पुरातत्व : दिल्ली में इंद्रप्रस्थ की खोज, महाभारत काल की मिली निशानियां |
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अब तक की खुदाई में यहां से प्राप्त बर्तन, टेराकोटा के खिलौनों और मूर्तियों का संबंध भी महाभारत काल से बताया जाता है।
भारतीय संस्कृति अत्यंत प्राचीन व समृद्धशाली है एवं इसका प्राचीन इतिहास बहुत ही गौरवपूर्ण रहा है। भारत का पुरातन इतिहास हमारी धार्मिक पुस्तकों, पुराणों आदि में वर्णित है, किंतु दुर्भाग्य से इससे संबंधित साक्ष्य या तो धरती में दबकर रह गए या फिर विदेशी आक्रमणकारियों द्वारा नष्ट कर दिए गए, नतीजतन हमारे गौरवपूर्ण इतिहास को ही झुठला दिया गया।
किंतु जब-जब धरती की परतों को उधेड़ा गया, वहां से प्राचीन भारत की सभ्यता के प्रमाण मिलते रहे हैं। इसीलिए अब भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण विभाग दिल्ली के पुराने किले में महाभारत में वर्णित पांडवों की राजधानी इंद्रप्रस्थ की तलाश में जुटा है। दरअसल कहा जाता है कि महाभारत काल की पांडवों की राजधानी इंद्रप्रस्थ वर्तमान दिल्ली ही है। आम धारणा है कि दिल्ली को सात बार बसाया जा चुका है, पर एएसआई के शोधकर्ताओं का मानना है कि इसे करीब 12 बार बसाया गया है।
खुदाई पुराने किले के उस स्थान पर हो रही है, जहां से अब तक सबसे ज्यादा ऐतिहासिक प्रमाण मिले हैं। दरअसल 300 एकड़ में फैले इस पुराने किले में 1954 से लेकर अब तक चार बार खुदाई हो चुकी है। चार बार की खुदाई के दौरान एएसआई को मुगल काल, सल्तनत काल, राजपूत काल, गुप्त काल, कुषाण काल और मौर्य काल के सबूत मिल चुके हैं। पुरातत्व विभाग को पूरी उम्मीद है कि यहां 5,000 साल पुरानी महाभारत कालीन सभ्यता के सबूत भी मिल सकते हैं।
दिल्ली के पुराने किले में खुदाई की शुरुआत सबसे पहले एएसआई के पूर्व महानिदेशक रहे पद्म विभूषण प्रोफेसर बीबी लाल ने साल 1954 में की थी और पहली ही खुदाई में लगभग 2,100 साल पुराने शुंग और कुषाण काल के अवशेष पाए गए थे। इसके बाद साल 1969 और 1973 में भी एक खास हिस्से में खुदाई का काम किया गया था, जिसमें आठ कालखंडों की सभ्यता के अवशेष मिले थे। साथ ही टेराकोटा के खिलौने भी पाए गए थे। फिर पुरातत्व विभाग के मौजूदा डायरेक्टर बसंत स्वर्णकार की अगुवाई में 2013 और 2017 में पुराने किले की खुदाई का काम चला, जिसमें मौर्यकाल समेत करीब ढाई हजार साल पुराने साक्ष्य प्राप्त हुए। यहां पर 2017 में की गई खुदाई में तांबे के सिक्के भी पाए गए थे। अब तक की खुदाई में जो भी चीजें मिली हैं, उनका जिक्र महाभारत से जुड़ी कहानियों में है। यहां से खुदाई में प्राप्त बर्तन, टेराकोटा के खिलौनों और मूर्तियों का संबंध भी महाभारत काल से बताया जाता है।
यहां खुदाई में जिस तरह के बर्तनों के अवशेष मिले हैं, उसी तरह के बर्तनों के अवशेष महाभारत से जुड़े अन्य स्थानों पर भी मिले हैं। दिल्ली में स्थित सारवल गांव से 1328 ईस्वी का संस्कृत का एक अभिलेख प्राप्त हुआ है, जिसमें इस गांव के इंद्रप्रस्थ जिले में होने का उल्लेख है। यह अभिलेख लाल किले के संग्रहालय में मौजूद है। एएसआई के पहले महानिदेशक सर अलेक्जेंडर कनिंघम का भी मानना था कि पुराना किला इंद्रप्रस्थ की जगह बनाया गया है। अबुल फजल की किताब आइन-ए-अकबरी में इंद्रप्रस्थ का इंद्रपथ के रूप में जिक्र किया गया है।
शम्स-ए-सिराज अफीफ की किताब तारीख-ए-फिरोजशाही तथा बौद्ध स्रोतों में भी इंद्रप्रस्थ का जिक्र पाया जाता है। इन तथ्यों से इस बात को बल मिला है कि यह वही प्राचीन किला है, जिसे इंद्रप्रस्थ में पांडवों ने बनवाया था। पुराने किले का निर्माण हुमायूं को हराने के बाद शेरशाह सूरी ने 1540 से 1545 के बीच करवाया था। हालांकि 1545 में शेरशाह सूरी को हुमायूं ने हराकर दिल्ली पर फिर से कब्जा कर लिया। पुराने किले की बाहरी दीवारों और द्वार को हुमायूं ने बनवाया।
पुराने किले में एएसआई द्वारा यह पांचवीं बार खुदाई की जा रही है। चंद दिनों की खुदाई के दौरान ही चित्रकारी वाले मिट्टी के बर्तन, सुराही समेत कई तरह के अवशेष मिल रहे हैं। इस बार जी-20 शिखर सम्मेलन के दौरान आने वाले प्रतिनिधियों को भी इस स्थल पर ले जाया जाएगा। इसलिए इस खुदाई का महत्व और भी बढ़ गया है।
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