दूध फटा तो मंगोलों ने बना दिया पनीर:कभी अपशकुन माना गया, भारत में पुर्तगाली लेकर आए; रसमलाई को बनाया मिठाइयों की बहूरानी |
1 min read
|








खाने-पीने के शौकीन वीर सांघवी भारतीय और विदेशी व्यंजनों पर चटपटा लिखने के लिए जाने जाते हैं। मगर बचपन में वे पनीर के स्वाद से अनजान थे। बॉम्बे में भी मुश्किल से ही पनीर मिलता था। वैसे सांघवी खुद को बंबइया गुजराती मानते हैं।
वह कहते हैं कि शायद यह बात उन लोगों को कम समझ आए जो यह नहीं जानते कि 1960 तक गुजरात राज्य का अस्तित्व ही नहीं था। आज हम जिस भौगोलिक क्षेत्र को गुजरात और महाराष्ट्र कहते हैं, उसमें से अधिकांश बॉम्बे स्टेट का हिस्सा हुआ करता था।
बहरहाल, उस दौर में गुजरातियों की जुबान से पनीर का स्वाद कोसों दूर था। वीर सांघवी काफी समय बाद जब दिल्ली पहुंचे तब उन्होंने पनीर का स्वाद चखा।
लेकिन आज हर गुजराती खाना ऑर्डर करते हुए मेन्यू में पनीर का आइटम भी जरूर खोजता है। वीर सांघवी ने कोई 50-60 साल पुराना अपना यह अनुभव देशभर के रेस्तरां में मिलने वाले फूड की लिस्ट बनाते हुए बताया।
पनीर के स्वाद का साम्राज्य देशभर में फैला हुआ है। उत्तर से दक्षिण और पूरब से पश्चिम, ढाबे से लेकर पांच सितारा होटल तक, सब जगह पनीर के व्यंजनों का राज है।
पिछले 20-30 वर्षों में पनीर घर-घर पहुंचा है। इससे पहले देश के हर इलाके में इसका स्वाद हर किसी की जुबान पर नहीं चढ़ा था।
बिहार के मिथिला इलाके में छेने की सब्जी बनती रही है। पुराने मैथिल परिवार पनीर के स्वाद से कम वाकिफ रहे हैं। मगर मिथिला में पनीर ने अब ‘भोज-भात’ में जगह ले ली है। यही सूरत-ए-हाल देश के गांव-देहात के सभी घरों का है।
दूध के फटने में किसी ने फूड खोजा, किसी ने अपशकुन माना
दूध फाड़कर पनीर बनाया जाता है। मगर सोचिए अपने देश में किसी समय दूध का फटना अपशकुन माना जाता था। वही पनीर आज शादी समारोह, बर्थडे पार्टी जैसे हर शुभ आयोजनों की मेजबानी कर रहा है।
दूध फटता ही है इंसान की गलती से। ऐसा नहीं है कि 16वीं शताब्दी से पहले दुनिया के किसी हिस्से में दूध नहीं फटा होगा। लेकिन मंगोलों ने अपनी गलती से फटे दूध से पनीर बना लिया। फूड हिस्टोरियन का एक तबका मंगोलों को ही पनीर का आविष्कारक मानता है।
कहते हैं कि उस दौरान मंगोल अक्सर युद्ध मैदान में होते। वे अपने साथ खाने-पीने का सामान बांधकर चलते। एक बार मंगोल योद्धा चमड़े की बोतल, जिसे मशक कहा जाता है, में दूध लेकर निकले।
उनका काफिला गर्म रेगिस्तान से होकर गुजरा। गर्मी की वजह से दूध फट गया। मंगोलों ने इस फटे दूध को फेंका नहीं, उन्होंने इसका स्वाद चखा। फिर गलती से दूध फटकर बना पनीर धीरे-धीरे उनके भोजन का अहम हिस्सा बनता चला गया।
भारतीयों की थाली में किसने परोसा पनीर
फूड हिस्टोरियन बताते हैं कि लेकिन भारतीयों को पुर्तगालियों ने दूध फाड़कर पनीर बनाने की विधि बताई।
बंगाल में पुर्तगाली जो पनीर बनाते थे, वह संदेश और रसगुल्ला बनाने वाले छेना के मुकाबले मामूली सा खट्टा होता था।
लेकिन ऐतिहासिक रिकॉर्ड बताते हैं कि पनीर उत्तर भारत में पुर्तगालियों के आने से काफी पहले अरबों के साथ आ चुका था और भारतीय रसोई में पकने लगा था। उस समय भेड़ के दूध से बने पनीर को ‘तबरीज’ कहा जाता।
भारत में अब पनीर डाइटिंग का अहम हिस्सा बन चुका है।
फारसी और अफगान पनीर भारत लेकर आए
नेशनल डेयरी रिसर्च इंस्टीट्यूट के अनुसार अफगानिस्तान में पहली बार पनीर बना। मुगल काल में फारसी और अफगान पनीर भारत लेकर आए। मुगल शाही रसोई में पनीर ऐसे बैठा कि अब हर भारतीय शाही पनीर पसंद करता है।
कुछ लोग सवाल करते हैं कि अगर मुगल पनीर लेकर भारत आए तो फिर इसका जिक्र ‘अकबरनामा’ में क्यों नहीं मिलता।
फूड हिस्टोरियन कहते हैं कि यह उतना ही रहस्यमयी है जितना जहांगीर से पहले केसर के बारे में कोई जिक्र न मिलना, जबकि केसर सिकंदर संग भारत आ चुकी थी।
‘न्यू वर्ल्ड वेजिटेबल’ ने भारतीय रसोई और स्वाद को बनाया समृद्ध
दरअसल ‘न्यू वर्ल्ड वेजिटेबल’ में टमाटर और आलू जैसी सब्जियां आती हैं जो ‘द कोलंबियन एक्चेंज’ के बाद भारत आईं। ‘द कोलंबियन एक्चेंज’ में मिली सब्जियों को ही न्यू वर्ल्ड वेजिटेबल कहा जाता है।
अगर कोलंबस अमेरिका नहीं पहुंचते तो टमाटर, मिर्च और आलू हिंदुस्तान कभी नहीं आ पाते। हिंदुस्तान क्या दुनिया के बाकी देशों को भी शायद इनका स्वाद नसीब नहीं होता।
1840 में टमाटर हिंदुस्तान आया और कई नए व्यंजनों का हिंदुस्तानी रसोई में जन्म हुआ।
‘द कोलंबियन एक्सचेंज’ की स्वादिष्ट और कड़वी बातें
बहरहाल, आप सोच रहे होंगे कि पनीर की कहानी के बीच ये भारी भरकम ‘द कोलंबियन एक्सचेंज’ किस बला का नाम है।
इस शब्द को अल्फ्रेड डब्ल्यू. क्रॉस्बी की 1972 की मौलिक पुस्तक, ‘द कोलंबियन एक्सचेंज: बायोलॉजिकल एंड कल्चरल कॉन्सिक्वेंस ऑफ 1492’ ने लोकप्रिय बनाया। ‘द कोलंबियन एक्सचेंज’ का मतलब है यूरोप-एशिया और बाकी दुनिया की अज्ञात जगहों की ‘खोज’ के बाद नई और पुरानी दुनिया की खाने-पीने की चीजों, सब्जियों और मवेशियों का एक से दूसरी जगह पहुंचना।
कोलंबस 1492 में अटलांटिक महासागर पार कर पश्चिम की ओर रवाना हुआ था। अमेरिका की खोज के साथ ही यूरोप की चीजें अमेरिका पहुंचीं।
स्पैनिश और पुर्तगालियों के जरिए फिर ये सभी चीजें एशिया भी पहुंच गईं। नई दुनिया की खोज से बाकी दुनिया के लोग नई-नई चीजों से रूबरू जरूर हुए लेकिन इसके साथ ही बीमारियां भी नई और पुरानी दुनिया में एक जगह से दूसरी जगह फैल गईं।
पनीर भारतीय व्यंजनों से जुड़कर कुलीन वर्ग की थाली का हिस्सा बनता चला गया। मतलब किसी डिश का भाव बढ़ाना है तो उस पर पनीर गार्निश कर दीजिए।
जैसे- सरसों का साग अपने आप में खालिस स्वाद है, लेकिन उसमें भी पनीर मिला दिया जाता है। पनीर प्रेम की इंतेहा तब होती है, जब विदेशी पिज्जा का भी ‘पनीरीकरण’ कर ‘पनीर पिज्जा’ का नाम दे दिया जाता है।
शहरी जुबान को पसंद है पनीर
माना जाता है कि पनीर सबसे ज्यादा पंजाबी कम्युनिटी पसंद करती है।
About The Author
Whatsapp बटन दबा कर इस न्यूज को शेयर जरूर करें |
Advertising Space
Recent Comments