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    May 8, 2025

    बजट 2023: ”अक्षय ऊर्जा” पर बजट में विशेष प्रावधान हो |

    1 min read
    😊

     

    भारत को हाल में मिली जी-20 की अध्यक्षता इतिहास में दर्ज होने वाला एक महत्वपूर्ण क्षण है। भारत की सांस्कृतिक विरासत से संपन्न इस अध्यक्षता की थीम ‘वसुधैव कुटुम्बकम’ या ‘एक पृथ्वी, एक परिवार, एक भविष्य’ है। यह थीम पूरी तरह से मिशन लाइफ के अनुरूप है, जिसे प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने 2022 में घोषित किया था। यह लोगों की जीवनशैली को प्रभावित करने और उनके व्यवहार परिवर्तन के जरिये उन्हें पर्यावरण हितैषी बनाने पर केंद्रित है। भारत द्वारा निर्धारित जी-20 के एजेंडे में स्वच्छ ऊर्जा और टिकाऊ जीवनशैली प्राथमिकताओं में हैं | जिसमें सतत विकास लक्ष्यों-महिला नेतृत्व और त्वरित व समावेशी विकास आधारित प्रगति शामिल है। आगामी बजट इसे पूरा करने और नेट-जीरो लक्ष्य के प्रति भारत की प्रतिबद्धता दर्शाने वाला होना चाहिए।

    मिशन लाइफ को मुख्यधारा में लाने के लिए लोगों और समुदायों को स्वच्छ ऊर्जा बदलावों के केंद्र में लाने की आवश्यकता है। विकेंद्रीकृत अक्षय ऊर्जा (डीआरई) इसमें सहायक है। बजट में डीआरई पर ध्यान दिया जाना महत्वपूर्ण होगा, क्योंकि यह आम जनता के बीच मिशन लाइफ के सिद्धांतों को प्रभावी बनाने के अलावा कई नीतिगत उद्देश्यों को पाने में सहायक है। पहला, यह डीआरई के जरिये सब्सिडी पाने वाले बिजली उपभोक्ताओं की बिजली जरूरतें पूरी करके राज्यों और विद्युत वितरण कंपनियों (डिस्कॉम) का बोझ घटाता है। इसके लिए कम खपत वाली श्रेणी में सबसे ज्यादा बिजली सब्सिडी का लाभ लेने वाले घरेलू उपभोक्ताओं को लक्षित तरीके से सौर ऊर्जा से जोड़ने की जरूरत है। दूसरा, यह डीआरई से संचालित उपकरणों और रूफटॉप सोलर के जरिये स्थानीय स्तर पर आजीविका के अवसर पैदा करता है। तीसरा, यह भारत को अपने सतत विकास लक्ष्यों की दिशा में बढ़ने में मदद करने के साथ-साथ एक सुसंगत व समावेशी ऊर्जा परिवर्तन को प्रोत्साहित करता है। इस लिहाज से वित्त वर्ष 2023-24 का बजट डीआरई को मिशन लाइफ से जोड़ने वाला नीतिगत तथा बजटीय सहायता देने का एक मौका है।

    सबसे पहले, राष्ट्रीय स्तर पर एक जागरूकता अभियान चलाने की जरूरत है, ताकि उपभोक्ताओं को स्वच्छ ऊर्जा बदलावों का ध्वजवाहक बनने के लिए प्रेरित किया जा सके। केंद्रीय बजट में ऐसे व्यापक उपभोक्ता जागरूकता अभियानों के लिए विशेष राशि आवंटित करनी चाहिए। काउंसिल ऑन एनर्जी, इनवायरनमेंट ऐंड वॉटर (सीईईडब्ल्यू) के शोध बताते हैं कि डिस्कॉम पर उपभोक्ता विश्वास करते हैं, इसलिए ये जागरूकता अभियानों के संचालन या सुविधाएं देने के लिए नोडल एजेंसी बन सकते हैं। दूसरा, स्वच्छ ऊर्जा संचालित प्रौद्योगिकियों को अपनाने में तेजी लाने के लिए वित्तपोषण के अन्य विकल्प देने चाहिए। अभी नवीन एवं नवीकरणीय ऊर्जा मंत्रालय (एमएनआरई) रूफटॉप सोलर के लिए पूंजीगत सब्सिडी देता है। लेकिन इसकी शेष लागत के लिए उपभोक्ताओं के पास वित्तपोषण के विकल्प सीमित हैं।

    इसके अलावा छोटे कर्ज और ज्यादा जोखिम के कारण कर्ज देने के लिए वित्तीय संस्थानों की अनिच्छा के अलावा नए ग्राहकों को जोड़ने की ऊंची लागत की भी चुनौती है। इन तमाम चुनौतियों से निपटने के लिए उत्पादन बढ़ाकर लागत घटाने को ध्यान में रखकर उपायों और छोटे उपभोक्ताओं को उनकी आर्थिक स्थिति के अनुरूप फंडिंग के विकल्पों को लाने की जरूरत है। तीसरा, डीआरई को प्रभावी बनाने के लिए पारंपरिक व्यवसायिक मॉडल की जगह पर उपभोक्ताओं की भुगतान क्षमता और खपत के आधार पर उनके लिए अनुकूल व्यवसाय मॉडल बनाने की जरूरत है। चौथा, डीआरई का उपयोग बढ़ाने के लिए सोलर एनर्जी कॉरपोरेशन ऑफ इंडिया (एसईसीआई) के तहत डीआरई विकास कार्यालय बनाना चाहिए। इसमें एक गवर्निंग काउंसिल हो, जिसमें एमएनआरई, ग्रामीण विद्युतीकरण निगम लिमिटेड (आरईसी लिमिटेड), नियामकों के फोरम (एफओआर), एसईसीआई और केंद्रीय विद्युत प्राधिकरण (सीईए) के अधिकारी शामिल हों। थोड़ी-सी नीतिगत और वित्तीय सहायता से डीआरई महत्वपूर्ण ऊंचाई पर जा सकता है और भारत के बिजली क्षेत्र का परिदृश्य बदल सकता है।

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