मुकेश छाबड़ा: छोटे शहरों के ”सुपरस्टार” तलाशने निकले मुकेश छाबड़ा, बोले, ‘’आउटसाइडर्स के लिए सब कुछ करूंगा’’ |
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सुशांत सिंह राजपूत, राजकुमार राव, फातिमा सना शेख और सान्या मल्होत्रा जैसे:- तमाम सितारों को बड़े परदे पर पेश करने वाले वैसे तो तमाम निर्देशक रहे हैं लेकिन क्या आप जानते हैं, कि इनकी खोज जिस एक इंसान ने की, वह कौन हैं? जी हां, हिंदी फिल्म इंडस्ट्री में नए चेहरों की खोज को एक अलग हुनर की तरह विकसित करने का काम अभी ज्यादा पुराना नहीं है | और साल 2006 में कास्टिंग की बाकायदा कॉरपोरेट स्टाइल में दफ्तर खोलकर शुरुआत करने वाले शख्स का नाम है, मुकेश छाबड़ा। मुकेश छाबड़ा की खासियत है कि वह गैर फिल्मी परिवारों और गैर मुंबइया कलाकारों को सिनेमा में आगे बढ़ाने में जी जान से जुटे रहते हैं | और यही नहीं जिन लोगों में उन्हें जरा भी टैलेंट दिखता है, वह खुद उन्हें एक्टिंग सिखाने में भी जुट जाते हैं। मुकेश छाबड़ा कास्टिंग कंपनी हर उस युवा के लिए मुंबई में काम पाने की पहली आस होती है, जो घर परिवार छोड़कर यहां हीरो या हीरोइन बनने पहुंच जाता है। मुंबई में अंधेरी पश्चिम इलाके के आराम नगर-दो में जिस किसी दफ्तर के बाहर आपको एक्टिंग के शौकीनों की सबसे ज्यादा भीड़ दिखे, समझ लीजिए वही मुकेश छाबड़ा का दफ्तर है। मुकेश छाबड़ा का रुतबा भी किसी सितारे से कम नहीं है। वह दफ्तर से निकलते हैं | तो युवक युवतियां उन्हें घेर लेते हैं। कोई सेल्फी खिंचाने को बेताब तो कोई बस उनसे हाथ मिलाकर ही खुश है। मुकेश बताते हैं, ‘मैं इसीलिए दफ्तर से कम ही निकलता हूं। आता हूं भी तो ऐसे समय आने की कोशिश करता हूं जब भीड़ थोड़ी कम हो।’ मुकेश छाबड़ा के पास अपना काम गिनाने को इतनी लंबी फेहरिस्त है कि वह जुबानी सुना भी नहीं सकते। उनकी सहायिका वादा करती है कि वह अब तक की उन तमाम हिट फिल्मों की लिस्ट भेजेंगी जिनमें मुकेश छाबड़ा की कंपनी ने कास्टिंग की है, लेकिन मुकेश इन सबमें जाना नहीं चाहते। गिनने बैठेंगे तो सिर्फ फिल्मों की संख्या तीन सौ से ऊपर निकल जाती है, फिर कोई पांच सौ के करीब विज्ञापन फिल्मों और सौ से ज्यादा वेब सीरीज। खुद भी सुशांत को लेकर वह फिल्म ‘दिल बेचारा’ निर्देशित कर चुके हैं। इन दिनों वह अपनी अगली फिल्म की कहानी की तलाश में हैं और तलाश इन्हें उन लोगों की भी है जिन्हें वह छोटे छोटे शहरों से निकालकर मायानगरी पहुंचा सकें। कोरोना संक्रमण काल में स्थगित रहा उनका नाटकों का सिलसिला भी इस साल फिर से शुरू होने जा रहा है। उनकी एक्टिंग वर्कशॉप भी मुंबई में 6 फरवरी से शुरू होने वाली है। उनका नाट्य उत्सव खिड़कियां इस साल अप्रैल में दिल्ली में होना प्रस्तावित है। बच्चों के लिए वह नन्हीं खिड़कियां नाम से नाट्य उत्सव करते हैं और उनके शॉर्ट फिल्म फेस्टिवल का नाम है बोलती खिड़कियां। खिड़कियां उनके दफ्तर की भी दिन रात खड़कती रहती हैं। यहां आने वाला हर दूसरा कलाकार खड़ग सिंह जो बनना चाहता है। सीतापुर के अनुभव दीक्षित से पूछिए तो वह तुरंत मुकेश छाबड़ा के नाम का जयकारा लगाने को तैयार हो जाएंगे। अनुभव का अनुभव यही है कि एक बार मुकेश छाबड़ा के यहां ऑडीशन हो गया तो समझो काम मिलना तय है। हाल ही में फिल्म ‘कुत्ते’ में नजर आए अनुभव को इस फिल्म में बिना किसी सोर्स सिफारिश के काम मिला और ये बताते हुए उनकी आंखों की चमक सौ वॉट के बल्ब जैसी दिखने लगती है। इस बारे में बात करने पर मुकेश छाबड़ा कहते हैं, ‘कास्टिंग करने का मेरा एक ही लक्ष्य है और वह है मुंबई फिल्म इंडस्ट्री में ज्यादा से ज्यादा उन लोगों को काम दिलाना, जिनका मुंबई में कोई नहीं है। मेरी टीमें अब मुंबई से निकलकर देश के उन शहरों में जा रही हैं जहां रंगमंच की स्वस्थ परंपरा रही है, जहां दमदार कलाकार हैं जो बस आर्थिक या पारिवारिक मजबूरियों के चलते मुंबई में काम तलाशने के लिए नहीं रुक सकते। मेरा सपना देश के छोटे छोटे शहरों में अभिनय करने वाले कलाकारों को सुपरस्टार बनाने का है। राजकुमार राव भी तो ऐसे ही स्टार बने। सान्या मल्होत्रा, फातिमा सना शेख सब इस बात की गवाही हैं कि हुनर हो तो मौका घर चलकर भी पहुंच जाता है।’
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