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    April 20, 2025

    नई ऊंचाई पर साझेदारी: कई मुद्दों पर मतभेद के बावजूद भारत-अमेरिका संबंधों का दायरा बढ़ा |

    1 min read

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    भारतीय एनएसए अजीत डोभाल और उनके समकक्ष जेक सुलिवन के बीच वाशिंगटन में क्रिटिकल ऐंड इमर्जिंग टेक्नोलॉजीज पहल पर हाल में हुआ समझौता अतीत के विपरीत इन संवेदनशील तकनीकों को साझा करने की अमेरिकी इच्छा को दर्शाता है। कई मुद्दों पर मतभेदों के बावजूद भारत-अमेरिका संबंधों का दायरा बढ़ा है।
    मई, 1998 में भारत ने अमेरिकी खुफिया एजेंसी सीआईए को भनक तक नहीं लगने दी और पोखरण में बिना परमाणु अप्रसार संधि पर हस्ताक्षर किए परमाणु परीक्षण करके खुद को पूर्ण विकसित परमाणु देश घोषित कर दिया। सौ दिनों से भी कम समय में उस ऐतिहासिक घटना को 25 वर्ष हो जाएंगे, जिसने भारत की अंतरराष्ट्रीय पहचान और कद को मौलिक रूप से बदल दिया। जाहिर है, नाराज अमेरिका ने भारत पर कड़े प्रतिबंध लगाए और दोनों देशों के बीच वैज्ञानिक सहयोग पर विराम लग गया। एक-दूसरे के कारणों और चिंताओं को समझने तथा मतभेदों को दूर करने के लिए तत्कालीन भारतीय विदेश मंत्री, जसवंत सिंह और अमेरिकी उप विदेश मंत्री, स्ट्रोब टैलबोट के बीच आठ विभिन्न स्थानों पर 14 दौर की वार्ता हुई थी।

     

    मार्च, 2000 में अमेरिकी राष्ट्रपति बिल क्लिंटन के भारत आने तक अधिकांश प्रतिबंध हटा लिए गए। हमारे तत्कालीन प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी ने तब एक मुहावरा गढ़ा था-भारत-अमेरिका स्वाभाविक साझेदार। बिल क्लिंटन ने एक संस्थागत ढांचा तैयार किया, जो न केवल कई क्षेत्रों में द्विपक्षीय संबंधों को गहरा और विस्तारित करता, बल्कि सबसे पुराने और सबसे बड़े लोकतंत्र को करीब लाने के साथ-साथ क्षेत्रीय और अंतरराष्ट्रीय मुद्दों (विशेष रूप से जो दुनिया भर के आम लोगों को प्रभावित करते हैं) को संबोधित करने में रणनीतिक सहयोग भी तलाशता। कुछ विशेषज्ञों का मानना है कि भारत-अमेरिका के संबंध कभी बहुत बेहतर नहीं रहे। वाशिंगटन और नई दिल्ली में सत्ता परिवर्तन हुआ है, लेकिन कई मुद्दों पर मतभेदों के बावजूद भारत-अमेरिका संबंधों का दायरा, स्तर और प्रकृति केवल बढ़ी है।

    वर्ष 2000 में, भारत-अमेरिका व्यापार केवल 20 अरब डॉलर था। वाणिज्य मंत्रालय के आंकड़ों के अनुसार, वित्त वर्ष 2021-2022 में, भारत-अमेरिका व्यापार ने 119.42 अरब डॉलर को छू लिया है, जो भारत के वैश्विक व्यापार का 11.5 फीसदी है और भारत-चीन व्यापार के 115.42 अरब डॉलर से ज्यादा है। दिलचस्प है कि भारत ने जहां अमेरिका के साथ अपने व्यापार में 32.79 अरब डॉलर का अधिशेष प्राप्त किया, वहीं इसने चीन के साथ 72.9 अरब डॉलर का व्यापार घाटा दर्ज किया है!

    बेशक 1971 में अमेरिका ने पाकिस्तानी सैन्य तानाशाह याह्या खान का समर्थन किया था, लेकिन अब दोनों देशों ने इतिहास की झिझक दूर करके महसूस किया है कि द्विपक्षीय संबंधों, वैश्विक शांति, समृद्धि और स्थिरता के लिए उनके सहयोग सभी मतभेदों से कहीं अधिक महत्वपूर्ण हैं। भारत-अमेरिका असैन्य परमाणु समझौता, निस्संदेह एक ऐतिहासिक क्षण था, उसके बाद दोनों देशों ने कई अभूतपूर्व समझौतों पर हस्ताक्षर किए हैं, जो बढ़ते विश्वास और परिपक्वता को दर्शाते हैं।

    भारत ने जहां मूलभूत संचार समझौतों (एलईएमओए, सीओएमसीएएसए, और बीईसीए) पर हस्ताक्षर किए हैं, जो भारतीय और अमेरिकी रक्षा बलों के बीच संचार और सहयोग की क्षमता को बढ़ाता है, वहीं अमेरिका ने भारत को एक प्रमुख रक्षा भागीदार बताया है और उसे एसटीए-1 का दर्जा दिया है, जिसके तहत उसे नाटो के बराबर रखा गया है और उच्च प्रौद्योगिकी उत्पादों के निर्यात पर प्रतिबंध हटा दिया गया है। जाहिर है, दोनों देश रक्षा सहयोग के विस्तार और रणनीतिक साझेदारी के पोषण के पक्ष में हैं। पिछले साल, पहली बार भारत ने अमेरिकी नौसेना के जहाज का रख-रखाव किया।

    अमेरिका भारत-प्रशांत क्षेत्र में समुद्री व्यापार के लिए एक खुला, मुक्त और समावेशी क्षेत्र सुनिश्चित करने और अंतरराष्ट्रीय कानूनों और संवाद के माध्यम से क्षेत्रीय मुद्दों के शांतिपूर्ण समाधान के लिए भारत को एक महत्वपूर्ण भागीदार मानता है। भारत अमेरिका के साथ गठबंधन किए बिना क्वाड का एक सक्रिय सदस्य है।

    मई, 2022 में भारतीय और अमेरिकी सरकारों द्वारा हस्ताक्षरित निवेश प्रोत्साहन समझौता भारत में विभिन्न क्षेत्रों में निजी निवेश के लिए अमेरिकी विकास वित्त संस्थानों के निरंतर समर्थन की सुविधा प्रदान करेगा। भारत इंडो-पैसिफिक इकॉनमिक फ्रेमवर्क (आईपीईएफ) के चार स्तंभों में से तीन (कराधान, भ्रष्टाचार विरोध और स्वच्छ ऊर्जा) पर सहमत हो गया है, लेकिन डाटा और गोपनीयता के बारे में उसे आपत्ति है। यह कोई रहस्य नहीं है कि रणनीतिक रूप से महत्वपूर्ण आई2यू2 (भारत, इस्राइल, अमेरिका और संयुक्त अरब अमीरात) में भारत को शामिल करने के पीछे अमेरिका का हाथ था, जिसे पश्चिमी क्वाड के रूप में देखा जाता है।

    इसी तरह अभी-अभी अमेरिकी राष्ट्रपति जो बाइडन ने भारतीय मूल के अमेरिकी कारोबारी और मास्टरकार्ड के पूर्व प्रमुख अजय बंगा को विश्व बैंक के प्रमुख के पद के लिए मनोनीत किया है। भारतीय एनएसए अजीत डोभाल और उनके समकक्ष जेक सुलिवन के बीच वाशिंगटन में क्रिटिकल ऐेंड इमर्जिंग टेक्नोलॉजीज (आईसीईटी) पहल पर हाल में हुआ समझौता अतीत के विपरीत इन संवेदनशील तकनीकों को साझा करने की अमेरिकी इच्छा को दर्शाता है। अगर इसे आईसीईटी के तहत परिकल्पित किया गया है, तो यह बड़े बदलाव का कारण बनेगा।

    भारत वैकल्पिक आपूर्ति शृंखलाओं का एक महत्वपूर्ण हिस्सा हो सकता है। दिल्ली और वाशिंगटन के बीच अधिक रणनीतिक, वाणिज्यिक और सैन्य संबंध होंगे। यह भारत के औद्योगिक और आर्थिक उत्थान को बढ़ावा दे सकता है और उसकी अत्याधुनिक दोहरे उपयोग वाली तकनीकों तक पहुंच हो सकती है। यह भारतीय नवाचारों को प्रोत्साहित कर सकता है और सेमीकंडक्टर निर्माण और आपूर्ति शृंखला में भारत को शामिल कर सकता है। इसका परिणाम संयुक्त विकास और संयुक्त उत्पादन सहित नए क्षेत्रों में रक्षा सहयोग और स्वदेशी रक्षा उत् |

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