजन है। एनएसएसओ के ये नवीनतम आंकड़े अंतराल को पाटने की जरूरत को आधिकारिक स्वीकृति देते हैं। लेकिन इस समस्या को पहले भी हरी झंडी दी गई है।
एक प्रमुख थिंक टैंक द ऑब्जर्वर रिसर्च फाउंडेशन के अनिर्बान शर्मा और चंदोला बसु की वर्ष 2022 की रिपोर्ट में डिजिटल परिवर्तन के लिए भारत सरकार के प्रमुख कार्यक्रम डिजिटल इंडिया मिशन द्वारा की गई पहल को स्वीकार किया गया है और युवाओं को आईटी/आईटीईएस क्षेत्र में रोजगार के अवसरों का लाभ उठाने के लिए आवश्यक कौशल प्रशिक्षण प्रदान किए गए हैं। लेकिन इसने कुछ प्रमुख चुनौतियों को भी रेखांकित किया है। फाउंडेशन की रिपोर्ट में कहा गया है कि ‘कंपनियों ने श्रमिकों के लिए जरूरी कौशल में बढ़ते अंतराल के बारे में चिंता व्यक्त की है। वर्ष 2020 में, भारतीय कंपनियों ने कौशल की कमी को अपनी सबसे बड़ी बाधा माना था, जो उनके द्वारा महसूस की गई चुनौतियों का 34 फीसदी है। वर्ष 2022 में यह बढ़कर 60 फीसदी हो गया। उदाहरण के लिए, गार्टनर के एक अध्ययन में पाया गया है कि भारतीय आईटी उद्योग अब प्रतिभा की कमी को उभरती प्रौद्योगिकियों को अपनाने के लिए सबसे महत्वपूर्ण बाधा (65 फीसदी) के रूप में देखता है, जबकि 2024 के बाद बीस गुना मांग बढ़ने की उम्मीद है। यह रिपोर्ट डिजिटल कौशल अंतर को तत्काल खत्म करने की आवश्यकता पर बल देती है।
इंडिया स्किल्स रिपोर्ट, 2022 बताती है कि भारत के केवल 48.7 फीसदी शिक्षित युवा ही रोजगार के योग्य हैं। जाहिर है, यदि भारत को अपनी क्षमता का एहसास करना है, तो देश के कौशल पारिस्थितिकी से इन अंतरालों को दूर करने के लिए और कदम उठाने चाहिए। लेकिन इस बात पर भी जोर देने की जरूरत है कि विभिन्न आईसीटी कौशल बुनियादी शिक्षा के शीर्ष पर आते हैं।
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