जलवायु परिवर्तन : जलवायु परिवर्तन से मुकाबला, सीडीआर एक सशक्त हथियार |
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सीडीआर को जलवायु परिवर्तन से मुकाबले के लिए एक सशक्त हथियार माना जा रहा है, विशेष तौर पर बिजनेस और कंपनियों द्वारा अपनाए जाने वाले विकल्प के रूप में।
कार्बन डाईऑक्साइड को हवा से बाहर निकालने की पद्धति को कार्बन डाईऑक्साइड रिमूवल (सीडीआर) के नाम से जाना जाता है। यह पद्धति जलवायु परिवर्तन पर अंकुश लगाने और ग्लोबल वार्मिंग की रोकथाम के लिए कार्बन डाईऑक्साइड उत्सर्जन की कटौती के तरीके के तौर पर तेजी से अपनी पहचान बना रही है। सीडीआर के तहत कार्बन डाईऑक्साइड को वातावरण से अवशोषित करके उसे दशकों से लेकर सदियों तक भू-वैज्ञानिक संरचनाओं या उत्पादों के रूप में जमीन पर और महासागर में जमा किया जाता है। सीडीआर को जलवायु परिवर्तन से मुकाबले के लिए एक सशक्त हथियार माना जा रहा है, विशेष तौर पर बिजनेस और कंपनियों द्वारा अपनाए जाने वाले विकल्प के रूप में।
‘द स्टेट ऑफ कार्बन रिमूवल’ शीर्षक वाली एक नई रिपोर्ट में सीडीआर का पहला वैश्विक आकलन पेश किया गया, जिसमें इसका भी जायजा लिया गया है कि इस वक्त कार्बन हटाने के लिए क्या व्यवस्था है, भविष्य में इसके लिए क्या योजना है और ‘सीडीआर गैप’ को भरने के लिए क्या जरूरी है। रिपोर्ट में पाया गया है कि तकरीबन पूरा का पूरा दो बिलियन टन वर्तमान कार्बन डाईऑक्साइड रिमूवल (सीडीआर) भू-प्रबंधन प्रक्रियाओं से आता है। सीडीआर में ज्यादातर परंपरागत पद्धतियों का इस्तेमाल किया जाता है और जमीन का प्रबंधन किया जाता है, ताकि वह वातावरणीय कार्बन डाईऑक्साइड को अवशोषित करके उसका भंडारण करे। उदाहरण के तौर पर पौधरोपण, उजड़े जंगलों और अपनी खूबियां खो चुकी मिट्टी का पुनरुद्धार करना।
सीडीआर की नई पद्धतियों से सिर्फ 0.002 अरब टन या 0.1 प्रतिशत ही कार्बन अवशोषित हो पाता है। प्रत्यक्ष वायु कार्बन कैप्चर और भंडारण प्रौद्योगिकियों जैसी नई पद्धतियों से एक छोटा-सा हिस्सा कार्बन डाईऑक्साइड ही वातावरण से हटाना संभव हो पाता है। इनमें वे ऊर्जा संयंत्र शामिल हैं, जो ऊर्जा पैदा करने के साथ प्रदूषणकारी तत्वों के उत्सर्जन को अवशोषित कर भंडारित करती है। जैसे कि कार्बन कैप्चर और स्टोरेज सुविधा के साथ बायोएनर्जी; ‘प्रत्यक्ष एयर कैप्चर’ प्रौद्योगिकियां, जो रासायनिक प्रतिक्रियाओं और जैविक चारकोल या ‘बायोचार’ समेत विभिन्न पद्धतियों से वातावरण से कार्बन डाईऑक्साइड को सोख कर बाहर निकालती हैं। बायोचार को जब मिट्टी में मिलाया जाता है, तब वह वातावरण से नेट कार्बन को अवशोषित करता है। अध्ययन में अनुमान लगाया गया है कि वर्तमान में सीडीआर की सभी परियोजनाएं विकसित की जा रही हैं, लिहाजा वर्ष 2025 तक 1.17 करोड़ टन कार्बन डाईऑक्साइड को अवशोषित किया जा सकता है।
मगर यह ग्लोबल वार्मिंग को उद्योग-पूर्व तापमानों के मुकाबले दो डिग्री सेल्सियस से कम तक सीमित करने के पेरिस समझौते के तहत दिए गए वचन को पूरा करने के लिए काफी नहीं है। यहां तक कि दुनिया भर की सरकारों द्वारा सीडीआर की दरों को बढ़ाने और नई तकनीकों में निवेश करने की प्रतिज्ञा के बावजूद यह नाकाफी है। अगर वर्तमान में विकसित की जा रही सभी नई सीडीआर परियोजनाएं पूरी हो जाती हैं, तो यह मात्रा वर्ष 2025 तक बहुत कम बढ़कर 0.012 अरब टन हो जाएगी। यह वैश्विक उत्सर्जन के केवल 2.5 घंटे के बराबर है। इसमें और अधिक तेजी लाए जाने की जरूरत है। दुनिया को वर्ष 2020 के स्तर के मुकाबले साल 2030 तक कार्बन डाईऑक्साइड के उत्सर्जन में 0.96 अरब टन और 2050 तक 4.8 अरब टन की कमी लानी होगी। लगभग 120 देशों की सरकारों ने नेट-जीरो उत्सर्जन के लक्ष्य निर्धारित किए हैं, जिसका सीधा मतलब है सीडीआर का उपयोग करके अपशिष्ट उत्सर्जन को संतुलित करना।
ऐसे में नए सीडीआर को वर्ष 2030 तक 30 गुनी और 2050 तक 1,300 गुनी तेजी से आगे बढ़ाने की जरूरत होगी। इस तरह आने वाला दशक नई प्रौद्योगिकियों के लिए निर्णायक है। यह काफी चुनौतीपूर्ण होगा, क्योंकि किसी भी देश के पास नवीन सीडीआर में वर्ष 2030 तक तेजी लाने की कोई योजना नहीं है। प्राकृतिक सीडीआर के मौजूदा स्तरों को बनाए रखने के लिए अतिरिक्त नीतियां भी महत्वपूर्ण होंगी।
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