निम्न कार्बन वाले ऊर्जा क्षेत्रों की पहचान करने वाले पेशेवर लोगों की है कमी, शोध-पत्र में किया दावा।
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प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने भारत के 2070 तक नेट ज़ीरो एमिशन के टार्गेट तक पहुंचने के लिए प्रतिबद्ध किया है। नेट-ज़ीरो अर्थव्यवस्था में बदलाव से जलवायु परिवर्तन के प्रभाव कम होंगे, लेकिन प्रदूषण फैलाने वाली फर्मों की लाभप्रदता कम हो जाएगी और ऐसे में फंसी हुए सम्पत्तियों का निर्माण होगा।
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सर्वेक्षण किए गए दस प्रमुख वित्तीय संस्थानों में से केवल चार ही ऐसे जोखिमों के बारे में जानकारी एकत्र करते हैं। इसके अलावा, ये फर्म वित्तीय निर्णय लेने के लिए व्यवस्थित रूप से उस जानकारी का उपयोग भी नहीं करती हैं। साथ ही,भारतीय वित्तीय संस्थानों के बकाया ऋण की बात करें तो उच्च कार्बन उद्योग – बिजली उत्पादन, रसायन, लोहा और इस्पात, और विमानन- बकाया ऋण के 10 प्रतिशत का प्रतिनिधित्व करते हैं। ये उद्योग भारी ऋणी भी हैं और इसलिए किसी भी प्रकार के वित्तीय झटके और तनाव का जवाब देने की इनकी वित्तीय क्षमता भी कम है।
कोयला वर्तमान में भारत की प्राथमिक ऊर्जा का 44 प्रतिशत और बिजली उत्पादन का 70 प्रतिशत हिस्सा है। देश के कोयले से चलने वाले बिजली संयंत्रों की औसत आयु 13 वर्ष है। भारत में 91 गीगावाट की नई प्रस्तावित कोयला क्षमता पर काम चल रहा है। यह चीन के बाद भारत को दूसरे स्थान पर लाता है। ड्राफ्ट नेशनल इलेक्ट्रिसिटी प्लान 2022 के अनुसार, बिजली उत्पादन में कोयले की हिस्सेदारी 70 प्रतिशत के वर्तमान योगदान की तुलना में 2030 तक घटकर 50 प्रतिशत हो जाने की उम्मीद है।
कोयला संयंत्रों का न हो निर्माण
वहीं, भारत के जलवायु लक्ष्यों को प्राप्त करने की बात करें तो उसके लिए ज़रूरी है कि प्लान किए गए कोयला संयंत्रों में से कई का निर्माण ही न किया जाए। साथ ही,1.5 डिग्री सेल्सियस के लक्ष्य हासिल करने के लिए यह आवश्यक है कि असंतुलित कोयला संयंत्र 2040 तक सेवानिवृत्त हो जाएं, भले ही वे अभी भी तकनीकी रूप से व्यवहार्य हों। इस नए विश्लेषण से यह भी पता चलता है कि बिजली क्षेत्र को उधार देने का सिर्फ लगभग छठा हिस्सा शुद्ध रूप से रिन्यूबल एनेर्जी के लिए है।
क्लाईमेट बांड्स की विशेषज्ञ नेहा कुमार कहती हैं कि भारतीय रिजर्व बैंक ने अपने जुलाई 2022 के चर्चा पत्र के माध्यम से भारतीय बैंकिंग क्षेत्र के लिए रूपांतरण जोखिम को मान्यता दी है जो विनियमन संस्थानों के लिए दिशा-निर्धारित करती है।
वित्तीय संस्थानों को बढ़ानी होगी क्षमता
अब वित्तीय संस्थानों को अपनी क्षमताओं को अपेक्षाकृत तेज़ी से बढ़ाने की आवश्यकता होगी, क्योंकि इस दिशा में आरबीआई की गति और बढ़ रही है। ऊर्जा रूपांतरण के जोखिमों का यह असर यह भी होगा कि संस्थान स्थायी संपत्तियों और गतिविधियों की ओर वित्त को अधिकाधिक स्थानांतरित करने की ओर अग्रसर होंगे।
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